भारत लंबे समय से तटीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में विकास के सपनों को संजो रहा है, लेकिन इसमें नियमित तौर पर कुछ ना कुछ बाधाएं आती रहीं- और काम अटकता रहा। जो काम वर्षों पहले हो जाना चाहिए था वो अब हो रहा है, वो भी तब संभव हुआ जब मोदी सरकार की सीधी नजर इस क्षेत्र पर पड़ी। अब सिंगापुर की तर्ज पर तटीय अर्थव्यवस्था का विकास करने के लिए अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में वो होने जा रहा है जिसकी कल्पना भी पिछली सरकारों ने नहीं की थी। अब भारत ग्रेटर निकोबार में भारी निवेश कर रहा है।
नीति आयोग हाल ही में अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में स्थित “ग्रेट निकोबार द्वीप के समग्र विकास” के लिए एक योजना लेकर आया है। इस योजना में 72,000 करोड़ रुपये का अंतर्राष्ट्रीय कंटेनर ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल, हवाई अड्डा, थर्मल पावर प्लांट और 6.5 लाख लोगों के लिए टाउनशिप आवास का निर्माण शामिल है। यह विचार ग्रेट निकोबार द्वीप को लगभग 8,000 निवासियों के साथ एक हलचल वाले आर्थिक केंद्र में बदलना है जो भारत को प्रमुख शिपिंग लेन और व्यापार मार्गों में एंट्री करवाएगा।
इस नीति से एक बात तो साफ है कि अबतक एक सही योजना की कमी थी। देश के पास वास्तव में अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में स्थित ग्रेट निकोबार द्वीप है जो एक सैन्य सहूलियत बिंदु और एक आर्थिक केंद्र के रूप में भी काम कर सकता है। दशकों तक, सरकार इसका लाभ नहीं उठा सकी, अब मोदी सरकार नई सोच के साथ आई है।
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चीन मलक्का जलडमरूमध्य से व्यापार करता है, यहीं पर ग्रेट निकोबार द्वीप सामरिक महत्व रखता है। ग्रेट निकोबार द्वीप, इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप के सिरे से मुश्किल से 90 किमी की दूरी पर स्थित है और मलक्का जलडमरूमध्य के पश्चिमी प्रवेश द्वार के करीब है। खाड़ी से तेल ले जाने वाले या पश्चिम में माल निर्यात करने वाले चीनी जहाजों को मलक्का जलडमरूमध्य से गुजरना पड़ता है।
इसलिए ग्रेट निकोबार द्वीप पर सैन्य संपत्ति रखने, युद्धपोतों को डॉक करने और मिसाइलों को स्थापित करने से भारत का रणनीतिक महत्व बढ़ जाएगा। यह चीन को भी एक सख्त संदेश होगा कि यदि आप लद्दाख या अरुणाचल प्रदेश में लाल रेखा को पार करते हैं, तो हम मलक्का जलडमरूमध्य में आपकी आर्थिक जीवन रेखा को अवरुद्ध कर देंगे।
भारत ने वियतनाम और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ जिस लॉजिस्टिक शेयरिंग समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, उसे देखते हुए चीन को भी मलक्का जलडमरूमध्य के प्रवेश द्वार पर क्वाड के समन्वय की संभावना के बारे में चिंता करनी होगी।
सिंगापुर, दुबई और हांगकांग ने दिखाया है कि किस तरह द्वीपों या तटीय शहरों को पर्यटन, व्यापार और वित्त के केंद्रों के रूप में विकसित किया जा सकता है। कुछ ऐसे ही अवसर ग्रेट निकोबार द्वीप भी भारत को प्रदान करता है। ग्रेट निकोबार द्वीप के लिए एक ट्रांस-शिपमेंट पोर्ट विकसित करने की दिशा में 10,000 करोड़ का निवेश किया गया है। ट्रांस-शिपमेंट पोर्ट आधुनिक समुद्री अर्थव्यवस्था का एक अभिन्न अंग है। ये बंदरगाह मध्यवर्ती गंतव्य के रूप में काम करते हैं जहां अंतिम गंतव्य के लिए रवाना होने से पहले कार्गो को एक जहाज से दूसरे जहाज में ले जाया जाता है।
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ग्रेट निकोबार में एक ट्रांस-शिपमेंट हब अपने आप में एक बड़ी अर्थव्यवस्था बना सकता है। अकेले सिंगापुर और दुबई की तुलना में द्वीप आकार में बड़ा है, जो 900 किलोमीटर से अधिक के समुद्र तट से मिला हुआ है। यह विश्व के तेल व्यापार के केंद्र पर स्थित है। पूरे विश्व का 40 प्रतिशत से अधिक व्यापार इसी क्षेत्र से होकर गुजरता है।
इसके अलावा, भारत पहले से ही अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में शीर्ष इंटरनेट कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए एक हवाई अड्डे, एक टाउनशिप, एक थर्मल पावर प्लांट, एक रेल लाइन और एक ऑप्टिकल फाइबर केबल परियोजना जैसी अन्य परियोजनाओं पर काम कर रहा है। इन सभी परियोजनाओं को क्रियान्वित करके मोदी सरकार का लक्ष्य है कि ग्रेट निकोबार द्वीप को एक व्यस्त ट्रांस-शिपमेंट हब के रूप में विकसित किया जाए।
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इसकी शुरुआत हो चुकी है और निस्संदेह यह प्रयास भारत को बहुत सकारात्मक दूरगामी परिणाम देता दिख रहा है यह इस बात की पुष्टि करता है कि भारत ग्रेटर निकोबार में भारी निवेश करने के साथ ही उसके सर्वांगीण विकास और उन्नति के ध्येय को परिपूर्ण कर रहा है जो वर्षों से अधर में लटका हुआ था।
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