श्रीलंका का सरकारी अमला पिछले दिनों भारत दौरे पर था। श्रीलंका के वित्त मंत्री बेसिल राजपक्षे भारत पहुंचे थे। राजपक्षे ने श्रीलंका में आर्थिक स्थिति और कोविड महामारी के बाद की चुनौतियों से निपटने के लिए अपनी सरकार के दृष्टिकोण के बारे में भारतीय पक्ष को जानकारी दी। इस साल जुलाई में पदभार संभालने के बाद से वित्त मंत्री राजपक्षे की यह पहली विदेश यात्रा थी।
दो दिवसीय यात्रा के दौरान, राजपक्षे ने केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और विदेश मंत्री एस. जयशंकर के साथ दो दौरे की संयुक्त चर्चा की। उन्होंने पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से भी मुलाकात की। अब इतने बड़े-बड़े नेताओं और अधिकारियों से बात हुई है, तो भारत सरकार अपने एजेंडे को किनारे कैसे रख सकती थी और वो भी तब, जब श्रीलंका को उसकी जरुरत है इसलिए भारत सरकार ने मदद की पेशकश तो की है, लेकिन उसके साथ ही ऐसा माना जा रहा है कि एक तरह से चीन के कब्जे से श्रीलंका को छीन भी लिया है!
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श्रीलंका की सहायता के लिए तत्काल पैकेज पर काम रही सरकार
सरकारी अधिकारियों ने इकोनॉमिक टाइम्स को बताया कि भारत से ऊर्जा सुरक्षा पैकेज और मुद्रा स्वैप के साथ-साथ तत्काल आधार पर श्रीलंका में खाद्य और स्वास्थ्य सुरक्षा पैकेज का विस्तार करने और भारतीय निवेश को आगे बढ़ाने की उम्मीद है। राजपक्षे की यात्रा के दौरान इस बात पर सहमति बनी कि इन उद्देश्यों को पूरा करने की प्रक्रियाओं को परस्पर सहमत समय के भीतर जल्दी ही अंतिम रूप दे दिया जाएगा। वित्त मंत्री बेसिल राजपक्षे की नई दिल्ली यात्रा के बाद श्रीलंका की सहायता के लिए भारत तत्काल आधार पर एक पैकेज पर काम कर रहा है, जिसमें आर्थिक संकट से निपटने के उपायों पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जिसका सामना द्वीप राष्ट्र कर रहा है।
खाद्य और स्वास्थ्य सुरक्षा पैकेज में भारत से खाद्य, दवाओं और अन्य आवश्यक वस्तुओं के आयात को कवर करने के लिए एक लाइन ऑफ क्रेडिट के विस्तार की परिकल्पना की गई है। ऊर्जा पैकेज में भारत से ईंधन के आयात को कवर करने और त्रिंकोमाली तेल टैंक फार्म के प्रारंभिक आधुनिकीकरण को कवर करने के लिए लाइन ऑफ क्रेडिट भी शामिल होगा।
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श्रीलंका के विभिन्न क्षेत्रों में भारतीय निवेश को सुविधाजनक बनाने का भी निर्णय लिया गया है, जो विकास और रोजगार के विस्तार में योगदान देगा। श्रीलंकाई वित्त मंत्री राजपक्षे, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पैकेज की डिलीवरी के समन्वय के लिए संचार की सीधी लाइनें खोलने और एक दूसरे के साथ सीधे और नियमित संपर्क में रहने पर सहमति व्यक्त की है।
यहां आखिरी पंक्ति को समझना जरूरी है। भारत सरकार को कुछ और नहीं चाहिए, क्योंकि श्रीलंका कुछ दे सके, वो उस स्थिति में नहीं है। भारत के योगदान का मुख्य कारण चीन से बदला लेना है। चीन ने एक लंबे समय से डेब्ट ट्रैप डिप्लोमेसी के तहत श्रीलंका को कब्जे में कर रखा है। हंबनटोटा बंदरगाह का 99 वर्ष वाला लीज भी इसीलिए बढ़ा था। अब श्रीलंका में चीन के प्रभाव को समाप्त करने हेतु भारत सरकार जोर-शोर से अपनी तैयारियों में लग गई है।
श्रीलंका सरकार ने जारी किया बयान
दूसरी ओर भारत सरकार से वार्ता के बाद श्रीलंका सरकार ने कहा कि “श्रीलंका के वित्त मंत्री की अपने भारतीय समकक्ष और विदेश मंत्री के साथ चर्चा में आर्थिक सहयोग पहलू पर विशेष ध्यान देने के साथ-साथ, द्विपक्षीय संबंधों से संबंधित पारस्परिक महत्व के मुद्दों की एक पूरी श्रृंखला पर ध्यान केंद्रित किया गया है। दोनों पक्षों ने द्विपक्षीय संबंधों के विकसित हो रहे पथ पर संतोष व्यक्त किया है। चर्चा के दौरान, उन्होंने उन तरीकों और साधनों की पहचान की, जिनके माध्यम से दोनों देशों के बीच मौजूदा द्विपक्षीय आर्थिक संबंधों और व्यापक को गहरा किया जा सकता है।”
गौरतलब है कि कोविड के बाद श्रीलंका आर्थिक संकट और चीन के बढ़ते कर्ज से जूझ रहा है। पिछले साल की तुलना में इस साल के पहले सात महीनों में श्रीलंका के तेल का बिल 41.5 फीसदी उछलकर 2 अरब डॉलर हो गया है। अपनी सुस्त अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए अब उसने भारत से मदद मांगी है।
काफी लंबे समय से चीन के झांसे में आकर भारत के महत्व को न समझने वाले श्रीलंका की अब लंका लग गई है, तब उसे भारत की याद आई है। यहां तक कि श्रीलंका के वित्त मंत्री ने खुद भारत का दौरा कर अपनी देश की स्थिति को बयां किया है, जिसके बाद भारत उनकी मदद करने की कोशिशों में लगा है। ऐसे में यह माना जा रहा है कि भारत सरकार ने एकदम लाजवाब तरीके से श्रीलंका को अपने साथ कर लिया है। अगर भारत खुद से जाकर मदद पेश करता, शायद श्रीलंका को महत्व समझ में नहीं आता। अब उसे अच्छे से समझ आ रहा है कि बड़े भाई का साथ क्यों नहीं छोड़ना चाहिए!
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