अगर आपने विद्या बालन की कहानी फ़िल्म देखी है तो उस फ़िल्म में कलकत्ता के एक थाने का सीन है। उस सीन में आपको धूल फांकते हुए स्टेशन का चेहरा याद होगा। फ़िल्म के दौरान कई ऐसी जगह हैं, जहां पर विद्या बालन एक खटारा सी गाड़ी को टैक्सी बताकर घूमती हुई दिखाई देती है। उसमें जो कुछ भी कलकत्ता के बारे में बताया गया है, वह अधिकतर फिल्मों/ धारावाहिक में वैसा ही दिखाया गया है जिसमें कहानी की पृष्ठभूमि बंगाल की है।
“जो बंगाल आज सोचता है, वह भारत कल सोचता है” – समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी गोपाल कृष्ण गोखले की यह बात कुछ ऐसी है, जिसकी बंगाली कसम खाते हैं। लेकिन बंगाल, जो कभी भारत की बौद्धिक आधुनिकता का प्रतीक था, वर्त्तमान में अपने ढहते सामाजिक बुनियादी ढांचे, नौकरियों की कमी और आर्थिक गतिरोध के कारण पिछडता जा रहा है।
बंगाली समय के ताने-बाने में फंस गए हैं। यहाँ तक कि राज्य की समस्याओं के बारे में बात करने से भी उनमें से कई लोग इनकार करते हैं। बंगाल के बुद्धिजीवी शायद ही कभी राज्य के आर्थिक पतन, बंद उद्योगों, चुनावों के दौरान अकल्पनीय राजनीतिक हिंसा या नौकरियों की कमी के बारे में बात करते हैं, क्योंकि उनके लिए, उनका पसंदीदा विषय भूतकाल है, वो बस इतिहास पर अटके हैं।
वे यह दिखाने का अवसर कभी नहीं छोड़ेंगे कि वे हर चीज पर किताबों को कितनी प्राथमिकता देते हैं। आश्चर्य है कि क्या उन्होंने कभी राज्य के खराब वित्त और चरमराते बुनियादी ढांचे के बारे में पढ़ा है और यदि पढ़ा है तो वो आम जनमानस को इसके बारे में क्यों नहीं बताते? बंगाली गौरव और उप-राष्ट्रवाद का आह्वान करना पश्चिम बंगाल के राजनेताओं के विशिष्ट लक्षणों में से एक रहा है, जिसकी आड़ में वर्षों से राजनीतिक बढ़त हासिल करने का काम किया गया है।
जैसे कि सिनेमा के दृष्टि से देखने की कोशिश हमेशा से की गई है। सिनेमा आज भी बंगाल में पुराने समय को दिखाने के लिए आतुर रहता हैl एक आदमी हाथ रिक्शा से दूसरे आदमी को खींच रहा है और उसे कोलकाता दर्शन करा रहा है, इस गहन श्रम को सिनेमा में किसी उत्कृष्ट कला के तौर पर चित्रित किया जाता हैl हालांकि, इन्हें बंद करने की बात कई बार प्रशासन द्वारा की गई है, लेकिन अब भी कोलकत्ता की गलियों में आपको ये देखने को मिल जायेंगेl
Kolkata is the only city now in the world that continues to operate licensed hand-pulled rickshaws (called tana rickshaw in Bengali) as a mode of public transport.
The hand-pulled rickshaw is a vestige of the colonial past.#HandpulledRickshaw@incredibleindia @westbengaltour pic.twitter.com/0GAqBY5tK8— ArJun PanDey (@arjunpandey4u) April 27, 2021
एक आदिकाल से चले आ रहे टीन शेड के मकान को हर बंगाल के घर की तरह दिखाया जाता है। अब चूंकि इस चीज से अभिमान है, तो प्रशासन इसको बदलना भी नहीं चाहते है। इसके अलावा एक विडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है l विडियो में एक पुरानी सी गाड़ी है जिसमें लोग सफर कर रहे हैं जो पलट जाती है। अब आप सोच रहे होंगे कि इसमें विशिष्ट बात क्या है, वह यह है कि वह बस जो पलटी है वह बंगाल छोड़कर किसी राज्य में नहीं चल सकती है।
https://twitter.com/ashokepandit/status/1489817980502691844?s=20&t=2CqRuVCMEXCA-L4qzA5TDQ
A crowded Minibus overturns on a busy day. Question is why are these faulty buses are allowed to ply on road? What does Bengal Transport Minister has to say about this? pic.twitter.com/15NUcCmvQX
— Keya Ghosh (Modi Ka Parivar) (@keyakahe) February 3, 2022
पलटने वाले बस को बंगाल का अभिमान बताया जाता है। इसको बुद्धिजीवी वर्ग बंगाल की पहचान बताते हैं। रामचंद्र गुहा ने कुछ समय पूर्व ट्वीट कर कहा था, “गुजरात आर्थिक रूप से उन्नत होने के बावजूद सांस्कृतिक रूप से एक पिछड़ा प्रांत है… इसके विपरीत बंगाल आर्थिक रूप से पिछड़ा लेकिन सांस्कृतिक रूप से उन्नत है। फिलिप स्प्रैट, 1939 में लेखन।”
इसपर एक यूजर ने जवाब देते हुए लिखा, “बंगाल में नौकरियों और आर्थिक अवसरों की कमी के इस रूमानियत को बंद करो।”
STOP this romanticizing of lack of jobs and economic opportunities in Bengal. https://t.co/k2GVWQpc9H
— Arup Roychoudhury (@aruproytweets) June 11, 2020
इसी रूमानियत की पहचान को जिंदा रखकर ममता बनर्जी ने बजट के दिन ट्वीट किया, “बेरोजगारी और महंगाई से कुचले जा रहे आम लोगों के लिए बजट शून्य है। सरकार बड़े शब्दों में खो गई है, जिसका कोई मतलब नहीं है – यह एक पेगासस स्पिन बजट है।”
BUDGET HAS ZERO FOR COMMON PEOPLE, WHO ARE GETTING CRUSHED BY UNEMPLOYMENT & INFLATION. GOVT IS LOST IN BIG WORDS SIGNIFYING NOTHING – A PEGASUS SPIN BUDGET
— Mamata Banerjee (@MamataOfficial) February 1, 2022
इसपर एक यूजर ने जवाब दिया, “ओ दीदी..बजट केवल वित्त पर चर्चा करने के बारे में है। रोजगार का अर्थ है जमीन देना और रतन टाटा जैसे लोगों को अपने पिछड़े राज्य में कारखाने खोलने की अनुमति ना देना यह दर्शाता है कि वित्त मंत्री से पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री का काम करने की उम्मीद नहीं की जा सकती है।
यदि आप अपना काम नहीं कर सकते हैं और अक्षम हैं, तो इस्तीफा दें!”
O didi.. budget is about discussing Finances only. Employment is about giving land & allowing people like Ratan Tata to open factories in your backward state. FM can’t be expected to do the job of CM of West Bengal.
If you can’t do your job & are incompetent, U shud Resign!
— Harsh Kothari (@20_harsh) February 1, 2022
अभी फिर चुनाव आ जाएगा तो तथाकथित बुद्धिजीवी फिर से ‘भद्रलोक’ का राग अलापना शुरू कर देंगे। यह एक नशे की तरह है, जिसकी पुड़िया का सेवन सब करते हैं। बंगाल आज बहुत से भारतीय राज्यों से रोज़गार, विकास और आधारभूत संरचना में पिछड़ चुका है। जरूरत है उसे तो सबके साथ कदम मिलकर चलने की और उसके लिए उसे इस भ्रमजाल से निकलना होगा।