भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को विपक्षी पार्टियों ने ढेरों अपशब्द कहे। इसमें कांग्रेस पार्टी का नाम सर्वोपरि है, क्योंकि वर्ष 2007 के गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने उन्हें ‘मौत का सौदागर’ कहा था। मणिशंकर अय्यर ने उन्हें चाय बेचनेवाला कह अपमानित किया। वहीं, अब पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने इसी परंपरा को दोहराते हुए प्रधानमंत्री मोदी की सुरक्षा से खिलवाड़ कर कुछ प्रदर्शनकारियों ने उनके काफिले को मोगा-फिरोजपुर फ्लाईओवर पर रोका, जिसके बाद PM मोदी को वापिस लौटना पड़ा। यह न केवल PM मोदी का व्यक्तिगत स्तर पर अपमान था अपितु प्रधानमंत्री पद की गरिमा के साथ किया गया खिलवाड़ भी था।
ऐसे में, CM चन्नी को जानना चाहिए था कि पिछले दो दशकों में ऐसे कई उदाहरण हैं (सोनिया गांधी ने PM मोदी को ‘मौत का सौदागर कहा था, जिसके बाद वो भारी बहुमत के साथ गुजरात चुनाव जीत गए) जब विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने नरेंद्र मोदी की सुरक्षा से खिलवाड़ करने की कोशिश की और उन्हें इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी है। कई और ऐसे उदाहरण हैं, जिसका उल्लेख इस लेख के माध्यम से किया गया है।
गांधी मैदान का ब्लास्ट जब नरेंद्र मोदी…
नरेंद्र मोदी ने 2014 लोकसभा चुनाव अभियान की बागडोर संभाली जिसके बाद वे 27 अक्टूबर 2013 को पटना में हुंकार रैली का आयोजन करने पहुंचे थे। उस समय तक भाजपा द्वारा उन्हें प्रधानमंत्री पद का आधिकारिक उम्मीदवार भी घोषित कर दिया गया था। पूरे देश में मोदी लहर साफ दिखाई दे रही थी। केंद्रीय खुफिया एजेंसियों ने पहले ही आशंका जताई थी कि मोदी की रैली जिहादी आतंकी समूहों के निशाने पर है किन्तु बिहार पुलिस ने न तो साजिशकर्ताओं को पकड़ने के लिए कोई विशेष अभियान चलाया और न ही रैली स्थल पर कड़ी निगरानी रखी। इस वजह से आतंकी अपने मंसूबे में कामयाब हो गए और गांधी मैदान में अलग-अलग जगहों पर IED (Improvised Explosive Device) लगाने में कामयाब रहे।
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विस्फोट के बाद भी अडिग रहे नरेंद्र मोदी
गांधी मैदान में सिलसिलेवार बम विस्फोट होते रहे पर नरेंद्र मोदी अडिग रहे। गांधी मैदान में बार-बार धमाकों की खबर उन्हें मिलती रही लेकिन उन्होंने धमाकों के बावजूद अपनी रैली के मुख्य उद्देश्य यानी विकास की राजनीति पर जोर दिया। दुर्भाग्यवश, गांधी मैदान में हुए सात विस्फोटों में छह लोगों की जान चली गई और 89 अन्य घायल हो गए। नीतीश उस समय राज्य के गृह मंत्री भी थे पर सुशासन बाबू ने ना तो किसी को पकड़ा और ना ही दंडित किया। मोदी की रैली का नतीजा यह हुआ कि 2014 के लोकसभा चुनाव में बिहार में लोगों ने कुल 40 सीटों में से 31 को NDA की झोली में डाल दी। इनमें से 22 सीटें भाजपा को, छह सीटें रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा को और तीन उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा को मिलीं जबकि नीतीश कुमार की पार्टी जद(यू) महज दो सीटों पर सिमट गई।
वहीं, विडंबना यह रही कि नीतीश कुमार को नरेंद्र मोदी की मदद से 2020 का विधानसभा चुनाव जीतना पड़ा और वो भी उनके साथ मंच साझा करते हुए। ऊपर से इन चुनावों में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी जबकि जदयू जूनियर पार्टनर बनी।
नरेंद्र मोदी को हेलीकॉप्टर में जब इंतजार कराया गया
चौधरी चरण सिंह के बेटे और UPA सरकार में नागरिक उड्डयन मंत्री रहे अजीत सिंह को भी मोदी की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ बहुत महंगा पड़ा। ये बात 2014 के लोकसभा चुनाव से ही जुड़ी है। नरेंद्र मोदी फरवरी-मार्च के आसपास देश के अलग-अलग हिस्सों में रोजाना आधा दर्जन रैलियां कर रहे थे। वह हर सुबह अहमदाबाद से उड़ान भरते थे और देर शाम को गांधीनगर में अपने आधिकारिक सीएम आवास पर लौटते थे। उनका एक-एक मिनट कीमती था क्योंकि मोदी न केवल आधिकारिक प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे, बल्कि वे भाजपा और NDA के सबसे बड़े प्रचारक भी थे।
