सरकारी बंगले से टोंटी उखाड़कर ले जाने वाले सपा अध्यक्ष एवं आजमगढ़ से सांसद अखिलेश यादव पुनः उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे हैं। उत्तर प्रदेश एक बड़ा राज्य है और यहां किसी भी सरकार के लिए सभी पक्षों को संतुष्ट करके चलना लगभग असंभव होता है। ऐसे में अखिलेश यादव को उम्मीद है कि योगी आदित्यनाथ के विरुद्ध सरकार विरोधी लहर का उन्हें लाभ मिल सकता है। हालांकि, ऐसी कोई लहर है या नहीं, यह पता नहीं, किंतु यह सत्य है कि उत्तर प्रदेश में लगभग पिछले चार दशकों से किसी पार्टी के लिए सत्ता में पुनः वापसी संभव नहीं रही है। ऐसे में भाजपा की राह आसान नहीं होगी, ऐसा अखिलेश यादव का अनुमान है। 10 मार्च को आने वाले चुनावी परिणाम में अखिलेश यादव के सपने ध्वस्त हो सकते हैं, इसकी पूरी संभावना है क्योंकि सभी ओपिनियन पोल उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की पूर्ण बहुमत से वापसी की ओर संकेत कर रहे हैं। किंतु समाजवादी पार्टी के पराजय का कारण क्या है?
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हिस्ट्रीशीटर को टिकट दे रही है सपा
समाजवादी पार्टी के पराजय का सबसे बड़ा कारण तो भाजपा सरकार का सर्वोत्तम प्रदर्शन है। उत्तर प्रदेश पिछले 5 वर्षों में 5 अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट, हर जिले में मेडिकल कॉलेज, चार एक्सप्रेस-वे, डिफेंस कॉरिडोर, आईटी पार्क, वन डिस्टिक वन प्रोडक्ट योजना आदि कई महत्वकांक्षी योजनाओं के कारण आर्थिक तरक्की कर रहा है। प्रधानमंत्री आवास विकास योजना के तहत 43 लाख परिवारों को घर मिला है, 6.25 करोड़ लोगों को आयुष्मान भारत योजना का लाभ मिला है। ऐसे ही कई अन्य महत्वपूर्ण कार्य भी हुए हैं।
किंतु अखिलेश यादव ने अपनी पराजय के कई कारण स्वयं पैदा किए हैं। जिस चुनाव में भाजपा ने कानून व्यवस्था को मुद्दा बनाया है, उस चुनाव में अखिलेश यादव ने गुंडे बदमाशों को टिकट दिया है। कैराना की सीट से नाहिद हसन को सपा टिकट दे रही है, जबकि कैराना से हिंदुओं के पलायन और उन पर हुए अत्याचार का मास्टरमाइंड नाहिद हसन ही है। संभावना यह भी है कि यदि नाहिद हसन का टिकट कटा, तो उसके स्थान पर उसकी बहन चुनाव लड़ेगी।
खबरों के मुताबिक अखिलेश यादव ने रामपुर की पांचों विधानसभा सीट पर आजम खान की अनुमति से प्रत्याशी उतारने का निर्णय लिया है। जमानत पर बाहर आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम और स्वयं जेल में बंद आजम खान भी चुनाव में उतरने वाले हैं। सहारनपुर दंगे के मुख्य आरोपी मोहर्रम अली ने भी समाजवादी पार्टी जॉइन कर ली है। इस तरह कई हिंदू विरोधी कट्टरपंथियों को समाजवादी पार्टी टिकट दे रही है।
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अखिलेश ने सुनिश्चित कर दी है सपा की पराजय
बताते चलें कि समाजवादी पार्टी ने अपने प्रचार के लिए ममता बनर्जी को आमंत्रित किया है। सर्वविदित है कि ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस के कारण ही पश्चिम बंगाल के हिंदुओं का पलायन शुरू हो चुका है! ऐसे में ममता बनर्जी से प्रचार कराने का निर्णय सपा की मुश्किलें बढ़ा सकता है। इसी बीच मुलायम सिंह यादव की बहू अपर्णा यादव भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गई हैं। अपर्णा यादव भाजपा और नरेंद्र मोदी से बहुत प्रभावित हैं। उन्हें भाजपा द्वारा महिला सशक्तिकरण के लिए किए गए प्रयासों और स्वच्छ भारत ने प्रभावित किया है।
यादव परिवार की घरेलू अनबन भी अपर्णा के सपा छोड़ने का एक कारण रही है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि भाजपा के कार्य और सुशासन ने समाजवादी पार्टी को पहले ही दौड़ में बहुत पीछे छोड़ दिया था, उस पर पार्टी नेतृत्व द्वारा लगातार हिंदू विरोधी रवैया अपनाना और दंगाइयों को टिकट देना, पार्टी की पराजय को सुनिश्चित कर रहा है। यही कारण है कि यादव परिवार में भी फूट पड़ रही है। ऐसे में अब अखिलेश यादव को 2027 विधानसभा चुनाव के लिए तैयारी शुरू कर देनी चाहिए।
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