यूरोप में इस्लाम के विरुद्ध एक विरोध और आक्रोश की भावना का विस्तार हो रहा है। पहले भी यूरोप में इस्लामिक कट्टरपंथ के विरुद्ध खुलकर बोलने वाले लोगों की संख्या अच्छी खासी थी। किंतु अब ऐसे लोगों की संख्या में और अधिक विस्तार देखने को मिल रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार यूरोप में पिछले 2 वर्षों में मुसलमानों पर होने वाले हमले और उनके मजहबी स्थलों पर होने वाली तोड़फोड़ के मामलों में कमी देखने को मिली है, किंतु ऑनलाइन माध्यमों से मुसलमानों और इस्लाम के विरुद्ध बोलने वालों की संख्या में जबरदस्त वृद्धि हुई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यूरोप में इस्लामोफोबिया अपने चरम पर नहीं पहुंचा है, किंतु बहुत खराब स्थिति को प्राप्त हो चुका है।
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फ्रांस में हुई जबरदस्त कार्रवाई
यह जगजाहिर है कि इस्लामिक कट्टरपंथ के विरुद्ध आवाज उठाने वालों और इस्लाम की परंपरागत सोच में सुधार की मांग करने वाले लोगों को इस्लामोफोबिक करार दे दिया जाता है। इन लोगों की बातों में भले ही कितनी तार्किकता हो, किंतु आम लिबरल वामपंथी विचारों के लिए ऐसे सभी लोग इस्लामोफोबिक होते हैं। हमें इसे अच्छा संकेत मानना चाहिए कि यूरोप में इस्लामोफोबिक लोगों की संख्या बढ़ रही है। इस रिपोर्ट को हम इस संदर्भ में भी समझ सकते हैं कि फ्रांस में होने वाले चुनाव के पूर्व जनता के दबाव में राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन को मस्जिद और मदरसों के विरुद्ध कार्रवाई करनी पड़ी है। इमैनुएल मैक्रॉन फ्रांस की उदारवादी पार्टी के नेता हैं, किन्तु इस समय वो किसी भी दक्षिणपंथी नेता की तरह इस्लामी कट्टरपंथ के विरुद्ध आक्रामक रुख अपनाए हुए हैं।
जर्मनी और नीदरलैंड में भी मचा बवाल
वहीं, जर्मनी में दक्षिणपंथी दल शरणार्थी समस्या को लेकर लगातार सरकार का विरोध कर रहे हैं। इस चुनाव में जर्मनी के दक्षिणपंथी दल को वोट कम मिले, किंतु जर्मनी के कई इलाकों में इस दल ने अपनी मजबूत पकड़ बना ली है। नीदरलैंड के दक्षिणपंथी दल ने भी इस मुद्दे को चुनावी राजनीति का एक अहम पक्ष बना दिया है।
वर्तमान में पोलैंड बॉर्डर पर बेलारूस मुस्लिम शरणार्थियों को लेकर समस्या पैदा कर रहा है। बड़ी संख्या में इराकी और कुर्द शरणार्थी, जबरन यूरोप में घुसना चाहते हैं और बेलारूस सरकार उन्हें मदद दे रही है। दूसरी ओर तुर्की भी यूरोप के साथ विवाद बढ़ा रहा है। तुर्की द्वारा इस समय इस्लामिक कट्टरपंथ को जो बढ़ावा दिया जा रहा है, उससे भी यूरोप में मुसलमानों की छवि खराब होगी, क्योंकि तुर्की ही एकमात्र ऐसा मुस्लिम बाहुल देश है, जिसे यूरोप में आधुनिक माना जाता है।
गौरतलब है कि सोशल मीडिया पर लोगों की जागरुकता, सीरिया समस्या के बाद यूरोप में घुसे शरणार्थियों का व्यवहार एवं हाल में हुए सिलसिलेवार आतंकी हमलों के कारण भी मुसलमानों की छवि खराब हुई है, जिसका असर जल्द ही सामने आएगा। मौजूदा समय में यूरोप के देश कट्टरपंथी इस्लाम पर लगाम लगाने की कोशिश में लगे हुए हैं। इस बात की चर्चा तेज है कि यूरोप के इस कदम का प्रभाव धीरे-धीरे पूरी दुनिया में देखने को मिल सकता है और कट्टरपंथी इस्लाम के समूल विनाश के लिए पूरी दुनिया एकजुट हो सकती है!