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संघमित्रा जैसे परिवारवादी नेताओं को क्यों झेल रही है भाजपा, निकाल बाहर क्यों नहीं करती?

परिवार-परिवार खेलने में लगी हैं संघमित्रा!

Utkarsh Upadhyay द्वारा Utkarsh Upadhyay
4 March 2022
in Uncategorized
संघमित्रा जैसे परिवारवादी नेताओं को क्यों झेल रही है भाजपा, निकाल बाहर क्यों नहीं करती?
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सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे, पर इस बार बात स्वघोषित नेवले स्वामी प्रसाद मौर्या की पुत्री संघमित्रा मौर्या की है जो भाजपा की सांसद हैं पर उन्हें अपने पिता और नए-नए सपाई हुए स्वामी प्रसाद के लिए इतना नरम दिल है कि पार्टी जाए तेल लेने, हम तो परिवार-परिवार ही खेलेंगे। क्योंकि इन नेताओं का एक ही मकसद होता है, परिवार प्रथम। ऐसे में नेशन फर्स्ट, पार्टी नेक्स्ट, सेल्फ लास्ट वाले बीजेपी के सिद्धांत को संघमित्रा ने न राष्ट्र प्रथम न पार्टी बाद में मात्र परिवार और स्वयं प्रथम के विचार को प्रदर्शित करते हुए अपने घर को बचाने में लग गई हैं। राजनीतिक महत्वकांक्षा के आगे बाप-बेटी दोनों उस कथन को चरितार्थ करते हैं, “बाप नंबरी तो बेटी दस नंबरी।”

अवसरवादियों के बीच क्यों भेद नहीं करती भाजपा?

यह भाजपा का सबसे बड़ा कमजोर बिंदु है कि सत्ता के 8 वर्ष पूर्ण करने के बाद भी वो अपने मूल काडर और अवसरवादियों के बीच भेद करने में अक्षम सिद्ध हुई हैं। ऐसे में इसका उदाहरण संघमित्रा मौर्य जैसे गैर-प्रतिबद्ध नेताओं को पार्टी में बर्दाश्त करने का कोई मतलब नहीं है। जैसा कि 2022 यूपी चुनावों का शोर-ग़ुल अपने अंतिम चरण पर है, भाजपा को अपने ही सदस्यों से कड़ा सबक मिल रहा है। हाल ही में, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की पूर्व सदस्य और स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्य ने अपनी ही पार्टी पर हमला करने का निश्चय किया।

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और पढ़ें- स्वामी प्रसाद मौर्य के सपा में शामिल होने के पीछे उनका Personality Cult दोषी है

संघमित्रा मौर्य के विद्रोही रुख ने कर दिया हैरान!

हुआ यूं कि, फाजिलनगर विधानसभा क्षेत्र में सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य और भाजपा के लोगों की चुनावी रैलियों में हाथापाई हुई। जब उनके रास्ते आमने सामने हुए तो दोनों गुटों के समर्थकों ने पास में ही मौजूद किसी भी तरह की शक्तिशाली हथियार से एक-दूसरे को पीटना शुरू कर दिया। इससे प्रचार वाहनों को भी नुकसान पहुंचा है। हालांकि इस घटना में स्वामी प्रसाद मौर्य को कोई चोट नहीं आई थी।

घटना में विभिन्न प्राथमिकी और काउंटर प्राथमिकी दर्ज की गई है। यहां तक ​​कि संघमित्रा मौर्य और उनके भाई अशोक मौर्य का भी नाम एफआईआर में है। हालांकि, हिंसा से ज्यादा, भाजपा सांसद संघमित्रा मौर्या का अपनी ही पार्टी के ऊपर तल्ख़-टिप्पणी करना चर्चा में आ गया। इस मुद्दे पर संघमित्रा मौर्य के रुख ने भाजपा और उसके समर्थकों को हैरान कर दिया है। उन्होंने स्पष्ट रूप से पार्टी लाइन के विरुद्ध स्टैंड लिया है। अपनी बात में सीधे तौर पर संघमित्रा ने यह आरोप लगाया कि यह भाजपा ही थी जिसने स्वामी प्रसाद मौर्य पर हमला किया।

और पढ़ें- BJP वही कर रही है जो उसे बंगाल में बहुत पहले करना चाहिए था, स्वामी प्रसाद मौर्या तो प्रारंभ हैं!

