पता है, उत्तम कुमार, रजित कपूर, सुशांत सिंह राजपूत, अनिर्बन भट्टाचार्य, परम्ब्रत भट्टाचार्य, अबीर चटर्जी इत्यादि में समानता क्या है? इन सभी हस्तियों ने कभी न कभी अपने अपने समय पर ‘सत्यानवेशी’ ब्योमकेश बक्शी के किरदार को सिल्वर स्क्रीन पर जीवंत किया है, जिसमें रजित कपूर और सुशांत सिंह राजपूत को देशभर में कई सिनेमा प्रेमियों ने उनके प्रदर्शन के लिए सराहा भी है। लेकिन ये ‘सत्यानवेशी’ ब्योमकेश बक्शी है कौन?
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कौन हैं ‘सत्यानवेशी’ ब्योमकेश बक्शी?
यदि आप बंगाल से है, और ‘सत्यानवेशी’ ब्योमकेश बक्शी के बारे में नहीं जानते, तो क्षमा कीजिएगा, आप पूरी तरह बंगाली नहीं है। ‘सत्यानवेशी’ ब्योमकेश बक्शी एक चर्चित बंगाली जासूस हैं, जो सत्य की खोज में अनवरत लगे रहते हैं। इस प्रसिद्ध काल्पनिक चरित्र की उपज जिस लेखक के कलम से हुई, आज उन्हीं का जन्मदिवस है – शार्दिन्दु बंदोपाध्याय।
शार्दिन्दु बंदोपाध्याय बांग्ला साहित्य के सबसे चर्चित नामों में से एक हैं, जिन्होंने कई लघु कथाएं, ऐतिहासिक रचनाएं इत्यादि लिखें। इनमें से कई पर फिल्में भी बन चुकी हैं। इनका जन्म 30 मार्च 1899 को जौनपुर में हुआ, जो वर्तमान उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र में स्थित है। मुंगेर से अपनी मैट्रीकुलेशन पूरी करने के पश्चात इन्होंने प्रारंभ में अधिवक्ता का पेशा संभाला, लेकिन साहित्य के प्रति रुचि इन्हे सिनेमा की ओर ले गई। इन्होंने बॉलीवुड और बांग्ला सिनेमा दोनों को अपनी सेवाएं दीं और फिर 1952 में अपना सम्पूर्ण ध्यान लेखनी में लगाया।
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शार्दिन्दु बंदोपाध्याय को प्रसिद्धि कब मिली?
शार्दिन्दु बंदोपाध्याय को प्रसिद्धि मिली 1932, जब उन्होंने ब्योमकेश बक्शी को लेकर अपना पहला उपन्यास ‘सत्यानवेशी’ प्रकाशित किया। कई लोगों को यह चरित्र चर्चित जासूस शर्लाक होम्स [Sherlock Holmes] से प्रेरित लगा, जो प्रारंभ में कुछ जगह दिखा भी, क्योंकि जैसे शर्लाक का साथी डॉक्टर वॉटसन था, वैसे ब्योमकेश का मित्र अजीत बनर्जी था, जो एक लेखक भी था और इन कथाओं का सूत्रधार भी परंतु ब्योमकेश बक्शी का अपना अलग व्यक्तित्व भी था। उसे ‘डिटेक्टिव’ शब्द प्रिय नहीं था, और चूंकि वह सत्य का अन्वेषण करता था, इसलिए उसने ‘सत्य का अन्वेषण करने वाला’ अर्थात ‘सत्यानवेशी’ उपनाम चुना।
‘सत्यानवेशी’ की अपार सफलता के पश्चात शार्दिन्दु बंदोपाध्याय ने ब्योमकेश से संबंधित अनेकों उपन्यास एवं लघु कथाएं लिखी। लेकिन ये यात्रा 1970 रुक गई, जब उनका आकस्मिक निधन हो गया, और उनकी अंतिम कथा ‘बिशुपाल बोध’ सदैव के लिए अधूरी रह गई। ब्योमकेश बक्शी पर अनेकों सीरियल और फिल्में बनी, जिनमें अधिकतर बांग्ला भाषा तक ही सीमित थी। परंतु दो प्रयासों ने सभी को अपनी ओर आकर्षित किया – 1993 में निर्मित बासु चटर्जी के सीरियल ने, जिसमें रजित कपूर ब्योमकेश बक्शी थे और के के रैना अजीत बनर्जी, और दूसरा था 2015 में आई बॉलीवुड फिल्म ‘डिटेक्टिव ब्योमकेश बक्शी’, जिसमें सुशांत सिंह राजपूत ने प्रथम और अंतिम बार ये भूमिका निभाई, एवं आनंद तिवारी ने अजीत बनर्जी की भूमिका को आत्मसात किया।
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छत्रपति शिवाजी महाराज से भी काफी प्रभावित थे बंदोपाध्याय
लेकिन शार्दिन्दु बंदोपाध्याय केवल ब्योमकेश बक्शी तक सीमित नहीं थे। वे छत्रपति शिवाजी महाराज से भी काफी प्रभावित थे, और उन्होंने ब्योमकेश बक्शी के आधार पर ‘सदाशिव’ नामक Historical Fiction शृंखला चलाई, जो सदाशिव नामक योद्धा पर आधारित थी, और कैसे वे शिवाजी महाराज की सेना में भर्ती हो अपने लिए प्रतिष्ठा और मराठा समुदाय के लिए गौरव दोनों कमाते हैं।
आज देश में जब चर्चा होती है कि अच्छे लेखक क्यों है, रचनात्मकता कहाँ चली गई, तो शार्दिन्दु बंदोपाध्याय जैसे लोगों की कमी अवश्य खलती है, जो न केवल बांग्ला साहित्य के गौरव का प्रतीक थे, अपितु ये भी सिद्ध करते थे, कि रचना के लिए बस प्रयास की देर है।