श्री शिव कवचम स्तोत्र –
Shiv Kavach Mantra Shloka
ॐ नमो भगवते सदा-शिवाय | त्र्यम्बक सदा-शिव !
नमस्ते-नमस्ते । ॐ ह्रीं ह्लीं लूं अः एं ऐं महा-घोरेशाय नमः ।
ह्रीं ॐ ह्रौं शं नमो भगवते सदा-शिवाय ।
Shiv Kavach Mantra 1
सकल-तत्त्वात्मकाय, आनन्द-सन्दोहाय, सर्व-मन्त्र-
स्वरूपाय, सर्व-यंत्राधिष्ठिताय, सर्व-तंत्र-प्रेरकाय, सर्व-
तत्त्व-विदूराय,सर्-तत्त्वाधिष्ठिताय, ब्रह्म-रुद्रावतारिणे,
नील-कण्ठाय, पार्वती-मनोहर-प्रियाय, महा-रुद्राय, सोम-
सूर्याग्नि-लोचनाय, भस्मोद्-धूलित-विग्रहाय, अष्ट-गन्धादि-
गन्धोप-शोभिताय, शेषाधिप-मुकुट-भूषिताय, महा-मणि-मुकुट-
धारणाय, सर्पालंकाराय, माणिक्य-भूषणाय, सृष्टि-स्थिति-
प्रलय-काल-रौद्रावताराय, दक्षाध्वर-ध्वंसकाय, महा-काल-
भेदनाय, महा-कालाधि-कालोग्र-रुपाय, मूलाधारैक-निलयाय ।
Shiv Kavach Mantra 2
तत्त्वातीताय, गंगा-धराय, महा-प्रपात-विष-भेदनाय, महा-
प्रलयान्त-नृत्याधिष्ठिताय, सर्व-देवाधि-देवाय, षडाश्रयाय,
सकल-वेदान्त-साराय, त्रि-वर्ग-साधनायानन्त-कोटि-
ब्रह्माण्ड-नायकायानन्त-वासुकि-तक्षक-कर्कोट-शङ्ख-
कुलिक-पद्म-महा-पद्मेत्यष्ट-महा-नाग-कुल-भूषणाय, प्रणव-
स्वरूपाय । ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः, हां हीं हूं हैं हौं हः ।
Shiv Kavach Mantra 3
चिदाकाशायाकाश-दिक्स्वरूपाय, ग्रह-नक्षत्रादि-सर्व-
प्रपञ्च-मालिने, सकलाय, कलङ्क-रहिताय, सकल-लोकैक-
कर्त्रे, सकल-लोकैक-भर्त्रे, सकल-लोकैक-संहर्त्रे, सकल-
लोकैक-गुरवे, सकल-लोकैक-साक्षिणे, सकल-निगम-गुह्याय,
सकल-वेदान्त-पारगाय, सकल-लोकैक-वर-प्रदाय, सकल-
लोकैक-सर्वदाय, शर्मदाय, सकल-लोकैक-शंकराय ।
Shiv Kavach Mantra 4
शशाङ्क-शेखराय, शाश्वत-निजावासाय, निराभासाय,
निराभयाय, निर्मलाय, निर्लोभाय, निर्मदाय, निश्चिन्ताय,
निरहङ्काराय, निरंकुशाय, निष्कलंकाय, निर्गुणाय,
निष्कामाय, निरुपप्लवाय, निरवद्याय, निरन्तराय,
निष्कारणाय, निरातङ्काय, निष्प्रपंचाय, निःसङ्गाय,
निर्द्वन्द्वाय, निराधाराय, नीरागाय, निष्क्रोधाय, निर्मलाय,
निष्पापाय, निर्भयाय, निर्विकल्पाय, निर्भेदाय, निष्क्रियाय,
निस्तुलाय, निःसंशयाय, निरञ्जनाय, निरुपम-विभवाय, नित्य-
शुद्ध-बुद्धि-परिपूर्ण-सच्चिदानन्दाद्वयाय, ॐ हसौं ॐ
हसौः ह्रीम सौं क्षमलक्लीं क्षमलइस्फ्रिं ऐं
क्लीं सौः क्षां क्षीं क्षूं क्षैं क्षौं क्षः।
Shiv Kavach Mantra 5
परम-शान्त-स्वरूपाय, सोहं-तेजोरूपाय, हंस-तेजोमयाय,
सच्चिदेकं ब्रह्म महा-मन्त्र-स्वरुपाय,
श्रीं ह्रीं क्लीं नमो भगवते विश्व-गुरवे, स्मरण-मात्र-
सन्तुष्टाय, महा-ज्ञान-प्रदाय, सच्चिदानन्दात्मने महा-
योगिने सर्व-काम-फल-प्रदाय, भव-बन्ध-प्रमोचनाय,
क्रों सकल-विभूतिदाय, क्रीं सर्व-विश्वाकर्षणाय ।