अपनी ही पार्टी के खिलाफ संघमित्रा का खुलेआम विद्रोही रुख

यूपी में बीजेपी के चुनावी वादों पर आक्रामक रुख अपनाते हुए संघमित्रा ने कहा, ‘जो बीजेपी शांति और दंगा मुक्त राज्य की बात करती है आज उसके उम्मीदवार ने हमारे पिता पर हमला किया है।’ उन्होंने आगे बढ़कर अपनी ही पार्टी के खिलाफ खुलेआम विद्रोही रुख अपनाया। लोगों से भगवा पार्टी का विरोध करने की अपील करते हुए उन्होंने कहा, “आज मैं यहां खुलकर आती हूं और कहती हूं कि फाजिलनगर के लोग 3 मार्च को ऐसे दंगाइयों को सबक सिखाएंगे। स्वामी प्रसाद मौर्य को भारी बहुमत से विजयी बनाकर दंगाइयों को उनके घर में बंद कर दिया जाएगा।” उन्होंने पार्टी समर्थकों पर उन पर हमला करने का भी आरोप लगाया।

ऐसा पहली बार नहीं है जब संघमित्रा मौर्य पार्टी लाइन के खिलाफ गई हैं। हाल ही में जब उनके पिता स्वामी प्रसाद मौर्य ने चुनाव से पहले भाजपा छोड़ दी तो उन्होंने उन्हें अपना समर्थन दिया था। उन्होंने कहा कि वह अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी, जो उनके पिता हैं, के खिलाफ चुनाव में प्रचार नहीं करेंगी। ऐसे में इस बार उनपर अपने पिता के लिए गुपचुप तरीके से प्रचार करने का भी आरोप है।

और पढ़ें- यूपी के राहुल गांधी बनने की ओर अग्रसर हैं अखिलेश यादव, उनका ये हास्यास्पद तर्क तो देखिए!

पूरी तरह से भाजपा को समर्पित नहीं दिखती संघमित्रा!    

संघमित्रा उन नेताओं में से एक हैं जो 2014 के बाद मोदी लहर के मद्देनजर पार्टी में शामिल हो गई थीं। 2019 में बीजेपी के टिकट पर बदायूं से सांसद बनने से पहले उन्होंने मुलायम सिंह यादव के खिलाफ बसपा उम्मीदवार के रूप में 2014 का आम चुनाव लड़ा था। संघमित्रा मौर्य अकेली नहीं हैं जो पूरी तरह से भाजपा को समर्पित नहीं हैं। पार्टी ऐसे नेताओं से भरी पड़ी है, जिन्होंने सिर्फ सत्ता हासिल करने के लिए पार्टी में प्रवेश लिया। 2021 का बंगाल चुनाव इस घटना का चरमोत्कर्ष था जिसमें अधिकांश नेताओं ने पार्टी के पक्ष में भारी उछाल देखने के बाद भाजपा की ओर रुख किया था। हालांकि, जैसे ही बीजेपी दूसरे नंबर पर आई उन्होंने पार्टी छोड़ दी और घर वापसी कर ली थी।

आंतरिक मतभेद मौलिक सिद्धांत हैं जिनका पालन करना चाहिए, लेकिन पार्टी के खिलाफ इस तरह का सार्वजनिक रूप से खुला रुख भाजपा के प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं के मनोबल को ठेस पहुंचाता है। अगर पार्टी को अपना दबदबा कायम रखना है तो उससे छुटकारा पाना शुरू कर देना चाहिए, शुरुआत संघमित्रा मौर्या से की जानी चाहिए।

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