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भारतीय शिक्षा व्यवस्था में अमेरिकी कूड़ा ला रही है NCERT, और मोदी सरकार बनी बैठी है मूकदर्शक

NCERT के सुझाव, लड़के और लड़कियों के लिए अलग-अलग नहीं एक ही हो शौचालय!

Krishna Bajpai द्वारा Krishna Bajpai
2 November 2021
in चर्चित
भारतीय शिक्षा व्यवस्था में अमेरिकी कूड़ा ला रही है NCERT, और मोदी सरकार बनी बैठी है मूकदर्शक
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कभी सनातन संस्कृति का अपमान, तो कभी आपत्तिजनक भाषाई ज्ञान… NCERT की पुस्तकें देश की मूलभूत संस्कृति से छात्रों को‌ विमुख करने का एजेंडा चलाती रहीं हैं, लेकिन अब लैंगिकक असमानताओं से लेकर अश्लीलता और फूहड़ता को भी प्रगतिशील शैक्षिक व्यवस्था के नाम पर थोपने की प्लानिंग शुरू हो चुकी है, जिसका पर्याय हाल ही में NCERT द्वारा शिक्षकों के लिए घोषित की गई नई प्रशिक्षण सामग्री है‌, जो कि लिंग पहचान, लिंग असंगति, लिंग डिस्फोरिया, विभिन्न अन्य लोगों के बीच लिंग पुष्टि जैसी अवधारणाओं की व्याख्या करती है। ये दिखावा तो प्रगतिशील समाज का है, लेकिन सोच देश की मूलभूत संस्कृति को नष्ट करने की है। ऐसे में सवाल ये उठता है कि मोदी सरकार इस मुद्दे पर क्या कर रही है, और ऐसी घिनौनी सोच वालों को अभी तक NCERT से जोड़कर क्यों रखा गया है।

मोदी सरकार ने देश की शिक्षण पद्धति में कई बड़े बदलाव किए हैं, नई शिक्षा नीति इसकी परिचायक भी है। वहीं शिक्षण व्यवस्था में वामपंथ का विष घोलने वालों पर कार्रवाई भी की गईं हैं, लेकिन एक सच ये भी है कि देश की नौकरशाही में वामपंथ कुछ इस हद तक फैला हुआ है, जिसकी सफाई में मोदी सरकार भी विफल दिख रही है। हाल ही में NCERT की प्रशिक्षण संबंधी सामाग्री सामने आई है, जिसको लेकर सटीक शब्दों में ये कहा जा सकता है, कि ये अमेरिकी सोच को भारतीय छात्रों पर थोपे जाने की एक प्लानिंग है। प्रत्येक मुद्दे में लैंगिकता, लैंगिक समानताओं आदि का उल्लेख होता है, जिसका उद्देश्य भारत की मूलभूत संस्कृति की हत्या प्रतीत होता है, किन्तु इसे समाज के प्रत्येक तबके तक शिक्षा की ज्योति जलाने की नौटंकी के तहत परिभाषित किया जा रहा है।

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नई प्रशिक्षण सामाग्री

दरअसल, Firstpost की एक रिपोर्ट के मुताबिक, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) द्वारा शिक्षा में लैंगिक असमानता को दूर करने का उद्देश्य दिखाते हुए स्कूली शिक्षा में ट्रांसजेंडर बच्चों को शामिल करने को लेकर शिक्षकों और प्रशासकों के लिए एक जागरूकता प्रशिक्षण मैन्युअल तैयार किया गया है। खास बात ये है कि इस परियोजना का समन्वय डॉ पूनम अग्रवाल, प्रोफेसर और पूर्व प्रमुख, कर रही हैं, जो कि एनसीईआरटी के लिंग अध्ययन विभाग से संबंधित है।

संस्थान द्वारा जारी ये प्रशिक्षण सामग्री एक विस्तृत शब्दावली के माध्यम से लिंग पहचान, लिंग असंगति, लिंग डिस्फोरिया, लिंग पुष्टि, लिंग अभिव्यक्ति, लिंग अनुरूपता, लिंग भिन्नता, विषमलैंगिकता, समलैंगिकता, अलैंगिकता, उभयलिंगीता, ट्रांसनेगेटिविटी जैसी अवधारणाओं की व्याख्या करती है। यह उन शब्दों की परिभाषा भी प्रदान करता है जिनका उपयोग लोग स्वयं की पहचान करने के लिए करते हैं। ध्यान देने वाली बात ये है कि इनमें से कुछ द्रव, लिंग, ट्रांसफेमिनिन और ट्रांसमास्कुलिन भी हैं।

