रूस-यूक्रेन युद्ध दुनिया के लिए कई मायने में सबक है। कैसे अमेरिका और पश्चिमी देश किसी को भी बढ़ा-चढ़ाकर हलाल होने के लिए छोड़ देते हैं, मौजूदा समय में यूक्रेन से बेहतर इस बात को कोई नहीं समझ सकता। रूस से टकराने के बाद अब यूक्रेन की हालत डांवाडोल हो गई है, लेकिन इससे सिर्फ यूक्रेन की साख पर ही सवाल उठाना नासमझी होगी, क्योंकि अपने आप को महाशक्ति मानने वाला अमेरिका और दुनिया को हर मामले में फिजूल का ज्ञान देने वाले यूरोपीय यूनियन भी इस प्रकरण के बाद पूरी तरह से बेनकाब हो गए हैं। हालांकि, पश्चिमी देश भारत पर रूस विरोधी रवैया अपनाने के लिए दबाव बना रहे हैं, लेकिन भारत तो भई भारत है, उसे घंटा फर्क नहीं पड़ता कि कौन क्या कह रहा है और किसके हिसाब से चलना है। भारत इस मामले पर अपना तटस्थ रूख अपनाये हुए है। ध्यान देने वाली बात है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के मध्य अब रूस डॉलर से अपनी निर्भरता समाप्त करने की ओर कदम बढ़ चुका है, जो अमेरिका की मुश्किलें बढ़ा सकता है।
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डॉलर का मायाजाल
दरअसल, रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव इन दिनों भारत दौरे पर हैं। अमेरिका द्वारा भारत पर रूस विरोधी रवैया अपनाने का दबाव बनाया जा रहा है, किंतु भारत को अपने पक्ष में रखने के लिए रूस हर तरह की शर्ते मानने को तैयार है। रूसी विदेश मंत्री ने कहा कि “भारत कुछ भी खरीदना चाहता है तो हम चर्चा के लिए तैयार हैं।” इसके साथ ही दोनों देश रूसी करेंसी यानी रूबल में व्यापार की योजना बना रहे हैं, जिससे डॉलर पर निर्भरता समाप्त की जा सके। ध्यान देने वाली बात है कि डॉलर एक मायाजाल के समान है और इसे हाल ही में TFI समूह के संस्थापक अतुल मिश्रा ने अपने एक ट्वीट में समझाया है।
उन्होंने अपने ट्वीट थ्रेड में लिखा, “आज के समय में कोई भी देश पैसे (Money) का उपयोग नहीं करता है। वे जो उपयोग करते हैं वह मुद्रा (Currency) है। और मुद्रा एक झूठ है, एक जटिल झूठ है। पैसे का एक आंतरिक मूल्य होता है। मुद्रा एक वादा है और वादे बाजार के जोखिमों के अधीन हैं।” यह पूर्णतः सत्य है, आपने मुद्रा “मैं धारक को अमुक राशि देने का वचन देता हूँ” ऐसा पढ़ा होगा।
World works its ass off so that the US can spend – a thread
No country uses money these days. What they use is currency. And currency is a lie, a complicated lie.
— Atul Kumar Mishra (@TheAtulMishra) April 1, 2022
उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा, “आइए अपनी घड़ियों को द्वितीय विश्व युद्ध के अंत तक वापस घुमाएँ। दुनिया दो सहस्राब्दियों से ‘स्वर्ण मानक’ का पालन कर रही थी, लेकिन बड़े पैमाने पर युद्ध के खर्च ने यूरोपीय राष्ट्रों की जेब में बड़ा छेद कर दिया था।” स्वर्ण मानक प्रणाली के अंतर्गत एक देश की मुद्रा का मूल्य सोने की निश्चित मात्रा के अनुसार तय होता है। यदि सोने की सबसे छोटी इकाई एक औंस है और उसका मूल्य 1 डॉलर, तो 5 डॉलर का मूल्य 5 औंस हुआ। इस प्रणाली में कोई देश जितनी मुद्रा जारी करता है, उतनी मुद्रा के मूल्य का सोना रिजर्व में रखना होता है। ऐसा करने पर ही मुद्रा से पैसे यानी currency to money में परिवर्तन होता है।
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द्वितीय विश्व युद्ध के बाद धनवान के रूप में उभरा अमेरिका
अतुल मिश्रा के ट्वीट के मुताबिक, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित एक मौद्रिक और वित्तीय सम्मेलन में मित्र देशों के प्रतिनिधि एकत्र हुए। सम्मेलन का लक्ष्य: युद्ध के बाद वैश्विक वित्तीय स्थिरता लाना था। इस सम्मेलन के बाद ब्रेटन वुड्स प्रणाली सामने आई, जिसमें डॉलर को अंतरराष्ट्रीय व्यापार का माध्यम बना दिया गया। इस प्रणाली में देशों के बीच गोल्ड एक्सचेंज के स्थान पर डॉलर एक्सचेंज शुरू हुआ और इस डॉलर की कीमत सोने के मूल्य के अनुपात में रखी गई। अमेरिका इस महायुद्ध में शामिल होने वाला एकमात्र ऐसा देश था जिसने उतनी तबाही नहीं देखी जितनी यूरोप ने देखी थी, वह इस युद्ध के बाद धनवान बनकर सामने आया। सभी देशों ने अपनी अपनी मुद्रा को डॉलर से संबद्ध कर दिया और डॉलर को सोने से सम्बद्ध कर दिया गया। तब एक औंस का मूल्य 35 डॉलर था। अमेरिका को अपने द्वारा जारी डॉलर के मूल्य के बराबर सोना रिजर्व रखना पड़ता था।
US was the only country that came out of the war richer and mightier. Many countries owed massive amounts to it and the great American economy’s slowdown was nowhere in sight.