Shiv Kavach Mantra 6
जय जय रुद्र, महा-रौद्र, वीर-भद्रावतार, महा-भैरव, काल-
भैरव, कल्पान्त-भैरव, कपाल-माला-धर, खट्वाङ्ग-खङ्ग-
चर्म-पाशाङ्कुश-डमरु-शूल-चाप-बाण-गदा-शक्ति-भिन्दिपाल-
तोमर-मुसल-मुद्-गर-पाश-परिघ-भुशुण्डी-शतघ्नी-ब्रह्मास्त्र-
पाशुपतास्त्रादि-महास्त्र-चक्रायुधाय ।
Shiv Kavach Mantra 7
भीषण-कर-सहस्र-मुख-दंष्ट्रा-कराल-वदन-विकटाट्ट-हास-
विस्फारित ब्रह्माण्ड-मंडल नागेन्द्र-कुण्डल नागेन्द्र-हार
नागेन्द्र-वलय नागेन्द्र-चर्म-धर मृत्युञ्जय त्र्यम्बक
त्रिपुरान्तक विश्व-रूप विरूपाक्ष विश्वम्भर विश्वेश्वर वृषभ-
वाहन वृष-विभूषण, विश्वतोमुख ! सर्वतो रक्ष रक्ष, ज्वल
ज्वल प्रज्वल प्रज्वल स्फुर स्फुर आवेशय आवेशय, मम
हृदये प्रवेशय प्रवेशय, प्रस्फुर प्रस्फुर ।
Shiv Kavach Mantra 8
महा-मृत्युमप-मृत्यु-भयं नाशय-नाशय, चोर-भय-
मुत्सादयोत्सादय, विष-सर्प-भयं शमय शमय, चोरान् मारय
मारय, मम शत्रुनुच्चाट्योच्चाटय, मम क्रोधादि-सर्व-सूक्ष्म-
तमात् स्थूल-तम-पर्यन्त-स्थितान् शत्रूनुच्चाटय, त्रिशूलेन
विदारय विदारय, कुठारेण भिन्धि भिन्धि, खड्गेन
छिन्धि छिन्धि, खट्वांगेन विपोथय विपोथय, मुसलेन निष्पेषय
निष्पेषय, वाणैः सन्ताडय सन्ताडय, रक्षांसि भीषय भीषय,
अशेष-भूतानि विद्रावय विद्रावय, कूष्माण्ड-वेताल-मारीच-
गण-ब्रह्म-राक्षस-गणान् संत्रासय संत्रासय, सर्व-रोगादि-
महा-भयान्ममाभयं कुरु कुरु, वित्रस्तं मामाश्वासयाश्वासय,
नरक-महा-भयान्मामुद्धरोद्धर, सञ्जीवय सञ्जीवय, क्षुत्-
तृषा-ईर्ष्यादि-विकारेभ्यो मामाप्याययाप्यायय दुःखातुरं
मामानन्दयानन्दय शिवकवचेन मामाच्छादयाच्छादय ।
मृत्युञ्जय त्र्यंबक सदाशिव ! नमस्ते नमस्ते, शं ह्रीं ॐ ह्रों ।
महादेव महादेव महादेवेति यो वदेत।
एकेन मुक्तिमाप्नोति द्वाभ्यां शम्भू ऋणी भवेत।।
देवों के देव महादेव शिव की महिमा ही अलग है. उनकी अपार महिमा का गयान कोई नहीं कर सकता. भोलेनाथ की महिमा का विस्तृत वर्णन शिव पुराण में मिलता है. महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित 18 पुराणों में कोई भी ऐसा पौराणिक ग्रंथ नहीं है जिसमें भगवान शिव की महिमा से संबंधित कोई प्रसंग उपस्थित न हुआ हो.
और पढ़े: Shanti Path – शांति पाठ का महत्त्व अर्थ सहित
कौन हैं शिव
शिव संस्कृत भाषा का शब्द है. जिसका अर्थ है. जहां ‘शि’ का अर्थ है, पापों का नाश करने वाला, वहीं ‘व’ का अर्थ देने वाला यानी दाता. कल्याणकारी या शुभकारी. यजुर्वेद में शिव को शांतिदाता बताया गया है. शिव का नाम शंकर के साथ जोड़ा जाता है.जिसे लोग ‘शिव शंकर भोलेनाथ’ कहते हैं. इस तरह अनजाने ही कई लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम बताते हैं. असल में, दोनों की प्रतिमाएं अलग-अलग आकृति की हैं.
