2014 तक कांग्रेस के पास नकदी की कोई कमी नहीं थी। काँग्रेस ने लगभग 60 वर्षों तक भारत पर शासन किया और यहां तक कि जब वह सत्ता में भी नहीं थी तब भी उसे वित्तीय परेशानी का एहसास नहीं हुआ, क्योंकि पार्टी को पता था कि वह अंततः सत्ता में आएगी और राष्ट्रीय खजाने लूटेगी। हालांकि, 2014 के बाद, यह स्थिति बदल गई। मोदी सरकार द्वारा RTI कार्यकर्ता सुजीत पटेल को दिए गए एक जवाब में यह खुलासा हुआ है कि कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के आधिकारिक आवास सहित कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के कब्जे वाली कई संपत्तियों के किराए का भुगतान वर्षों से नहीं किया गया है।
यह स्थिति दो परिदृश्यों को जन्म देती है। या तो कांग्रेस पार्टी दिवालिया हो गई है या इसे चलाने वाला परिवार भविष्य के लिए वित्तीय संचय कर रहा है।
कांग्रेस दिवालिया हो गयी है, ऐसा कहने का हमारे पास पर्याप्त कारण है ? खैर, यह अपना किराया नहीं दे रही है, और अब, इसने पार्टी के लिए एक घोर अपमान का कारण बना दिया है। कोई पार्टी कितनी भी बेशर्म क्यों न हो, राष्ट्रीय राजधानी के बीचों-बीच बनी बंगलों में रहकर भी आलाकमान द्वारा किराया न देना एक राष्ट्रीय दल के लिए शर्म की बात है।
आरटीआई जवाब से पता चलता है कि कांग्रेस किराए के भुगतान से बच रही है।
केंद्रीय आवास और शहरी विकास मंत्रालय के आरटीआई जवाब में कहा गया है कि अकबर रोड पर स्थित कांग्रेस पार्टी मुख्यालय के खिलाफ 12,69,902 रुपये का किराया लंबित है और आखिरी बार किराए का भुगतान दिसंबर 2012 में किया गया था। इस बीच कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के 10 जनपथ आवास के लिए भी लगभग 4,610 रुपये के मासिक किराए का भुगतान अक्तूबर 2020 से ही नहीं किया गया है।
ऊपर से नई दिल्ली के चाणक्यपुरी में स्थित सोनिया गांधी के निजी सचिव विन्सेंट जॉर्ज के एक बंगला पर 5,07,911 रुपये का किराया बकाया है, जिसके लिए पिछली बार किराए का भुगतान अगस्त 2013 में किया गया था।
राष्ट्रीय और राज्य के राजनीतिक दलों को आवास की अनुमति देनेवाले आवास नियमों के अनुसार, प्रत्येक पार्टी को अपना कार्यालय बनाने के लिए तीन साल का समय दिया जाता है, जिसके बाद सरकारी बंगला खाली करना होता है। पर, कांग्रेस पार्टी इन सभी मानदंडों का उल्लंघन करने और उन संपत्तियों के लिए किराए के भुगतान से बच रही है, जिन पर उसके नेता जबरजस्ती विराजमान हैं।
यह दिवालियापन है या नकद जमाखोरी?
कांग्रेस को भारी आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है। पिछले साल अगस्त में, कांग्रेस पार्टी ने लोकसभा और राज्यसभा में अपने सांसदों को पार्टी फंड में योगदान का भुगतान सुनिश्चित करने के लिए कहा था और देश भर में अपने पदाधिकारियों के लिए मितव्ययिता निर्देश भी जारी किए थे। AICC ने पार्टी पदाधिकारियों के लिए यात्रा और ठहरने हेतु मितव्ययी उपायों की घोषणा की तथा अपने कर्मचारियों को खर्च में कटौती करने के लिए भी कहा।
निर्देश दिया गया कि AICC सचिवों को 1400 किलोमीटर दूरी की यात्रा ट्रेन से यात्रा करनी होगी। 1,400 किमी से अधिक दूरी के लिए हवाई यात्रा का लाभ उठा सकते हैं, लेकिन वो भी महीने में केवल दो बार।
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मोदी सरकार द्वारा चंदा प्राप्त करने के लिए चुनावी बांड पेश किए जाने के बाद से ही कांग्रेस पार्टी को वित्तीय समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। चुनावी बांड देश में राजनीतिक चंदे की व्यवस्था को साफ करने के लिए पेश किए गए थे। राष्ट्र के पारदर्शी प्रणाली की ओर बढ़ने के बाद कांग्रेस में धन की कमी इस तथ्य का संकेत है कि इसका अधिकांश धन काला धन था।
राजस्थान, छत्तीसगढ़ और पंजाब में कांग्रेस की सरकारें हैं। झारखंड, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में काँग्रेस की गठबंधन सरकार है। पर, काँग्रेस राजवंश नकदी की जमाखोरी करता दिख रहा है, यही वजह है कि वह अपने किराये के बकाए का भुगतान करने में असमर्थ है। सवाल यह है कि कांग्रेस कब तक किराए के भुगतान से बच पाएगी?