नीतीश कुमार देश के सबसे भ्रमित नेता हैं! जब से उनकी सुशासन वाली छवि टूटी है वो बिहार की राजनीति में निरर्थक और अप्रासंगिक होते जा रहे हैं। सीटें उनके पास बची नहीं, राज्य के नेता का उत्तरदायित्व संभाला नहीं, बस बैठे बैठे देश के पीएम बनने का स्वप्न देखते रहते हैं। किसी के पास जातीय समीकरण है तो किसी के पास कैडर और विकास का मॉडल, पर नीतीश के पास तीनों ही नहीं हैं अतः वो मुस्लिम तुष्टीकरण के पिछलग्गू नेता बन गए हैं। हाल ही में, उन्होंने यूपी के तर्ज पर बिहार में लाउडस्पीकर बंद करने की भाजपा की मांग को पूरी तरह से खारिज कर दिया। इस तरह की मांग को वो पहले भी खारिज कर चुके हैं लेकिन इस बार वो ज्यादा स्पष्ट और मुखर थे।
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नीतीश कुमार ने कहा,“इस बकवास के बारे में बात मत करिए। बिहार में हम किसी भी प्रकार की धार्मिक प्रथाओं में हस्तक्षेप नहीं करते हैं। पर, कुछ लोग सोचते हैं कि उपद्रव करना उनका काम है और वे इसे जारी रखेंगे।” बीजेपी की ओर से जनक राम ने इस मुद्दे को उठाया था। जद (यू) संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने कहा, “नीतीश एनडीए सरकार की अध्यक्षता करते हैं, न कि भाजपा सरकार की।“
अब उपेंद्र कुशवाहा को कौन समझाये की नीतीश कुमार भाजपा के उपकार से ही बिहार में एनडीए की अध्यक्षता करते हैं वरना नैतिक रूप से तो उन्हें मुख्यमंत्री होना ही नहीं चाहिए था। अगर इस बात को छोड़ भी दें तो यह भी सत्य है कि नीतीश कुमार राष्ट्रीय पटल पर आना तो चाहते ही हैं। अतः इस मुद्दे पर उनके विचार मायने रखते हैं। भले ही नीतीश कुमार को ये बकवास बात लगती हो और वो इसपर बात नहीं करना चाहते, पर ये मुद्दा धार्मिक अज्ञानता और नागरिक स्वतन्त्रता से जुड़ा हुआ है। शायद, वो मुसलमानो को खुश करने के लिए इसपर बात करने से बच रहे हैं।
मुस्लिम तुष्टीकरण और सुशासन के ढोंग के लिए उन्होंने बहुत काम किए हैं। अपने मुख्यमंत्रित्व के प्रथम काल में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ जनसभा को संबोधित करने से भी मना कर दिया था। इतना ही नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ वायरल हुए अपने फोटो को लेकर भाजपा खेमे को फटकार भी लगाई थी। पर फिर सत्ता के लिए वह भाजपा से मिल गए। उसके बाद जिस लालू यादव को भ्रष्टाचार और कुशासन का प्रतीक बनाकर वो चुनाव जीते फिर उन्हीं के दल राजद के साथ सत्ता के लिए गठबंधन कर लिया। उसके बाद फिर उन्होंने सत्ता के लिए भगवा पार्टी का दामन थामा, नरेंद्र मोदी के साथ जनसभा भी की और उन्हीं के चेहरे पर चुनाव भी जीते। ऐसे में नीतीश को यह समझ जाना चाहिए कि जनता मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करनेवाले नेताओं को नकार रही है, अतः उन्हें जनता के हित के लिए मुखर और स्पष्ट होना होगा क्योंकि नीतीश बाबू के पास तो जातीय जनाधार भी नहीं है।