प्रगतिशीलता और सकारात्मकता का ढोंग

अगर इस सामाग्री पर गौर करेंगे तो ये कहा जा सकता है कि ये किसी नौटंकी से कम नहीं है। इसमें लोगों को समलैंगिकता, अलैंगिकता समेत जेंडर फ्लूडिटी और जेंडर आईडेंटिटी समान कई धारणाएँ समझाई गई हैं। इसे (NCERT) द्वारा जहाँ एक सकारात्मक कदम बताया जा रहा है, वहीं इस प्रशिक्षण में कई विचित्र अवधारणाएँ सामने रखी गई हैं। समूचे प्रशिक्षण को एनसीईआरटी के जेंडर स्टडीज़ विभाग की प्रोफेसर और पूर्व अध्यक्षा डॉ पूनम अग्रवाल की देखरेख में किया जा रहा है। इस सामाग्री की प्रस्तावना से ही इसके हिन्दू घृणा से प्रेरित होने के संकेत मिलने लगते हैं। इसमें जाति व्यवस्था को ट्रांसजेंडर समुदाय के विरुद्ध बताया गया है और उसी को ट्रांसजेंडर समुदाय के साथ भेदभाव का कारण भी कहा गया है।

शौचालय पर नया एजेंडा

इस नई प्रशिक्षण सामाग्री में शौचालयों को लेकर भी विचित्र सिद्धांत सुझाए गए हैं, जिसमें कहा गया है कि शौचालयों का उपयोग बच्चों को बाइनरी जेंडर में बदल देने के लिए किया जाता है। इसके अनुसार, महिलाओं और बच्चियों को लड़कियों वाले शौचालय का उपयोग और पुरुषों को लड़कों के लिए चिन्हित किए गए शौचालय का उपयोग करने के लिए बाध्य किया जाता है, जो कि गलत है। ऐसे में जिन बच्चों को जेंडर डिस्फोरिया का सामना करना पड़ता है, वे शौचालय का चयन करते समय संघर्ष यानी कठिनाई महसूस करते हैं।

इसमें सर्वनामों, यानी ‘प्रोनाउंस’ के लिए सही इस्तेमाल करने की बात कही गई है। साथ ही इसमें ये भी कहा गया कि स्कूल में होने वाली कुछ प्रथाओं को बदला जाना चाहिए, जिसमें असेंबली और सभाओं में लड़के और लड़कियों की अलग पंक्ति को अलग-अलग पंक्ति, दोनों की ड्रेस में अंतर आदि हैं, और सभी के लिए केवल एक यूनिफॉर्म घोषित होनी चाहिए।

कमेटी में वामपंथी मानसिकता

NCERT के लिंग अध्ययन विभाग द्वारा प्रशिक्षण सामाग्री के नाम पर जो अमेरीकी सोच को थोपने का प्रयास किया गया है, वो असल में इस कमेटी के प्रत्येक सदस्यों की सोच का प्रतीक है। ये सभी जैंडर इक्वलिटी के अलावा ट्रांसजेंडर के अधिकारों के नाम पर हिन्दू घृणा को प्रमोट करते रहते हैं। इसमें से एक सदस्य का नाम विक्रमादित्य सहाय है, जो कि एक ट्रांसजेंडर है। ये शख्स दिल्ली यूनिवर्सिटी का पढ़ा हुआ है, कहने को तो ये एक रिसर्चर है, लेकिन फिलहाल ये दिल्ली के हिन्दू कॉलेज के डिपार्टमेंट ऑफ सोशियोलॉजी में कार्यरत है।

This is one of the "External Team Members" of the project that produced the woke NCERT training manual for teachers pic.twitter.com/lwbwDKqCUK

— Sensei Kraken Zero (@YearOfTheKraken) November 1, 2021

 

