ईंधन की बढ़ती कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए भारत, जापान और अमेरिका ने जारी की संयुक्त चेतावनी!

अब नहीं चलेगी OPEC देशों की मनमानी!

OPEC

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पिछले एक साल से कच्चे तेल की कीमतों में भारी बढ़ोत्तरी हुई है। तेल उत्पादन करने वाले देश जैसे OPEC तेल की कीमतों पर अपना वर्चस्व बनाए हुए हैं, जिस पर उनका एकाधिकार बना हुआ है। कच्चे तेल की कीमत पहले $50 प्रति बैरल, फिर $75 से बढ़कर अब $85 से अधिक हो चुकी है। इसी मनमानी को देखते हुए तेल की सबसे अधिक खपत करने वाले देश भारत, जापान और अमेरिका ने तेल उत्पादन करने वाले देशों को चेतावनी दी है।

दरअसल, कुछ दिनों पहले व्लादिमीर पुतिन ने चेतावनी दी थी कि कच्चे तेल की कीमत $100 प्रति बैरल होने की संभावना है। OPEC देशों के साथ रूस भी इस कार्टेल का सदस्य है। ऐसे में अमेरिका, भारत, जापान और अन्य देश इस कार्टेल पर सबसे मजबूत राजनयिक दबाव बना रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार बंद दरवाजे के पीछे ‘OPEC+देशों को अपने उत्पादन में तेजी लाने के लिए राजी करने पर एक गहन अभियान चलाया जा रहा है।

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4 नवंबर को OPEC+ की समीक्षा नीति की बैठक होने वाली है, ऐसे में सभी देशों को उम्मीद है कि तेल उत्पादन में तेजी आएगा। वर्तमान में ये देश हर महीने 400,000 बैरल प्रतिदिन की दर से उत्पादन कर रहे हैं। गैसोलीन की बढ़ती कीमतों से बाइडन प्रशासन चिंतित है, जो 7 साल के उच्च स्तर पर पहुंच गया है। यही कारण है कि अमेरिका OPEC+ को अधिक तेल उत्पादन करने के लिए हफ्तों से दबाव बना रहा है।

वहीं, दुनिया का चौथा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता जापान ने भी अक्टूबर के अंत में तेल के उत्पादन को बढ़ाने मांग की थी। 2008 के बाद टोक्यो ने पहली बार इस तरह की मांग की थी। इसके साथ ही तीसरे सबसे बड़े उपभोक्ता भारत ने भी अधिक कच्चे तेल की मांग की है। राजनयिकों ने कहा कि चीन सार्वजनिक रूप से चुप है, लेकिन निजी तौर पर उतना ही मुखर है। शीर्ष अमेरिकी ऊर्जा राजनयिक Amos Hochstein ने इस सप्ताह कहा था कि “हम ऊर्जा संकट में हैं, उत्पादकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि तेल बाजार और गैस बाजार संतुलित रहे।”

इन देशों के अधिकारियों ने की है आपस में बातचीत

रिपोर्ट के अनुसार अमेरिकी, जापानी और भारतीय अधिकारियों ने आपस में निजी तौर पर बातचीत की है और अन्य बड़े उपभोक्ताओं एवं तेल उत्पादक देशों से संपर्क भी किया है। यह कवायद लगभग तीन सप्ताह पहले शुरू हुई थी, लेकिन हाल के दिनों में जब कच्चे तेल की कीमत 85 डॉलर प्रति बैरल से अधिक हुई तो सभी देशों ने दबाव बनाने को प्रक्रिया तेज कर दी है।

जापान के पेट्रोलियम एसोसिएशन के अध्यक्ष Tsutomu Sugimori के अनुसार, “जापानी सरकार वर्तमान में तेल उत्पादक देशों से मध्य पूर्व में उत्पादन बढ़ाने के लिए कह रही है। पेट्रोलियम उद्योग के रूप में टोक्यो को उम्मीद है कि ओपेक सहित तेल उत्पादक देश उचित कदम उठाएंगे ताकि दुनिया की अर्थव्यवस्था की रिकवरी में बाधा न आए।”

हालांकि, कहा यह जा रहा है कि सऊदी अरब को एक ऐसे संकट के लिए बलि का बकरा बनाया जा रहा है, जो उसने पैदा ही नहीं किया। उनका तर्क है कि समस्या तेल नहीं, बल्कि प्राकृतिक गैस और कोयले की बढ़ती कीमतों की है, जिसके कारण बिजली की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है और हालात ऐसे हो गए हैं।

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OPEC+ को चेतावनी दे चुके हैं कई बड़े देश

इस वर्ष के अधिकांश तेल की खपत करने वाले देशों ने स्वीकार किया कि OPEC+ देश पर्याप्त मात्रा में उत्पादन कर रहे थे। लेकिन जब तेल की कीमतें 70 डॉलर से बढ़कर 85 डॉलर प्रति बैरल से अधिक हो गई और औद्योगिक देशों में कच्चे माल के भंडार में पिछले कुछ महीनों में तेजी से गिरावट आई, तो सभी के तेवर बदल गए। अब सभी देशों के अधिकारियों का मानना ​​है कि तेल बाजार की आपूर्ति कम है।

यही कारण है कि अब सभी बड़े देश OPEC+ पर दबाव बना रहे हैं और चेतावनी भी दे चुके हैं। अभी तक केवल भारत (और कभी-कभी चीन) ओपेक कार्टेल की शक्ति के बारे में शिकायत करता था, लेकिन अब लगभग सभी देश तेवर में दिख रहे हैं। कार्टेल के खिलाफ सभी देश का एक साथ आने के कारण OPEC+ को हार मानने के लिए मजबूर होना पड़ेगा!

भारत, उत्तरी अमेरिकी और दक्षिण अमेरिकी देशों पर ध्यान केंद्रित करके मध्य पूर्वी देशों से अपने तेल आयात को लगातार कम कर रहा है। मोदी सरकार के कार्यकाल में पिछले सात वर्षों के भीतर मध्य पूर्वी देशों से आयात लगभग 85 प्रतिशत से 70 प्रतिशत तक पहुंच गया। तेल आयात भारत के लिए एक बड़ी समस्या है, जो विशाल विदेशी मुद्रा भंडार के नुकसान के लिए जिम्मेदार है। वहीं, मोदी सरकार स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन बढ़ाने और ओपेक देशों से बेहतर सौदे पर बातचीत करने के लिए इस दोतरफा रणनीति के साथ इसे हल करने की कोशिश कर रही है। अब देखना यह है कि क्या सऊदी सहित OPEC के देश तथा रूस तेल उत्पादन में बढ़ोतरी करते हैं या नहीं।

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