राजनीति में सबसे शर्मनाक होता है- ‘सत्ता की खातिर सिद्धांतों से समझौता करना।’ सत्ता का क्या है आती-जाती रहती है। पर, वो विचार ही हैं जो शाश्वत रहते हैं और आपके व्यक्तित्व को अमरत्व प्रदान करते हैं। शिवसेना की आधारशिला भी सत्ता प्राप्ति के उद्देश्य से नहीं, बल्कि हिंदूहित, राष्ट्रहित, वैचारिक तथा सांस्कृतिक विरासत के पुनर्स्थापन के रखी गई थी। आप स्वयं देखिए, इस दल का नाम शिवसेना है अर्थात् महादेव कि वह सेना जो सनातन और संस्कृति के रक्षण के लिए सर्वदा उद्धत हो। इसके संस्थापक ने सत्ता को कभी चिमटे से भी नहीं छुआ। शिवसेना के गठन ने न सिर्फ मुंबई, बल्कि पूरे महाराष्ट्र में अंडरवर्ल्ड और इस्लामिक चरमपंथियों द्वारा हिंदुओं पर किए जाने वाले अत्याचार को खत्म किया।
इसने राम मंदिर के निर्माण में अद्वितीय भूमिका निभाई और ढांचे के विध्वंस में अपनी भूमिका को बड़े गर्व से स्वीकार किया। 1992 में अंडरवर्ल्ड द्वारा प्रायोजित दंगों में हिंदुओं को व्यापक पैमाने पर नरसंहार से बचाने में भी शिवसेना का ही हाथ था। परंतु, आज आप समय का चक्र और इस देश का दुर्भाग्य देखिए, जो शिवसेना हिंदुओं और राष्ट्र की सुरक्षा के लिए सर्वदा उद्धत रहती थी, उसके सुप्रीमो उद्धव ठाकरे ने सत्ता के लिए उसके सिद्धांतों से समझौता कर लिया। आज बाला साहब ठाकरे भी स्वर्ग से अपने पुत्र और पौत्र को इस दल के उद्देश्यों और सिद्धांतों से अलग होते देख बहुत ही क्षुब्ध और व्यथित होंगे। किसी ने कभी नहीं सोचा था कि शिवसेना सत्ता के लिए कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी तक से समझौता कर लेगी। सामना का रंग भगवा से हरा हो जाएगा! पर अफसोस ऐसा ही हो रहा है।
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शिवसेना को बर्बाद करके ही दम लेंगे उद्धव ठाकरे
दरअसल, उद्धव ठाकरे ने शिवसेना को राष्ट्र चेतना को झकझोरने वाले दल के रूप में नहीं बल्कि एक व्यापारिक संगठन के रूप में परिवर्तित कर दिया है। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस व्यापार में कौन-कौन सी चीजें शामिल है। इस व्यापार में दो चीजें शामिल हैं- राष्ट्रवादी और हिंदुत्ववादी सिद्धांतों की तिलांजलि तथा मुस्लिम तुष्टीकरण को समर्थन और बदले में ठाकरे परिवार को मिलता है सत्ता का सुख, जो कभी शिवसेना का उद्देश्य था ही नहीं। सत्ता के इस सुख ने उन्हें इतना कमजोर बना दिया है कि वे अपने पिता की सीख को विस्मृत कर चुके हैं। जब हिजाब का मुद्दा राष्ट्रीय पटल पर उभरा तो यह महाराष्ट्र की उद्धव सरकार ही थी जिसके शह पर इस्लामिक कट्टरपंथियों ने पहले हिजाब और फिर किताब का अभियान चलाया। नवाब मलिक जैसे नेता जो अंडरवर्ल्ड, हत्या, फिरौती, सुपारी, रंगदारी, नशे, तस्करी, बेनामी संपत्ति और राष्ट्र विरोधी अभियानों से जुड़े हैं, उन पर बुलडोजर चलाने के बजाय उन्हें संरक्षण प्रदान किया जा रहा है।
