रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध को 3 महीने से भी अधिक समय हो गया है परन्तु इस युद्ध पर विराम के आसार नज़र ही नहीं आ रहे. इसी कारण विश्व भर में अन्न संकट की स्थिति पैदा होने के आसार दिख रहे हैं. जिस कारण से कई देश अपने खाद्य निर्यात पर प्रतिबंध लगा रहे हैं, ताकि उनके देश में अन्न की कमी न हो. भारत भी ऐसे कुछ देशों में से है जिसने ऐसे ही कुछ सख्त कदम उठाते हुए गेहूं और चीनी के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है. अब अटकलें तो ऐसी भी लगाई जा रही है कि आने वाले कुछ ही दिनों में भारत सरकार अब चावल के निर्यात पर भी रोक लगा सकता है. घरेलू बाजार में खाद्य पदार्थों की कीमत को नियंत्रित करने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय उत्पाद दर उत्पाद आधार पर आंकलन कर रहा है. पांच आवश्यक उत्पादनों में से दो- गेहूं और चीनी के निर्यात पर प्रतिबन्ध लगाया जा चुका है. अब चावल भी इसी सूची का हिस्सा बन सकता है. ऐसा करना इसलिए अति आवश्यक है ताकि स्वदेश में अन्न की कमी न हो और महंगाई को नियंत्रित किया जा सके.
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चावल निर्यात पर प्रतिबंध
दरअसल, चावल हमेशा से ही एक प्रधान अनाज रहा है, जिसके बल पर आज विश्व खाद्य संकट से काफी हद तक बचा हुआ है. जहां एक तरफ गेहूं और मक्का की कीमतें आसमान छू रही हैं, वहीं दूसरी ओर पर्याप्त उत्पादन और मौजूदा भण्डार के कारण चावल की कीमतें अभी भी थोड़ी कम हैं. हालांकि, अगर भारत ने चावल निर्यात पर अंकुश लगा दिया तो भारत के एक्शन के बाद अन्य देश जो चावल के निर्यातक हैं, वे भी ऐसा ही कदम उठा सकते हैं. ध्यान देने वाली बात है कि एशिया लगभग 90% चावल का उत्पादन और उपभोग करता है. चावल के वैश्विक व्यापार में भारत का हिस्सा 40% है. चीन के बाद भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा चावल उत्पादक देश है.
अगर चावल पर भारत सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया तो वैश्विक खाद्य सुरक्षा पर विनाशकारी प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि यह एक महत्वपूर्ण उत्पाद है. कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज के वरिष्ठ अर्थशास्त्री सुवोदीप रक्षित ने ब्लूमबर्ग के एक इंटरव्यू में कहा कि चावल के निर्यात को सीमित करने का फैसला आने वाले हफ़्तों में कीमतों पर निर्भर करेगा. चावल की बुवाई होने वाली है और उत्पादन मौसम पर निर्भर करता है. उन्होंने कहा की यदि मानसून अनिश्चित होता है तो संभावना है कि चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगेगा.
गेहूं निर्यात पर रोक लगी तो मचा बवाल
कुछ समय पहले जब भारत सरकार ने चीनी और गेहूं के निर्यात पर रोक लगाई तो विश्व भर से तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली. गौरतलब है कि वर्ष 2021 में ग्लोबल हंगर इंडेक्स स्कोर की गणना हुई जिसमें भारत को 116 देशों में 101वें स्थान पर रखा गया. जबकि भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान (92), नेपाल (76) और बांग्लादेश (76) को उससे बेहतर स्थान मिला है.
केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने दावा किया कि वर्ष 2021 ग्लोबल हंगर इंडेक्स स्कोर की गणना के लिए जिस पद्धति का इस्तेमाल किया गया था, वह “अवैज्ञानिक” है. ध्यान देने वाली बात है कि ग्लोबल हंगर इंडेक्स स्कोर की गणना चार संकेतकों पर की जाती है- अल्प पोषण (Undernourishment), Child Wasting, Child Stunting और पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु. मंत्रालय ने कहा कि रिपोर्ट ने कोरोनो वायरस महामारी के दौरान देश की आबादी को खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार के पहल की अवहेलना की. इसने केंद्र सरकार द्वारा किए गए कई उपायों को सूचीबद्ध किया, जिनमें प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना, आत्मनिर्भर भारत योजना और पीएम किसान निधि योजना आदि शामिल है.
मंत्रालय ने अपने बयान में कहा, “जनमत सर्वेक्षण में एक भी सवाल नहीं है कि क्या प्रतिवादी को सरकार या अन्य स्रोतों से कोई खाद्य समर्थन मिला है.” मंत्रालय ने रिपोर्ट के इस बयान पर भी आश्चर्य व्यक्त किया कि अफगानिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका महामारी के कारण नौकरी छूटने और आय के स्तर में कमी से प्रभावित नहीं हुए हैं, बल्कि अल्पपोषण के संकेतक पर अपनी रैंक में सुधार करने में कामयाब रहे हैं.
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पूर्वाग्रह से ग्रसित वैश्विक संस्थाएं खोल लें अपनी आंखे
आपको बताते चलें कि आज श्रीलंका में जहां चावलों की कीमतें 500 रूपए किलो पहुंच गई है, वहीं बांग्लादेश, अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के भी हालात उतने अच्छे नहीं हैं. Global Hunger Index score की गणना हुए अभी 10 महीने भी नहीं हुए हैं कि आज विश्व उस देश से अन्न का निर्यात जारी रखने को कह रहा है, जिसे उसने खुद सबसे कुपोषित देशों की सूची में सबसे नीचे स्थान दिया था. कोरोना काल का वह समय जब कुछ देशों में लोग टॉयलेट पेपर के लिए भी लड़ रहे थे उस समय भारत सरकार अपने लोगों को फ्री में राशन दे रही थी, जो अभी तक दी जा रही है. ऐसे में भारत को नीचा दिखाने वाली और भ्रामक रिपोर्ट प्रकाशित करने वाली वैश्विक संस्थाएं अपनी गणना और मापक के पैमाने को सही कर लें, क्योंकि अब भारत भी Charity Begins at Home पर विश्वास करने लगा है. अब पहले खाना खुद खाया जाएगा और फिर पड़ोस में बांटा जाएगा, ताकि कल को पडोसी ही अपने मददगार को ‘कुपोषित’ कहकर न पुकारे.