आप भारत के विश्वास है, गर्व है या यूं कहें की आप ही भारत हैं! आप अर्थात युवा शक्ति, जो भारत की रीढ़ के समान है। भारत ये जानकर बड़े गर्व से भर जाता है कि उसकी 65 प्रतिशत आबादी युवा है। परंतु, संभावनाओं के इतने बड़े सागर को मथने से कहीं अमृत के बजाए विष निकला तो? क्योंकि संभव है बहुतेरे युवा आपके जैसा कोई सार्थक लेख पढ़ने के बजाए सोशल मीडिया एप्स चलाने को प्रश्रय दें! कुछ तथ्य और रिपोर्ट युवा शक्ति से निकलने वाले इसी विष की ओर संकेत देते हैं।
कई तथ्यों से पता चलता है कि सोशल मीडिया किशोरों को वास्तविक नुकसान पहुंचा रहा है। वास्तविक नुकसान से तात्पर्य यह है कि ये सोशल मीडिया एप्स हमारे देश के बच्चों से प्रत्यक्ष तौर पर उनकी किशोरावस्था छिन रहे हैं। उन्हें बीमार, अक्षम और असमर्थ बना रहे हैं, उनके सोचने समझने की शक्ति क्षीण कर रहे हैं, उन्हें हीन भावना, क्रोध, कामुकता, आक्रामकता और नीचता से भर रहे हैं।
पश्चिमी साम्राज्यवाद के संवाहक के रूप में सामने आए इन सोशल मीडिया कंपनियों ने हमारे युवाओं को कब अपनी लत लगा दी, हमें पता ही नहीं चला। एक ऐसी लत जो सिगरेट और शराब से भी बुरी है। बाकी नशे तो प्राथमिक रूप से आपके शरीर को नुकसान पहुंचते हैं, पर ये Instagram, Facebook और TikTok जैसे एप्स, तो उन्हें मानसिक रूप से विकलांग और विकृत कर रहे हैं। ये हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि कई रिपोर्ट्स ऐसी संभावनाओं की ओर इंगित कर रहे हैं।
युवाओं के मस्तिष्क को पंगु बना रहा है सोशल मीडिया
न्यूपोर्ट आउट पेशेंट सर्विसेज के निदेशक और पीएचडी होल्डर डॉन ग्रांट के मुताबिक, “सोशल मीडिया का उपयोग हमारे लिम्बिक सिस्टम को आंतरायिक चर पुरस्कारों के लिए लालायित करता है। आम जन के भाषा में समझें, तो Likes, Comment, Views के माध्यम से हम वृहद जनमानस का स्वयं के प्रति विचार जानने के लिए उत्सुक रहते हैं। विचार अगर अनुकूल और प्रशंसा स्वरूप हो, तो यह हमें गर्व और अहंकार से भर देता है। इसके साथ-साथ उस सोशल मीडिया एप्स पर हमें अधिक से अधिक समय व्यतीत करने को प्रेरित करता है। विचार अगर प्रतिकूल हो, तो यह हमें क्रोध और हीन भावना से भर देता है। यह भाव ही हमें इस एप पर अधिक से अधिक समय व्यतीत करने को प्रेरित करता है, ताकि हम अपने व्यक्तिव को उस अनुसार परिवर्तित कर सकें।”
उनके मुताबिक, “एक काल्पनिक दुनिया के लिए हम इतने चिंतित, उत्सुक और परिवर्तित इसलिए होते हैं, क्योंकि इन एप्स को इसी तरीके से डिज़ाइन किया गया है कि लोगों को इसकी लत लग जाये। इसे चलाने से हमारे दिमाग में उसी रसायन का श्राव होता है, जो सिगरेट या शराब पीने पर होता है, जिसका नाम है- Dopamine। इन सोशल मीडिया पर अधिक समय व्यतीत करने से हमारा दिमाग अनवरत Dopamine छोड़ता है, जिससे हम बार-बार अपनी फ़ीड, अपना अकाउंट या हमारे द्वारा पोस्ट की गई, किसी चीज़ पर प्रतिक्रिया को देखते रहते हैं। यह चीज़ आपके मस्तिष्क को इतना पंगु कर देती है कि खाली समय में हमें इसके अलावा कुछ सार्थक सूझता ही नहीं, या यूं कहें कि हम इसी काल्पनिक दुनिया और Dopamine के सुख के लिए वास्तविक दुनिया से खुद को अलग कर लेते हैं। शोध से यह भी पता चला है कि ये एप्स मस्तिष्क को भविष्य में अन्य अस्वास्थ्यकर निर्भरता या व्यसनों के लिए प्रेरित करते हैं।”