शिवसेना के इसी राष्ट्र विरोधी और धर्म विरोधी रुख को देखते हुए महाराष्ट्र के विधायक रवि राणा और उनकी पत्नी सांसद नवनीत राणा ने ठाकरे निवास मातोश्री के बाहर हनुमान चालीसा का पाठ करने का निर्णय लिया गया। आपको बता दें कि उनको ऐसा ऐलान या फिर यूं कहें इस प्रकार का विरोध प्रदर्शन करने का निर्णय इसलिए लेना पड़ा, क्योंकि कभी इस्लामिक विचारों का विरोध करनेवाली शिवसेना ने अज़ान के मुद्दे पर चुप्पी साध ली थी। न्यायपालिका द्वारा लोगो के गरिमापूर्ण जीवन के अधिकार को सुरक्षित करते हुए अज़ान की ध्वनि को सीमित करने का निर्देश जारी करने के बावजूद मुसलमान ने उसकी अवहेलना की। न्याय के निर्णय के ऊपर मजहब के निरर्थक तर्कों को तवज्जो दी गयी। इसके बाद हिन्दू अपने अधिकार के लिए खड़े हुए और इसी संदर्भ में राणा दंपति ने मातोश्री के बाहर हनुमान चालीसा पढ़ने का निर्णय लिया।
अब उद्धव ठाकरे को बदल देना चाहिए शिवसेना का नाम
अगर सही मायने में ये बालासाहब की शिवसेना होती तो वो स्वयं इस्लामिक कट्टरपंथियों को झुकने पर बाध्य करते हुए उन्हें लाउडस्पीकर उतारने के लिए विवश कर देती न कि स्वयं शिव के अवतार हनुमान की स्तुति करने से भयभीत होती। जिसका अस्तित्व ही स्वयं शिव पर हो वो शिव की स्तुति से डर रहे है ये विडम्बना नहीं तो और क्या है? ऊपर से शिवसेना कार्यकर्ताओं ने शनिवार सुबह बैरिकेड्स तोड़कर महाराष्ट्र के विधायक रवि राणा और उनकी पत्नी सांसद नवनीत राणा के खार आवास के परिसर में घुसने की कोशिश की। उनकी योजना का कड़ा विरोध करते हुए, शिवसेना के कार्यकर्ता, जिनमें महिलाएं भी शामिल हैं, वे शुक्रवार सुबह से ‘मातोश्री’ के बाहर डेरा डाले हुए हैं जिनमें से कई रात भर वहीं रहें। और इन सारे प्रकरण में सबसे शर्मनाक तथ्य ये है कि शिवसेना की ओर से जो गुंडे हनुमान भक्तों को रोकने आए थे उनमे से अधिकतर इस्लामिक कट्टरपंथी थे।
इस बीच, मुंबई पुलिस ने उद्धव के निर्देश पर न सिर्फ राणा दंपति को नोटिस जारी किया बल्कि उन्हें थाने भी ले गयी। उसके बाद उन्हें भायखला महिला जेल में स्थानांतरित कर दिया गया है, जबकि रवि राणा को पड़ोसी नवी मुंबई की तलोजा जेल ले जाया गया है। स्पीकर ओम बिरला को लिखे पत्र में अमरावती की सांसद ने सोमवार को कहा कि उन्हें पीने के पानी की सुविधा से वंचित कर दिया गया और अनुसूचित जाति से होने के कारण उन्हें शौचालय का उपयोग करने की अनुमति नहीं दी गई। इसके साथ-साथ उनके खिलाफ जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल किया गया।
इन सारी बातों का सारांश यही है कि शिवसेना अब वो शिवसेना नहीं रही जिसकी नींव कभी बालासाहेब ने रखी थी। बाला साहेब की शिवसेना आज भी हमारे हृदय में जीवित है और मरते दम तक रहेगी। बाला साहेब ऐसे हृदयों में हमेशा हिन्दू हृदय सम्राट रहेंगे। अतः उद्धव ठाकरे को कोई नैतिक अधिकार नहीं हैं कि वो इसका नाम शिवसेना रखें। अगर वो चाहे तो इसका नाम उद्धव या फिर सोनिया सेना रख सकते हैं! किन्तु, जो पार्टी शिव के अवतार हनुमान की स्तुति को प्रतिबंधित कर दे और उसका पाठ करनेवालों को जेल भेज दे, उसे स्वयं को शिवसेना कहने का अधिकार तो कदाचित नहीं है।
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