देश की कमान अगर मजबूत हाथों में हो तो विश्व पटल पर राष्ट्र को अलग पहचान मिलती है। भारत के संदर्भ में यह बात एकदम सही साबित हो रही है। पिछले 8 सालों में जब से मोदी सरकार सत्ता में आई दुनिया भारत को अलग नजरों से देखने लगी है। पूरी दुनिया में भारत का मान बढ़ रहा है। देश को अलग पहचान मिल रही है।
अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के लिए एक और गर्व की अनुभूति करने वाला पल आया है। हमारे देश की भाषा हिंदी का कद दुनियाभर में बढ़ा है। संयुक्त राष्ट्र ने पहली बार अपनी भाषाओं में हिंदी को भी शामिल किया। जिसका मतलब यह है कि अब हिंदी की गूंज संयुक्त राष्ट्र में भी सुनने को मिलेगी।
दरअसल, शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने बहुभाषावाद पर भारत के प्रस्ताव को मंजूरी देते हुए हिंदी भाषा को शामिल कर लिया। यह हर भारतवासी के लिए गर्व का क्षण है कि अब संयुक्त राष्ट्र अपने कामकाज और संदेशों को हिंदी भाषा में भी जारी करेगा।
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शुक्रवार को पारित प्रस्ताव में कहा गया कि संयुक्त राष्ट्र, हिंदी भाषा समेत आधिकारिक और गैर-आधिकारिक भाषाओं में महत्वपूर्ण संचार और संदेशों का प्रसार जारी रखने के लिए प्रोत्साहित करता है। संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव में पहली बार हिंदी भाषा का जिक्र किया गया है। यहां जान लें कि संयुक्त राष्ट्र महासभा यानी UNGA की छह आधिकारिक भाषाएं हैं। जिसमें अंग्रेंजी, अरबी, चीनी, फ्रेंच, रूसी और स्पेनिश शामिल है। अंग्रेजी और फ्रेंच में संयुक्त राष्ट्र काम भी करता हैं। यानी यह संयुक्त राष्ट्र की कामकाजी भाषाएं हैं।
संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में भारत के स्थायी प्रतिनिध राजदूत टीएस तिरुमूर्ति ने संयुक्त राष्ट्र के इस कदम की सराहना की। उन्होंने कहा, “बहुभाषावाद का प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र ने पास किया गया। पहली बार इसमें हिंदी भाषा का जिक्र है। साथ ही इसमें बांग्ला और उर्दू भाषा का भी उल्लेख किया गया है। भारत, संयुक्त राष्ट्र के इस फैसले का स्वागत करता हैं। यह महत्वपूर्ण है कि बहुभाषावाद को संयुक्त राष्ट्र सही मायने में अपनाए। इस उद्देश्य को प्राप्त करने में भारत संयुक्त राष्ट्र का समर्थन करेगा।”
यह मोदी सरकार के निरंतर प्रयासों का ही परिणाम है कि हिंदी भाषा को संयुक्त राष्ट्र के द्वारा मान्यता दी गई। दुनियाभर में हिंदी भाषा को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार निरंतर कोशिश कर रही है। कई बार संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को आधिकारिक तौर पर मान्यता देने की मांग उठाई जा चुकी है।
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हिंदी के प्रचार को लेकर वर्ष 2018 में भारत ने ‘हिंदी @ यूएन’ परियोजना शुरूआत की थी। जिसके तहत यूएन के वैश्विक संचार विभाग के साथ साझेदारी की गई थी। मिशन का उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र की सार्वजनिक सूचनाएं हिंदी में देने को बढ़ावा देने के साथ और दुनियाभर में हिंदी बोलने वाले लोगों में वैश्विक मुद्दों को लेकर अधिक जागरूकता लाना था। वहीं, इसके अलावा हिंदी के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए पिछले महीने ही सरकार ने संयुक्त राष्ट्र में आठ लाख अमेरिकी डॉलर का सहयोग भी दिया था।
आज भारत ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह जो उपलब्धि हासिल की वो हर भारतीय के लिए काफी खास है। हालांकि इस उपलब्धि का सबसे बड़ा श्रेय किसी को दिया जाए, तो वो देश के पूर्व दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी होंगे। वाजपेयी जी ने हिंदी को विश्व में पहचान दिलाने के लिए सबसे पहले प्रयास किया था। वो अटल बिहारी वाजपेयी ही थे, जिन्होंने गर्व के साथ पहली बार संयुक्त राष्ट्र में हिंदी भाषा में भाषण दिया था।
बात वर्ष 1977 की है, जब अटल बिहारी वाजपेयी ने बतौर विदेश मंत्री संयुक्त राष्ट्र संघ में अपना पहला भाषण देकर हर किसी को चौंका दिया था। यह पहला मौका था जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी की गूंज सुनने को मिली। तब भाषण खत्म होने के बाद संयुक्त राष्ट्र में आए सभी देश के प्रतिनिधियों ने खड़े होकर तालियां भी बजाई थीं। वाजपेयी जी के बाद भाजपा के कई नेताओं द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी को आगे बढ़ाने का काम किया गया।
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2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण दिया था। इसके अलावा पूर्व दिवंगत विदेश मंत्री सुषमा स्वराज जो अपने तेज-तर्रार भाषणों के लिए जानी जाती थीं, वो भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी का मान बढ़ाती नजर आईं। ऐसे में अब जबकि भारत की भाषा हिंदी को सम्मान तो मिला है तो यह भारत के लिए गर्व का पल है।
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