शंकर को हमेशा तपस्वी रूप में दिखाया जाता है. कई जगह तो शंकर को शिवलिंग का ध्यान करते हुए दिखाया गया है. शिव ने सृष्टि की स्थापना, पालना और विनाश के लिए क्रमश: ब्रह्मा, विष्णु और महेश (महेश भी शंकर का ही नाम है) नामक तीन सूक्ष्म देवताओं की रचना की है. इस तरह शिव ब्रह्मांड के रचयिता हुए और शंकर उनकी एक रचना. भगवान शिव को इसीलिए महादेव भी कहा जाता है. इसके अलावा शिव को 108 दूसरे नामों से भी जाना और पूजा जाता है.
और पढ़े: धार्मिक कथा संग्रह हिंदी में
शिवलिंग
शिव की दो काया है. एक वह, जो स्थूल रूप से व्यक्त किया जाए, दूसरी वह, जो सूक्ष्म रूपी अव्यक्त लिंग के रूप में जानी जाती है. शिव की सबसे ज्यादा पूजा लिंग रूपी पत्थर के रूप में ही की जाती है. लिंग शब्द को लेकर बहुत भ्रम होता है. संस्कृत में लिंग का अर्थ है चिह्न. इसी अर्थ में यह शिवलिंग के लिए इस्तेमाल होता है. शिवलिंग का
अर्थ है : शिव यानी परमपुरुष का प्रकृति के साथ समन्वित-चिह्न.
नर्मदा नदी से प्राप्त पाषाणमय शिवलिंग जिसे नार्मद शिवलिंग कहते हैं. यह भी सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति में सहायक है. नर्मदा से प्राप्त शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा नहीं करनी होती. नर्मदा पुराण के अनुसार नर्मदा से प्राप्त नर्मदा ङ्क्षलग चैतन्य शिवलिंग (गाय के गोबर से निर्मित शिवलिंग) का पूजन भिन्न-भिन्न प्रकार की अभीष्ट सिद्धि में सहायक है.
और पढ़े: Damodarastakam Path Shloka Lyrics with Meaning in Hindi
भगवान शिव जी को मृत्युंजय भी कहते हैं. इनकी कृपा से मृत्यु के समीप पहुंचा व्यक्ति भी स्वस्थ होकर जीवित हो उठता है.शिव के साधक को न तो मृत्यु का भय रहता है, न रोग का, न शोक का. शिव तत्व उनके मन को भक्ति और शक्ति का सामर्थ्य देता है. शिव तत्व का ध्यान महामृत्युंजय मंत्र के जरिए किया जाता है. इस मंत्र के जाप से भगवान शिव की कृपा मिलती है. शास्त्रों में इस मंत्र को कई कष्टों का निवारक बताया गया है.
मंत्र : ओम् त्र्यम्बकं यजामहे, सुगंधिं पुष्टिवर्धनम्. उर्वारुकमिव बन्धनात्, मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।।
भगवान शिव के अमोघ कवच (Shiv Kavach) के पाठ करने से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. कहा जाता है. भगवान शिव के शिवलिंग का पूजन और अभिषेक जल, पंचगव्य से पंचोपचार या षोडषोपचार विधि से रुद्राष्टाध्यायी के मंत्रों द्वारा विद्वानों के सहयोग से किया जाता है.
शिव भक्त स्वयं भी लौकिक मंत्रों से पूजन/ अभिषेक कर सकते हैं. भगवान शिव के पंचाक्षर मंत्र से भी पूजन अभिषेक किया जा सकता है.साथ ही शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हुए ओम नम: शिवाय का जाप करके और शिव का ध्यान करके शिव को प्रसन्न किया जा सकता है. जिससे भगवान शिव प्रसन्न होकर भक्त की इच्छा को पूरी करते हैं.
शिव को अर्द्धनारीश्वर भी कहते हैं. जिसका अर्थ यह नहीं है कि शिव आधे पुरुष ही हैं या उनमें संपूर्णता नहीं. बल्कि इस सृष्टि के आधार और रचयिता यानी
स्त्री-पुरुष शिव और शक्ति के ही स्वरूप हैं. इनके मिलन और सृजन से यह संसार संचालित और संतुलित है. दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं. नारी प्रकृति है और नर पुरुष. प्रकृति के बिना पुरुष बेकार है और पुरुष के बिना प्रकृति.
और पढ़े: Shri Sheetla Mata Chalisa Chaupai, शीतला अष्टमी का महत्व एवं पूजा विधि