मोदी अपने चुनाव प्रचार के लिए 29 मार्च 2014 को बागपत पहुंचे थे। यह इलाका चौधरी चरण सिंह के परिवार का गढ़ रहा है और अजीत सिंह 1989 से लगातार यहां से चुनाव जीत रहे थे, सिवाय 1998 के चुनाव में जब उन्हें सोमपाल शास्त्री ने हराया था। वहीं, इस क्षेत्र से भाजपा ने सत्यपाल सिंह को मैदान में उतारा था, जो कभी अजीत सिंह के OSD रह चुके हैं और मुंबई पुलिस आयुक्त भी थे। सत्यपाल सिंह के समर्थन में एक चुनावी रैली में आए नरेंद्र मोदी ने अजीत सिंह पर निशाना साधते हुए कहा था कि कांग्रेस ने चौधरी चरण सिंह को प्रधानमंत्री पद पर नहीं रहने दिया और उसी कांग्रेस की गोद में बैठे अजीत सिंह ने अपने पिता का अपमान किया है।
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नरेंद्र मोदी के अपमान के बाद करना पड़ा हार का सामना
इस बात से शायद अजीत सिंह काफी दुखी थे। शायद इसी गुस्से में उस समय के नागरिक उड्डयन मंत्री अजीत सिंह ने अपने अधीनस्थ अधिकारियों को एक निर्देश दिया कि बरेली में पूर्व निर्धारित मोदी की जनसभा में उन्हें हेलीकॉप्टर लैंडिंग की अनुमति ना दी जाए। इस वजह से मोदी बरेली सभा में दो घंटे की देरी से पहुंचे, जहां लोग सुबह से ही उनका इंतजार कर रहे थे। लेकिन नरेंद्र मोदी की मुश्किलें उस दिन और बढ़ने वाली थीं। बरेली की बैठक खत्म करने के बाद जब नरेंद्र मोदी रीवा जाने के लिए हेलीकॉप्टर में सवार हुए तो उसे उड़ान भरने की इजाजत नहीं दी गई। लगभग एक घंटे तक पसीने से लथपथ नरेंद्र मोदी भीषण गर्मी के दिनों में हेलीकॉप्टर में बैठे रहे।
इतना सब करने के बावजूद जब चुनाव के नतीजे आए तो अजीत सिंह और उनकी पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा। अजीत सिंह सत्यपाल सिंह से हार गए, जो राजनीति में नौसिखिए थे। मथुरा में अजीत सिंह के बेटे जयंत चौधरी को ‘ड्रीम गर्ल’ हेमा मालिनी ने आसानी से हरा दिया। अजीत सिंह की पार्टी के अन्य उम्मीदवारों को भी हार का सामना करना पड़ा। वहीं, जयाप्रदा भी बिजनौर से चुनाव हार गईं।
चंद्रबाबू नायडू ने भी नरेंद्र मोदी के खिलाफ उगला था जहर
चंद्रबाबू नायडू ने भी नरेंद्र मोदी की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ किया। 6 जनवरी 2019 को गुंटूर में मोदी की रैली होने से पहले नायडू और उनकी पार्टी तेदेपा ने मोदी के खिलाफ राजनीति की सारी हदें पार कर दीं। ‘मोदी वापस जाओ’ के नारे के साथ पार्टी कार्यकर्ता सड़कों पर उतर आए। माहौल बनाया गया कि अगर मोदी बैठक के लिए आए तो उनके खिलाफ हिंसक विरोध होगा। टकराव से बचने के लिए मोदी को अपना गुंटूर दौरा स्थगित करना पड़ा। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और उसी साल 10 फरवरी को नरेंद्र मोदी गुंटूर में एक रैली करने में सफल रहे। लेकिन मोदी के खिलाफ नायडू का व्यक्तिगत हमला और जहर उगलना जारी रहा।
अंत में जो हुआ वह सर्वविदित है। कभी आंध्र की राजनीति का सबसे बड़ा चेहरा रहे नायडू आज अपने वजूद के लिए कभी न खत्म होने वाली लड़ाई लड़ रहे हैं। 2014 में राज्य के पुनर्गठन के बाद आंध्र प्रदेश में जगनमोहन रेड्डी का दबदबा है। विडंबना यह है कि 2018-19 के लोकसभा-विधानसभा चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी और अमित शाह के खिलाफ जहर उगलने वाले नायडू को नवंबर 2019 में इन दोनों नेताओं को सार्वजनिक रूप से धन्यवाद देना पड़ा, जब केंद्र सरकार ने अमरावती को राज्य की राजधानी के रूप में नामित किया।
पी चिदंबरम ने जब नरेंद्र मोदी को अदालती मामलों में फंसाया था
देश के पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम ने भी कभी मोदी को अदालती मामलों में फंसाने की कोशिश की और उनके सुरक्षा घेरा को भी कम किया। इसका खामियाजा चिदंबरम को भुगतना पड़ा। वो 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ने की हिम्मत भी नहीं जुटा सके और अपने बेटे कार्ति चिदंबरम को शिवगंगा सीट से खड़ा किया। फिर भी उनके बेटे कार्ति को हार का सामना करना पड़ा। मतों की संख्या के मामले में वह चौथे स्थान पर रहे। बता दें कि शिवगंगा वह निर्वाचन क्षेत्र है, जहां से चिदंबरम ने 1984 से सात बार लोकसभा चुनाव जीता था।
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ऐसे में, पंजाब के मुख्यमंत्री चन्नी और उनकी कांग्रेस पार्टी को इन सभी घटनाओं से सीखना चाहिए कि नरेन्द्र मोदी का अपमान और उनकी पद की गरिमा को ठेस पहुँचाने का जवाब देश की जनता दे सकती है। उन्हें यह भी समझना होगा कि PM मोदी से लड़ने के लिए जमीन पर उतरना, कड़ी मेहनत करना और लोगों का विश्वास जीतना होगा। उनके खिलाफ साजिशें काम नहीं आएंगी। इतिहास गवाह है कि जिसने भी PM मोदी के साथ ऐसा करने की कोशिश की है, उसे राजनीतिक नुकसान झेलना पड़ा है।