पैसा ही पैसा होगा- अब 32 देश 1 दिसंबर से चीनी उत्पादों पर नहीं देंगे टैरिफ, भारत के लिए सुनहरा अवसर

अब जल्द ही ध्वस्त हो जाएगी चीनी अर्थव्यवस्था!

चीन टैरिफ

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आज आप अपने घर का कोई भी सामान उठाकर उसकी डिटेल्स देखिए, तो कहीं न कहीं, उसमें ‘मेड इन चाइना’ का उल्लेख अवश्य होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि चीन को दुनिया से कई तरह के आर्थिक फायदे मिल रहे हैं, जिसका फायदा उठाकर चीन कई देशों की अर्थव्यवस्था को ही खोखला करने की कोशिश कर रहा है। चीन का मकड़जाल पूरी दुनिया के लिए सदैव सिर दर्द का परिचायक रहा है, कमजोर अर्थव्यवस्था के कारण साल 1978 के करीब 40 से अधिक देशों ने चीन को आर्थिक सुविधाएं और राहतें दीं, नतीजतन चीन की अर्थव्यवस्था में विस्तार हुआ। इसके विपरीत चीन का अताताई रवैया वैश्विक स्तर पर मुसीबत बन गया है। ऐसे में अब इन देशों ने चीन को टैरिफ देने से मना कर दिया है, जिसका सीधा असर चीन की अर्थव्यवस्था पर देखने को मिलेगा। एक ओर चीन में जहां आर्थिक नुकसान देखने को मिलेगा, चीन की सप्लाई चेन और इंटरप्राइजेज पर बुरा असर पड़ेगा, तो वही इसका फायदा भारत और जापान जैसे देशों के हिस्से में आएगा, जो देश की अर्थव्यवस्था को दोगुनी रफ्तार दे सकता है।

32 देशों ने किया फैसला

दरअसल, हांगकांग स्थित ऑनलाइन समाचार पोर्टल HK01 के मुताबिक, दुनिया के 32 देश चीन को कुछ वस्तुओं के शुल्क-मुक्त टैरिफ लाभ के प्राप्तकर्ताओं की अपनी व्यापार वरीयता सूची से हटाने की तैयारी कर चुके हैं, जो कि 1 दिसंबर 2021 से प्रभावी रुप से लागू भी हो जाएगा। वहीं, इस रिपोर्ट के लिए पोर्टल ने हाल ही में चीन के सीमा शुल्क के सामान्य प्रशासन (जीएसीसी) द्वारा दिए गए बयान को खबर का आधार बताया है। इस वैश्विक मार के पीछे चीन अपनी हनक दिखाने की कोशिश कर रहा है, और सीमा शुल्क हटने को अपनी आर्थिक ताकत का आधार बता रहा है।

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हनक दिखाने की कोशिश

चीन ने जिन सीमा शुल्क के लाभों के कारण फायदा उठाया, अब उनके हटने से मिली सजा को भी अपनी हनक से जोड़कर देख रहा है। खबरों के मुताबिक जीएसीसी अन्य उन्नत अर्थव्यवस्थाओं द्वारा लिए गए इस एक्शन को लेकर अपनी पीठ थपथपा रहा है। उनका कहना है कि चीन अब निम्न-आय और निम्न-मध्यम-आय वाले देशों की श्रेणी में नहीं है। उनके मुताबिक चीनी उत्पाद वैश्विक बाजार में पर्याप्त प्रतिस्पर्धी हैं, जिन्हें किसी सुरक्षा की आवश्यकता नहीं है। चीन द्वारा खुद की ये तारीफ दिखाता है कि चीन इसे सजा के रूप में दुनिया के सामने प्रस्तुत नहीं करना चाहता है।

चीन को लंबे वक्त से मिला है लाभ

गौरतलब है कि चीन को वैश्विक स्तर पर 40 देशों ने 1978 में उसकी अर्थव्यवस्था खुलने पर सीमा शुल्क संबंधी टैरिफ की छूट दी थी, लेकिन अब उन देशों ने कुछ सामनों को छोड़कर सभी में सीमा शुल्क टैरिफ को खत्म करने का ऐलान किया है। चीन के खिलाफ ये तगड़ा फैसला लेने वाले देशों की बात करें तो इसमें मुख्य तौर पर यूरोपीय संघ के देश, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा, तुर्की, यूक्रेन और लिकटेंस्टीन शामिल हैं।अब इसमें केवल तीन देश ही चीन के टैरिफ को बरक़रार रखे हुए हैं, जिनमें से एक ऑस्ट्रेलिया भी है। आस्ट्रेलिया पहले ही अनेक मुद्दों पर चीन को लताड़ लगा चुका है, जिसके कारण अब यह कयास लगाए जाने लगे हैं कि जल्द ही आस्ट्रेलिया भी चीन पर कार्रवाई करते हुए सख्त एक्शन ले सकता है।

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चीन को लगेगा झटका

बताते चलें कि चीन में छोटे उद्योगों की भरमार हैं, जो कम लाभ के साथ भी ताबड़तोड़ प्रोडक्शन करते हैं। वहीं, 32 देशों के इस फैसले से मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर्स में चीन में बसी कंपनियों के सामने मुश्किलें खड़ी होंगी, जिससे सर्वाधिक झटका चीन के मैन्युफैक्चरिंग और सप्लाई चेन के मकड़जाल को लगेगा। संभावना है कि कई बड़ी कंपनियां चीन से अपना बोरिया बिस्तर समेट कर किसी अन्य सहज आर्थिक स्थिति वाले देशों की तलाश करेंगी। वहीं, इन कंपनियों के लिए सबसे सहज विकल्प भारत और जापान जैसे देश होंगे, जो कि आर्थिक रूप से इन कंपनियों के लिए मददगार होंगे। यदि ऐसा होता है तो एक तरफ जहां चीन अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर ऐतिहासिक निचले स्तर पर चला जाएगा, तो वही भारत जो पहले ही तेजी से अर्थव्यवस्था में नई छलांग लगा रहा है, उसे नई कंपनियों के आने से एक बड़ा आर्थिक लाभ होगा, जो देश में रोजगार के अवसरों को विस्तार देगा।

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