— Atul Kumar Mishra (@TheAtulMishra) April 1, 2022
उसके बाद अमेरिका ने अपनी शक्ति के मद में कई देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप शुरू किया। अमेरिका वियतनाम युद्ध में कूद पड़ा, उसे उम्मीद थी कि युद्ध जल्द समाप्त होगा लेकिन युद्ध लम्बा खिंच गया। जिससे अमेरिका की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव दिखने लगे। अमेरिका की लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था से फ्रांसीसी घबरा गए और उन्होंने अपने विदेशी मुद्रा भंडार में मौजूद डॉलर के अनुसार अमेरिका से सोने की मांग की, जिससे कल को डॉलर का मूल्य गिरे तो फ्रांस का पैसा सुरक्षित रहे और इस प्रक्रिया में धीरे-धीरे दूसरे देश भी कूद पड़े।
As the demand for for physical gold increased, the US panicked and on August 15, 1971, President Nixon turned the US Dollar into a Fiat currency which effectively suspended conversion of the US dollar into gold to circumvent the outflow of gold from the country.
— Atul Kumar Mishra (@TheAtulMishra) April 1, 2022
TFI के संस्थापक ने अपने ट्वीट में आगे बताय है कि जब अमेरिका पर दबाव बढ़ने लगा तो तत्कालीन राष्ट्रपति निक्सन ने 15 अगस्त 1971 को डॉलर को फिएट (FIAT) मुद्रा में बदल दिया। फिएट मुद्रा वह मुद्रा है, जिसका निर्धारण किसी भौतिक वस्तु के अनुसार नहीं होता। जैसे सोने चांदी के बदले में जो मुद्रा जारी नहीं की जाती हो वह फिएट मुद्रा है, इसका मूल्य सरकार के साख पर निर्भर करता है। पहले की प्रणाली में राष्ट्रों पर यह दबाव था कि वह जितनी मुद्रा जारी करेंगे, उतनी मात्रा में सोना रखना होगा। लेकिन फिएट मुद्रा ने इस संतुलन को समाप्त कर दिया। पहले ऐसा होता था कि यदि कोई अर्थव्यवस्था खराब प्रदर्शन करती थी, तो सोने का देश से बहिर्गमन होता था। जब अच्छा प्रदर्शन करती थी तो सोना देश में आता था। लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब मुद्रा का निर्धारण दूसरे देशों की मुद्रा के अनुपात में होता है। डॉलर आज भी लेनदेन का आधार है और डॉलर के मामले में हुए बदलाव वैश्विक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव डालते हैं।
अपनी साख पर डॉलर निकालता है अमेरिका
अगर डॉलर का मूल्य गिरता है, तो दूसरे देशों के सेंट्रल बैंक बाजार में हस्तक्षेप करते हैं कि उनके देश पर इसका प्रतिकूल प्रभाव न पड़े। अगर अमेरिका को पैसों की जरूरत होती है, तो वह अपने फेडरल रिजर्व से लोन मांगता है। फेडरल रिजर्व को पैसे की आवश्यकता होती है तो वह डॉलर छापता है। अमेरिका की सरकार को यह डॉलर मिलते हैं तो वह गवर्नमेंट बांड जारी करती है। इनका वास्तविक मूल्य कुछ भी हो लेकिन दूसरे देश इसमें निवेश करते हैं। क्योंकि अमेरिका के बांड खरीदने का अर्थ हुआ उसे ऋण देना, जो दुनिया में निवेश के लिए सम्भवतः सबसे सुरक्षित कार्य है। अमेरिका को अपने बांड के बदले पैसे मिलते हैं, जिनका प्रयोग युद्धों में होता है और दूसरे देशों के आंतरिक मामलों को प्रभावित करने के लिए चलने वाले NGO आदि को अनुदान दिया जाता है।
अमेरिका अपनी साख पर डॉलर निकालता है, जब आवश्यक हो तब, जितना आवश्यक हो उतना। यह देखने में एक जालसाझी लगती है क्योंकि वास्तव में अमेरिकी डॉलर का मूल्य क्या है, यह कैसे निर्धारित होगा। ऐसे में दुनिया को अब इस पोंजी स्किम से हटना चाहिए और दोबारा गोल्ड स्टैंडर्ड वाली प्रणाली अपनानी चाहिए। दुनिया को पुनः अपने मुद्रा को सोने के अनुसार निर्धारित कर व्यापार अपनी मुद्रा में शुरू करना चाहिए। रूस ने यह निर्णय लिया है और अब दुनिया को भी इस पर आगे बढ़ना चाहिए।
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