श्रीलंका इन दिनों आर्थिक संकट से जूझ रहा है। श्रीलंका के आर्थिक संकट ने भारत के समक्ष एक नई शरणार्थी समस्या पैदा कर दी है। इन श्रीलंकाई शरणार्थियों में एक बड़ा हिस्सा श्रीलंका के तमिलों का है जो स्वयं को सांस्कृतिक रूप से भारत के अधिक समीप पाते हैं। श्रीलंका की सरकार भारत सरकार से सहायता की अपेक्षा रखती है ऐसे में यह विषय आज के समय में विमर्श का केंद्र है कि भारत और श्रीलंका के संबंध किन आयामों पर टिके हैं और इनका भविष्य क्या है।
भारत श्रीलंका को उसके आर्थिक संकट से बचाने के लिए आवश्यक सहयोग करने पर विचार कर रहा है। इसके पूर्व भी श्रीलंका के गृह युद्ध में भारत ने श्रीलंका की सहायता करने का प्रयास किया था। हालांकि, भारत का श्रीलंकाई गृहयुद्ध में हस्तक्षेप एक विवादास्पद फैसला था। भारतीय सेना ने तमिल विद्रोहियों के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष में भाग लिया। अंततः भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी की हत्या श्रीलंकाई तमिल आतंकियों द्वारा कर दी गई। राजीव गांधी की हत्या के कारण आम भारतीयों में तमिल विद्रोहियों की छवि बहुत खराब हो गई। किंतु अब समय है कि भारत इस पूरे संघर्ष को उसकी पृष्ठभूमि के साथ समझे और इसमें अपने हित साधने के साधन खोजे।
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श्रीलंका में है सिंहलियों का वर्चस्व
सर्वप्रथम श्रीलंका के तमिल तमिलनाडु के तमिलों के समीप है। दोनों देशों के तमिलों में वैवाहिक संबंध भी बनते हैं। यही कारण था कि श्रीलंका के तमिलों पर हुए अत्याचारों का सीधा प्रभाव और उसकी प्रत्यक्ष प्रतिक्रिया भारत के तमिलनाडु में देखने को मिली थी। यह सत्य है कि श्रीलंका की बहुसंख्यक आबादी जो सिंहलियों की है, उन्होंने तमिलों पर कई प्रकार के अत्याचार किए। श्रीलंका के जिन क्षेत्रों में तमिल आबादी रहती है, उन पर ऐतिहासिक रूप से तमिलों का शासन रहा है। श्रीलंका में तमिल बनाम सिंहली विवाद अंग्रेजों के शासन में आई पृथक निर्वाचन प्रणाली के कारण शुरू हुआ।
जब श्रीलंका ब्रिटिश साम्राज्य के चंगुल से मुक्त हुआ तो लोकतांत्रिक व्यवस्था में बहुसंख्यक सिंहलियों का वर्चस्व हो गया। तमिल के समृद्ध इतिहास और भाषा के बाद भी सिंहली को श्रीलंका की एकमात्र भाषा बनाया गया। सरकारी समर्थन ने आर्थिक अवसरों में सिंहली लोगों को अधिक सहयोग दिया। नौकरियों में तमिलों के साथ भेदभाव शुरू हो गया। वर्ष 1956, 1958 और 1977 में इन भेदभावों के विरुद्ध हुए शांतिपूर्ण प्रदर्शनों का बलपूर्वक दमन हुआ और तमिलों का नरसंहार और महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया। इस नरसंहार में सरकार और आम सिंहलियों ने मिलकर तमिलों पर अत्याचार किए। वर्ष 1981 में तमिलों के इतिहास और साहित्यिक/भाषाई पहचान को मिटाने के लिए जाफना लाइब्रेरी जला दी गई। लगभग 1 लाख पुस्तकें जल गई, जो तमिलों की बहुमुल्य धरोहर थी।
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भारत को अपने हितों का रखना होगा ध्यान
वर्ष 1983 के जुलाई में इन अत्याचारों के प्रत्युत्तर में तमिलों के एक छोटे समूह द्वारा श्रीलंकाई सेना की एक टुकड़ी पर हमला किया गया। इसके बाद पूरे श्रीलंका में तमिलों को खोज-खोज कर मारा जाने लगा। अनुमान के अनुसार 3000 से 4000 के लगभग तमिल लोगों की हत्या कर दी गई जबकि वास्तविक आंकड़ा इससे भी अधिक था। इसके प्रत्युत्तर में LTTE शुरू हुआ। माना जाता है कि भारत ने LTTE को शुरुआत में सहयोग दिया। सरकार इसे आधिकारिक रूप से कभी स्वीकार नहीं करेगी किन्तु बाद में भारत सरकार की नीतिगत कमियों के कारण LTTE और भारत के सम्बंध बिगड़ने लगे। भारत सरकार ने एलटीटीई के विरुद्ध कई अन्य तमिल विद्रोही संगठनों को सहयोग दिया और बाद में प्रत्यक्ष सैन्य हस्तक्षेप भी किया, किन्तु LTTE को प्राप्त व्यापक जनसमर्थन के कारण भारत असफल रहा। बाद में LTTE द्वारा राजीव गांधी की हत्या कर दी गई और इसके बाद भारत और तमिल विद्रोहियों के संबंध कभी सुधर नहीं सके।
तमिल विद्रोहियों को सहयोग देना एक उचित नीति भी नहीं होगी क्योंकि सशस्त्र तमिल विद्रोही समूह भारत के तमिलनाडु में स्थित छिटपुट अलगाववादी तत्वों का अनावश्यक रूप से मनोबल बनाएंगे। किंतु भारत सरकार को श्रीलंकाई तमिलों की समस्या के प्रति जागरूक रहना चाहिए। श्रीलंकाई तमिल सांस्कृतिक रूप से भारत के अधिक समीप हैं और श्रीलंका में भारत के लिए एक दबाव समूह की तरह कार्य कर सकते हैं। वर्तमान समय में ब्रिटेन से लेकर अमेरिका तक भारतीय समुदाय की व्यापक उपस्थिति ने इन देशों की सरकार पर भारत समर्थक नीति अपनाने का दबाव बनाया है। उदाहरण स्वरूप बाइडन प्रशासन को देख लीजिए, डेमोक्रेट चाह कर भी अधिक भारत विरोधी रवैया नहीं अपना सकते क्योंकि डेमोक्रेटिक पार्टी में भारतीय समुदाय के लोगों की अच्छी पकड़ है।
ऐसे में अगर भारत श्रीलंका के तमिलों से अपने संबंध मजबूत करता है तो भविष्य में श्रीलंका में चीन के हस्तक्षेप को नियंत्रित करने में तमिल दबाव समूह महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। श्रीलंका हमारा पड़ोसी है ऐसे में उसकी समस्याएं भारत के हितों को प्रभावित करेंगे। भारत श्रीलंका को उसके आर्थिक संकट से बचाएगा क्योंकि यह प्रत्यक्ष रूप से हमें प्रभावित कर रही है। शरणार्थी समस्या केवल एक पहलू है, भारत नहीं चाहेगा कि उसके पड़ोस में सोमालिया जैसा असफल राष्ट्र हो जहां चारों ओर अराजकता फैली हो। किंतु भारत को यह भी ध्यान देना चाहिए कि श्रीलंका का सहयोग करते समय हम अपने हितों को अधिक से अधिक सुरक्षित करने का प्रयास करें।
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