कमेटी में शामिल विक्रमादित्य स्वयं को एक प्रगतिशील सोच वाला व्यक्ति बताता है, लेकिन सच तो ये है कि ट्रांसजेंडर्स के अधिकारों के नाम पर ये शख्स भारतीय संस्कृति को नष्ट करने के लिए एनसीईआरटी की कमेटी में बैठकर देश की शिक्षण प्रणाली की धज्जियां उड़ा रहा है। इसकी ट्विटर प्रोफाइल इस बात का पर्याय है, कि इसे हिंदुओं के प्रति कितनी अधिक नफ़रत है। हिन्दू धर्म को एक साधारण अनुष्ठान बताते हुए ये अनेकों घृणास्पद बयान देता रहा है, जो दिखाता है कि ऐसे लोग देश की संस्कृति के लिए कितने अधिक खतरनाक है।

https://twitter.com/BharadwajSpeaks/status/1455142555402727428?t=Vi3f2dXC4rkmMUh3Yzmo_Q&s=19

https://twitter.com/Gussfr1ng/status/1455135068444319748?t=QCWe2xMrg7jsaOWyrHp8CA&s=19

 

आलोचनाओं की बन गया वजह

एक तरफ एनसीईआरटी द्वारा ये मैनुअल सामने आया तो दूसरी ओर आलोचनाओं ने तूफान मचा दिया है। ट्विटर पर इस नई प्रशिक्षण सामग्री की खूब आलोचना हो रही है, लोगों का स्पष्ट तौर पर मानना है कि ये अमेरिकी Woke नौपटियों को भारत में स्वीकृति देने की एक पहल है जो कि देश के लिए ख़तरनाक है। इसको लेकर सवाल खड़े किए जा रहे हैं कि आख़िर एनसीईआरटी में इस तरह की नौटंकी कैसे बर्दाश्त की जा रही है। लोगों का मानना है कि इस अमेरिकी नौटंकी को खत्म किया जाना चाहिए। लोगों का मानना ये भी है कि ये देश की संस्कृति सभ्यता और सामाजिक व्यवस्था के लिए बर्बादी का प्रतीक है, और इस मुद्दे पर मोदी सरकार को सीधे निशाने पर लिया जा रहा हैl

https://twitter.com/MNageswarRaoIPS/status/1455066284157063168?t=ny4uH1Pfi7KAU-xDaPKUhA&s=19

Disaster unfolding in front of our eyes. Instead of teaching Sanskrit, Shashtras & our culture; Gender Fluidity is priority of NCERT. What is HRD Minister doing 🤷🏻‍♂️ https://t.co/T9seTAejM4

— Navroop Singh (@TheNavroopSingh) November 1, 2021

 

क्या कर रही मोदी सरकार?

NCERT द्वारा शिक्षकों के लिए ये नई शिक्षण सामाग्री सामने आने के बाद अब मोदी सरकार की आलोचना की जा रही है, कि आख़िर हिन्दू हितैषी सरकार के रहते ये सबकुछ कैसे हो रहा है, क्योंकि ये नई सामाग्री तो निश्चित तौर पर हिन्दू संस्कृति को नष्ट करने का प्रतीक बनकर सामने आई है। इन सभी नौटंकियों के पीछे देश की नौकरशाही है, जिसमें घुले वामपंथ के जहर को खत्म करने में मोदी सरकार को सबसे ज्यादा कठिनाई आती है। Wokism का अड्डा बन चुके भारत के विश्वविद्यालयों के परिसरों में वामपंथ की जड़ें अभी भी बेहद मजबूत है, और यहीं, से जारी किए गए प्रस्ताव बिना सोचे समझे जब NCERT द्वारा स्वीकार कर लिए जाये है, तो मोदी सरकार पर सवाल खड़े होने लगते हैं, जो कि एक स्वाभाविक स्थिति है। फ़िलहाल इस मैन्युअल को वेबसाइट से हटा लिया गया है लेकिन अब भी प्रश्न स्वाभाविक है, कि आखिर ऐसी शिक्षण सामाग्री की आवश्यकता ही क्या है?

और पढ़े : NCERT बनी Woke, सेक्स-इच्छुक; लोगों को कमिटी सदस्य बनाकर बच्चों पर थोप रही है लिंग शब्दजाल

Tags: NCERTजेंडर स्टडीजहिंदू विरोधी
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