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किशोरों के अभद्र भाषा में 70 फीसदी की बढ़ोत्तरी
लाइट संगठन 2020 की एक रिपोर्ट में सोशल मीडिया और लोकप्रिय चैट फ़ोरम पर बच्चों और किशोरों के बीच अभद्र भाषा में 70 प्रतिशत की वृद्धि पाई गई। किशोरों पर सोशल मीडिया के प्रभाव पर प्यू रिसर्च सेंटर की एक रिपोर्ट के अनुसार, 26 प्रतिशत किशोरों का कहना है कि ये सोशल मीडिया साइट्स उन्हें अपने जीवन के बारे में बुरा और हीन महसूस कराती हैं। अधिकांश माता-पिता सोचते हैं कि उनका बच्चा सोशल मीडिया पर क्या पोस्ट कर रहा है। जबकि प्यू रिसर्च पोल के अनुसार, एक सर्वेक्षण में पाया गया कि 70 प्रतिशत किशोर अपने माता-पिता से अपने ऑनलाइन व्यवहार को छिपा लेते हैं।
साल 2018 के एक अध्ययन में पाया गया कि 14 से 17 साल के बच्चे, जो प्रतिदिन सात घंटे सोशल मीडिया का उपयोग करते थे, उनमें अवसाद, मानसिक स्वास्थ्य या मनोवैज्ञानिक बीमारी की संभावना दोगुने से अधिक थी। ये सोशल मीडिया एप्स तो जान-बूझकर किशोर लड़कियों और युवतियों की अर्धनग्न तस्वीर चित्रित करते हैं, ताकि अधिक से अधिक युवा जुड़े और अधिक से अधिक लड़कियां ऐसा करने के लिए प्रेरित हो सकें।
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ये भारत के भविष्य के लिए अत्यंत भयावह है
उदाहरण के लिए Silhouette Challenge को ही ले लीजिये। इस चुनौती को स्वीकार करने वाली छोटी या युवा लड़कियां कैमरे के सामने खड़ी होती हैं। फिर वो इस एप का फ़िल्टर स्टार्ट करती हैं, जिसमें उनके शरीर की नग्न और लाल छायाप्रती चित्रित होती है! साथ ही शरीर की पूरी काया और संरचना उभर कर आती है, जिसे वो पोस्ट कर देती हैं। महिला सशक्तिकरण के नाम पर इस प्रकार के व्यसन को बढ़ावा दिया जा रहा है! Instagram पर इस प्रकार के 1,00,000 से ज्यादा पोस्ट आ चुके हैं, जिसे करोड़ो लोगों ने देखा और किया भी है। ये कुछ ऐसे तथ्य और रिपोर्ट हैं जो आपको विचलित और व्यथित कर सकते है!
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म शुरू में बच्चों के लिए नहीं बनाए गए थे, लेकिन उसके बावजूद एक उचित नियंत्रण समूह के बिना बच्चे उन प्लेटफार्मों के प्रभावों का परीक्षण करने वाले एक विशाल प्रयोग का विषय रहे हैं। भारत आज सर्वाधिक इंटरनेट डेटा इस्तेमाल करने वाले देशों में से है, पर जब हम ऐसे तथ्यों और रिपोर्ट्स के परिप्रेक्ष्य में इसे देखते हैं, तो यह भारत के भविष्य के लिए अत्यंत भयावह है।
नग्नता, नीचता, हीनता, क्रूरता आदि से भरे ये सोशल मीडिया एप्स हमारे भविष्यों की बाल्यावस्था को खा रहे हैं, हमारे बच्चियों को सिर्फ एक यौन वस्तु बनने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं! एक अभिभावक के तौर पर आपको यह सोचना ही होगा कि आखिर इन गंदगियों से भरे हमारे युवाओं का दिमाग देश का भला कैसे करेगा? सबसे ज्यादा इंटरनेट यूज करना गर्व की बात नहीं होनी चाहिए। लेकिन अगर हम इंटरनेट का सदुपयोग करनेवाले सबसे बड़ा राष्ट्र बने, तब ये गर्व का विषय है।
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