वामपंथी सोच से पोषित कुछ राजनीतिक दल और उनके नेताओं के लिए Everything Progressive is Regressive होता है, ऐसा इसलिए क्योंकि अब देश में सरकार उनके मन मुताबिक नहीं है। उनकी दुःख की सीमा ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही है, यही कारण है पहले NEET, फिर हिंदी और अब एंट्रेंस परीक्षा-CUET पर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन फट पड़े हैं। यह बात सत्य है कि देश के हित में जो भी सुधार होते हैं, उसमें मतभिन्नता के नाम पर ज़ाहिल विरोध करने वालों की सूची काफी लंबी है, जो अपने कुत्सित सोच और अनर्गल प्रलाप के कारण मीडिया की सुर्खियों में बने रहते हैं, इनमें दिल्ली और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री भी शामिल हैं! चूंकि इन दोनों मुख्यमंत्रियों अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी के ऊपर मीडिया की विशेष नज़र रहती है, जिसके कारण उनके समकक्ष स्टालिन जैसे नेताओं के कर्मों से पर्दा अमूमन कम ही उठ पाता है।
दरअसल, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने बीते दिन सोमवार, 11 अप्रैल को राज्य विधानसभा में एक प्रस्ताव पेश किया, जिसमें विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) द्वारा देश के सभी विश्वविद्यालयों में स्नातक सहित विभिन्न पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए एक सामान्य विश्वविद्यालय प्रवेश परीक्षा (CUET) आयोजित करने के प्रस्ताव को हटाने की मांग की गई थी। प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान स्टालिन ने कहा, “NEET जैसा सामान्य विश्वविद्यालय प्रवेश परीक्षा (CUET) देश भर में विविध स्कूली शिक्षा प्रणालियों को दरकिनार कर देगा और स्कूलों में समग्र विकास-उन्मुख दीर्घकालिक शिक्षा की प्रासंगिकता को कम कर देगा।” उन्होंने कहा कि CUET छात्रों को अपने प्रवेश परीक्षा स्कोर में सुधार के लिए कोचिंग संस्थानों पर अधिक निर्भर करेगा।
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NEET पर भी स्टालिन ने उगला था जहर
यह सर्वविदित है कि दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल और पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने हिंदू समुदाय को बार-बार नीचा दिखाकर अपने तथाकथित ‘धर्मनिरपेक्षता’ को बढ़ावा देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। इसके अलावा, उन्होंने हमेशा लोगों के हित में सरकार द्वारा उठाए गए हर योजना या कदम का विरोध किया है। प्रधानमंत्री मोदी के प्रति उनके भीतर इतना विष भरा पड़ा है कि वे अपने राज्य के लोगों को भी नहीं बख्शते। हालांकि, उनके अपराधों ने एमके स्टालिन के पापों पर अबतक पर्दा डाले रखा था, जो अब फूट-फूट कर बाहर आ रहा है।
भारत हमेशा से एकता और अखंडता लाने के अपने प्रयास को बनाए रखने के लिए संघर्ष करता आया है। अलगाववादियों और क्षेत्रवादियों ने भारत के विचार को कड़ी चुनौती दी है। हालांकि, भारत ने इन ताकतों को कभी जीतने नहीं दिया, फिर भी वे देश के लिए आज भी एक बड़ा खतरा बने हुए हैं। केंद्र सरकार कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (CUET) लेकर आई है, ताकि देश भर के आकांक्षी छात्रों को एक कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट के जरिए सेंट्रल यूनिवर्सिटी में प्रवेश के लिए एक समान मंच और समान अवसर प्रदान किया जा सके। यह परीक्षा 13 भाषाओं में आयोजित की जाएंगी। यह विश्वविद्यालयों में प्रवेश लेने के लिए एक एकीकृत सरल प्रक्रिया लाने का प्रयास की ओर केंद्रित है।
ऐसा लगता है कि एमके स्टालिन को देश के एकीकरण का विचार पसंद नहीं है और इस तरह वो नए विकास का विरोध करते हुए सामने आए हैं। उन्होंने केंद्र सरकार से केंद्रीय विश्वविद्यालयों में दाखिले के लिए होने वाली कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (CUET) को वापस लेने को कहा है। स्टालिन का अनुरोध देश में क्षेत्रवाद को बढ़ावा देने के उनके निरंतर प्रयास को दर्शाता है। ध्यान देने वाली बात है कि राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (NEET) ने चिकित्सा शिक्षा प्रणाली में सुधार किया। क्षेत्रीय स्तर पर कई मेडिकल कॉलेज छात्रों की योग्यता की अनदेखी कर सीट बेच देते थे। इस मुद्दे से निपटने के लिए NEET की शुरुआत की गई थी। हालांकि, स्टालिन को इस विचार से भी समस्या थी और इससे पता चलता है कि स्टालिन के लिए समस्या कहां नहीं है? तमिलनाडु सरकार ने विधानसभा में पारित एक विधेयक के जरिए छात्रों के लिए नीट को वैकल्पिक बना दिया था। बिल ने तमिलनाडु के मेडिकल कॉलेजों को 12वीं परीक्षा के अंकों के आधार पर छात्रों को प्रवेश देने का अधिकार दिया।
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हिंदी पर स्टालिन की कुंठा
हाल ही में एम के स्टालिन की एक और समस्या उजागर हुई थी, वो है हिंदी से बैर। नई दिल्ली में संसदीय राजभाषा समिति की 37वीं बैठक के दौरान, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आग्रह किया था कि हिंदी को अंग्रेजी के विकल्प के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए न कि स्थानीय भाषाओं के विक्लप के रूप में। लेकिन एमके स्टालिन ने शाह की टिप्पणी की आलोचना यह कहते हुए शुरु कर दिया कि इससे भारत की एकता को चोट पहुंचेगी। इस मामले पर स्टालिन ने ट्विटर पर लेते हुए स्टालिन ने लिखा, “गृह मंत्री अंग्रेजी के बजाय हिंदी में बोलने के लिए कहते हैं और यह भारत की एकता को चोट पहुंचा रहा है। क्या गृह मंत्री केवल यह सोचते हैं कि हिंदी (बोलने वाले) राज्य पर्याप्त हैं? एकता में एक भाषा मदद नहीं करेगी।” वहीं, इस साल की शुरुआत में स्टालिन ने कहा था कि “जो लोग हिंदी को थोपना चाहते हैं, वे इसे प्रभुत्व का प्रतीक मानते हैं। जैसे वे सोचते हैं कि एक ही धर्म होना चाहिए, वे सोचते हैं कि एक ही भाषा होनी चाहिए।” सौ बात की एक बात यह है कि अब समय आ गया है कि तमिलनाडु के लोगों को यह एहसास हो कि उनके मुख्यमंत्री उन्हें उस रास्ते पर ले जा रहे हैं, जहां कोई विकास नहीं बल्कि छद्म ‘धर्मनिरपेक्ष’ राजनीति है। यह उनकी तरक्की की राह में सबसे बड़े बाधक बन रहे हैं!
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