राणा अय्यूब एक मानसिक ज़हर से भरी हुई कथाकथित पत्रकार है। आपको बतादें कि लगभग 12-13 साल पहले तक राणा अय्यूब वामपंथी विचारधारा में एक बड़ा नाम नहीं थी ,लेकिन साल 2011 में पत्रकारिता के लिए संस्कृति पुरस्कार मिलने के बाद अचानक वह सुर्खियों में आ गईं और लोकप्रिय हो गई। अगले 10-11 वर्षों में उन्होंने वामपंथियों में अपना नाम बड़ा कर लिया जिसमें पहले से ही सबा नकवी, आरफ़ा खानम शेरवानी, राणा सफ़वी और निश्चित रूप से बरखा दत्त जैसे कुछ लोकप्रिय नाम थे।
राणा अय्यूब का अचानक उदय
राणा अय्यूब अचानक वामपंथियों में एक बड़ा नाम बन गई और अचानक एक बड़ी उदारवादी आइकन बन गईं। लगभग 12 साल पहले आपने शायद उनके बारे में नहीं सुना होगा। लेकिन आज, उनके पास एक विकिपीडिया पेज है और वह वाशिंगटन पोस्ट के लिए एक स्तंभकार भी हैं। दरअसल, यह मुकाम उनके पास आसानी से नहीं आया। 2010 या 2011 तक, वामपंथी तंत्र और आक्रोश उद्योग केवल 2002 के गुजरात दंगों के बारे में उदार टिप्पणी कर सकते थे और कुछ नहीं। लेकिन राणा अय्यूब एक कदम आगे निकल गई।
यहां तक कि वह “गुजरात फाइल्स – एनाटॉमी ऑफ ए कवरअप” नामक पुस्तक के साथ आई। पुस्तक और कुछ अन्य लेखों के निष्कर्षों के आधार पर, अधिवक्ता शांति भूषण और प्रशांत भूषण ने याचिकाकर्ताओं की ओर से कोर्ट में हरेन पंड्या मामले में नए सिरे से जांच के लिए आवाज उठाई थी।
यह अलग बात है कि कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी। शीर्ष अदालत ने यहां तक टिप्पणी की थी, “आजम खान के बयान और राणा अय्यूब की किताब सहित रिकॉर्ड के मद्देनजर योग्यता के आधार पर आगे की जांच या पुन: जांच का निर्देश देने के लिए कोई मामला नहीं बनता है। राणा अय्यूब की पुस्तक किसी काम की नहीं है। यह याचिका अनुमानों पर आधारित है और इसका कोई प्रमाणिक साक्ष्य नहीं है।”
लेकिन अयूब अथक रूप से अपना काम करता रही। उन्होंने यहां तक दावा किया कि उनकी एक रिपोर्ट ने गुजरात के तत्कालीन गृह मंत्री अमित शाह को एक मामले में गिरफ्तार कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। हालांकि, बाद में शाह को निर्दोष पाया गया और उन्हें बरी कर दिया गया। निःसंदेह वह आज केंद्रीय गृह मंत्री हैं, बावजूद इसके कि वे अपने शत्रुओं से तमाम तरह के दुष्प्रचारों का सामना कर रहे हैं।
राणा अय्यूब इस सब के दौरान ट्विटर पर काफी सक्रिय रहीं और अपनी वामपंथी छवि मीडिया में चमकाने लगीं। राणा अय्यूब ने वामपंथी उदारवादी खेमे में अपनी जगह बनाई और वामपंथियों में एक बड़ा स्थान सुनिश्चित कर लिया। उन्होंने अपनी पत्रकारिता के काम के बारे में एक इंस्टाग्राम पोस्ट में बड़े-बड़े दावे भी किए, जिसमें राणा कहती हैं, छह महीने तक मैं गुजरात के छोटे से कमरे में अमेरिकी फिल्म संस्थान कंजर्वेटरी की छात्रा मैथिली त्यागी के रूप में रहकर गुप्त रूप से रही जहां मैंने अंडरकवर ऑपरेशन किया जिसपर उन्होने एक किताब लिखा था जिसका नाम #GujaratFiles
आपको बतादें कि पहले, स्थापित वामपंथियों के लिए सुर्खियां बाटोरना बहुत आसान था, वे पीएम नरेंद्र मोदी की निंदा कर सकते थे और अपनी लोकप्रियता बरकरार रख सकते थे लेकिन चीजें अब इतनी सरल नहीं हैं।
गौरतलब है कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में पत्रकार राणा अय्यूब से जुड़े 1.77 करोड़ रुपये कुर्क किए है। वित्तीय जांच एजेंसी द्वारा मामला उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिकी पर आधारित है। ईडी ने आरोप लगाया कि राणा अय्यूब ने तीन अभियान शुरू किए और ऑनलाइन क्राउडफंडिंग प्लेटफॉर्म ‘केटो’ के जरिए करोड़ों रुपये जुटाए। जांच अधिकारियों के अनुसार, तीन अभियानों में अप्रैल-मई 2020 के दौरान झुग्गीवासियों और किसानों के लिए धन, जून-सितंबर 2020 के दौरान असम, बिहार और महाराष्ट्र के लिए राहत कार्य और मई-जून 2021 के दौरान भारत में कोविड -19 प्रभावित लोगों की मदद शामिल है। राणा अय्यूब को कथित तौर पर तीन दान अभियानों के माध्यम से 2.69 करोड़ रुपये का दान मिला, जिसमें से 80.49 लाख रुपये विदेशी मुद्रा में प्राप्त हुए।
सूत्रों ने कहा कि विदेशी चंदा बाद में राणा अय्यूब द्वारा वापस कर दिया गया क्योंकि आयकर विभाग ने जांच शुरू की थी क्योंकि यह विदेशी योगदान नियमन अधिनियम (Foreign Contribution Regulations Act ) का उल्लंघन था। हालांकि, ईडी ने आरोप लगाया कि जब उन्होंने बैंक स्टेटमेंट और क्रेडिट कार्ड खर्च का विश्लेषण किया, तो राहत कार्य पर खर्च की गई राशि 28 लाख रुपये थी। सूत्रों ने कहा कि दान के रूप में प्राप्त धन का एक हिस्सा कथित तौर पर निजी खर्चों के लिए इस्तेमाल किया गया था, जिसमें एक कथित holiday trip भी शामिल था।
सूत्रों ने कहा कि राणा अयूब ने कथित तौर पर दान के पैसे से 50 लाख रुपये की सावधि जमा (FD) की है। इस मामले में पूछने पर राणा अय्यूब ने अधिकारियों को बताया कि बैंक मैनेजर ने उन्हें FD जमा करने की सलाह दी थी ताकि उन्हें कुछ ब्याज मिल सके, क्योंकि पैसे का इस्तेमाल अस्पताल बनाने के लिए किया जाना था। हालांकि, बैंक मैनेजर ने कथित तौर पर राणा अय्यूब को ऐसी कोई सलाह देने से इनकार किया है।
ईडी के सूत्रों ने दावा किया कि पूछताछ के दौरान राणा अय्यूब अब तक यह नहीं बता पाई है कि उन्होंने दान और कुछ खर्चों का उपयोग क्यों नहीं किया। बेईमानी सामने आने के बाद से यह अब साफ़ हो गया है कि राणा अय्यूब के पाप का घड़ा भड़ गया था, जो अब फुट चूका है।