भारतीय राजनीति में अपनी वाह-वाही और बढ़ाई की एक विचित्र समस्या है। क्षेत्रीय दल तो इस मामलों में ऐसे लालायित हैं कि खुद सरकार में रहते हुए खुद को या फिर अपने नेताओं को ‘पुरस्कृत’ कर लेते हैं।
झारखंड मुक्ति मोर्चा के संरक्षक, राज्यसभा सांसद और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन को किताबी ज्ञान का हिस्सा बनाने की जुगत में उनके बेटे और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सभी घोड़े खोल दिए हैं। जहां एक ओर कांग्रेस इसका समर्थन कर रही है तो भाजपा मुखरता से इसका विरोध कर रही है।
दरअसल, अपनी पार्टी के रंग में स्कूलों को रंगने के आदेश के बाद अब हेमंत सोरेन सरकार अपने पिता के लिए काम करने में जुट गई है। झामुमो के नेतृत्व वाली महागठबंधन सरकार ने स्कूली पाठ्यक्रम में पार्टी के संरक्षक शिबू सोरेन पर अध्याय शामिल करने का फैसला किया है। दो दिन पहले राज्य के शिक्षा मंत्री, झामुमो नेता जगरनाथ महतो ने बोकारो की यात्रा के दौरान शिबू सोरेन और अन्य ‘झारखंड मुक्ति आंदोलन’ के नेताओं- विनोद बिहार महतो और सुनील महतो को पाठ्यक्रम में शामिल करने की घोषणा की थी।
सरकारी स्कूलों को हरे रंग में रंगने के कदम को सही ठहराते हुए महतो ने कहा, “2000 में झारखंड के गठन के बाद से किसी भी सरकार ने कभी काम नहीं किया। हमारे छात्रों को राज्य के आंदोलन और उन लोगों के बारे में शिक्षित करने की दिशा में ऐसे निर्णय लेना बेहद ज़रूरी है जिन्होंने इस उद्देश्य के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया था।
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शिबू सोरेन के अतिरिक्त झारखंड आंदोलन से जुड़े बिनोद बिहारी महतो, सुनील महतो को भी सिलेबस शामिल किया जाएगा। इसे कवरअप कहा जाए तो बड़ी बात नहीं होगी क्योंकि हेमंत सोरेन सरकार का मूल उद्देश्य केवल शिबू सोरेन की जीवनी को राज्य के स्कूली पाठ्यक्रम में ठूंसना है। अब बात निकली है तो दूर तलक जाएगी ही! भाजपा प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने पूछा कि क्या सरकार छात्रों को शिबू से जुड़े “भ्रष्टाचार के आरोपों” के बारे में भी बताएगी।
हालांकि हम स्वीकार करते हैं कि उन्होंने सभी बाधाओं के खिलाफ झारखंड आंदोलन का नेतृत्व किया, लेकिन यह भी एक वास्तविकता है कि नरसिम्हा राव की सरकार के दौरान 90 के दशक के मध्य में जब अलग झारखंड के निर्माण का अवसर आया तब शिबू सोरेन पर कांग्रेस से पैसे लेने के बाद चुप रहने के आरोप लगे थे।” बीजेपी प्रवक्ता ने यह भी कहा कि शिबू सोरेन पर संसद में वोट देने लिए के लिए नोट लेने का भी आरोप है। ऐसे में हमारे बच्चों को क्या इसकी जानकारी भी दी जाएगी?”
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बात तो सही थी कि जीवनी में सारगर्भित इतिहास पढ़ाने की एक परंपरा रही है और ऐसे में यदि उसे छिपाकर एकमुश्त रूप से वाहवाही और महिमामंडन किया जाता है तो इसे शिक्षा का राजनीतिकरण क्यों न कहा जाए? यह तो वही बात है कि पीएम मोदी द्वारा ‘संघीकरण’ कर देने के झूठे आरोप गढ़ने वाले अब स्वयं अपने परिवार को पुस्तकों में जबरन घुसाने की निर्लज्जता कर रहे हैं, वो भी तब जब सोरेन परिवार का इतिहास कितना साफ़ रहा है वो स्वयं ही जानते हैं। झारखंड सरकार झारखंड के इतिहास की किताबों में “सोरेन्स” के बारे में डींगे मारने को तैयार है पर सच तो यह है कि ‘काला इतिहास’ पढ़ने में किसी को कोई रूचि होती नहीं है।
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