भारत केवल भारत नहीं है, ये अलग अलग भाषाओं, अलग रहन सहन, अलग खान पान का एक सुंदर मेल है। अनेकता में एकता का अगर कोई उत्कृष्ट उदाहरण है तो वो हमारा भारत ही है। यही एकता भारत को सशक्त करती आई है लेकिन समय-समय पर कुछ उपद्रवी इस सशक्त भारत को चुनौती देने की हिमाकत कर बैठते हैं। उपद्रवियों से भरे कुछ समूह तो ऐसे भी हैं जो एक अलग पहचान को आधार बनाकर एक अलग राज्य बनाने तक के घिनौने स्वप्न को देखने तक का दुस्साहस कर बैठते हैं। एकता, अनेकता संबंधी बातें लिखने की आवश्यकता क्यों पड़ गयी इस पर ध्यान देना होगा। हुआ ये है कि नागाओं के संगठन NSCN (I-M) ने अलगाववादी सोच से प्रेरित अपनी मांगों को मनवाने के लिए हिंसक आंदोलन शुरू कर दिया लेकिन मोदी सरकार के हालिया प्रयास से इन सभी पापी सोचों को ध्वस्त कर दिया गया और आगे भी किया जाता रहेगा।
सरकार को इन बातों का विशेष ध्यान रखना होगा कि इन समूहों की किसी भी राष्ट्रविरोधी मांगों को पूरा नहीं होने देने के अपने प्रयासों में बहुत सावधानी बरतने की आवश्यकता है जिससे कि देश में कहीं और जम्मू-कश्मीर जैसी स्थिति पैदा न हो जाए। दरअसल, मई महीने के अंतिम दिनों में NSCN (I-M) और केंद्र सरकार के बीच शांति वार्ता चली, हालांकि इस बातचीत में रुकावट आ गयी है। बात ये है कि केवल सांकेतिक रूप से नागा ध्वज को अपने सांस्कृतिक उद्देश्यों के लिए उपयोग करने की बात NSCN (I-M) मान नहीं रहा है। वह इसे राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकृत दिलवाने के प्रयास में हैं और पुरजोर तरीके से इसकी मांग कर रहा है लेकिन भाजपा नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने उसकी इन मांगों को अस्वीकार कर दिया और पहले भी कई कई बार ऐसी मांग को सरकार मना करती आयी है।
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इस समूह की मांग में क्या क्या शामिल है:-
- यह संगठन एक बड़ा नागालैंड (नागालिम) बनाना चाहता हैं जिसमें पड़ोसी असम, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश, उत्तरी म्यांमार और नागालैंड के वर्तमान राज्य के क्षेत्र शामिल हैं। ये ऐसे क्षेत्र हैं जहां नागा बसे हुए है।
- ये अलग नागा राष्ट्रीय ध्वज चाहते हैं।
- यह एक अलग नागा संविधान चाहते हैं।
NSCN (I-M) ने स्पष्ट किया है कि नागा राजनैतिक पहचान का प्रतीक नागा राष्ट्रीय ध्वज है और इसे लेकर किसी भी तरह का समझौता संभव नहीं है। वर्ष 1997 के बाद से 80 दौरे की बात केंद्र सरकार और NSCN (I-M) के बीच हुई है। इस मुद्दे पर दूसरे और नागा संगठनों से भी सरकार के द्वारा बात की गयी है पर कोई स्थाई हल नहीं मिला।
वर्ष 2015 की बात करें तो एनएससीएन गुट के साथ केंद्र सरकार के द्वारा फ्रेमवर्क एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए गए पर वार्ता और आगे नहीं बढ़ पायी। ऐसा इसलिए क्योंकि एनएससीएन-आईएम की मांग यही रही कि एक अलग नागा ध्वज और संविधान को मान्यता मिले और यही मांग बाधक रही है। नागालैंड के पूर्व राज्यपाल आरएन रवि ने इन मांगों को माना नहीं जो कि नागा शांति वार्ता के वार्ताकार रहे।
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आरएन रवि का स्थानांतरण जब तमिलनाडु में कर दिया गया तो ऐसे में नागा शांति वार्ता का दारोमदार इंटेलिजेंस ब्यूरो के पूर्व विशेष निदेशक ए.के. मिश्रा को दे दिया गया। अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या मिश्रा सफल हो पाते हैं? क्या नागा शांति वार्ता के मुद्दे का हल निकाल पाने में वो सफल हो पाते हैं?
इसी साल अप्रैल महीने में भी एक विधानसभा सत्र में पार्टी लाइन से हटकर सभी विधायकों ने केंद्र से इस मुद्दे को जल्द निपटाने का आग्रह किया। ध्यान देना होगा कि अगले ही साल यहां विधानसभा चुनाव होंगे। वहीं, नागालैंड के मुख्यमंत्री नेफियू रियो ने भी इस जटिल हो चुके मुद्दे को दोनों पक्षों से सुलझाने के लिए आग्रह किया था।
ये नागाओं का संगठन क्या करने का प्रयास कर रहा है इसे समझने की आवश्यकता है। क्या वो अपनी तुच्छ मांगों से अशांति फैलाना चाहता है? क्या वो कश्मीर जैसी एक और स्थिति को पैदा करना चाहते हैं? हालांकि, ऐसी धूर्त मानसिकता और ऐसी कोई भी चेस्टा पूरी नहीं होने वाली है क्योंकि केंद्र सरकार शांति के लिए हर तरह के प्रयास कर रही है।
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नागालैंड राज्य को पहले ही विशेष दर्जा प्राप्त है
आपको बताते चलें कि है कि संविधान के अनुच्छेद 371-A के तहत नागा संस्कृति के संरक्षण के लिए नागालैंड राज्य को पहले ही विशेष दर्जा प्रदान किया जा चुका है। अनुच्छेद 371-A के तहत नागालैंड के पास तीन विशेषाधिकार हैं-
- नागालैंड के लोगों के सांस्कृतिक और धार्मिक मामलों में भारतीय संसद का कोई भी कानून लागू नहीं होगा।
- नागाओं के प्रथागत कानूनों और परंपराओं पर संसद का कानून और सुप्रीम कोर्ट का कोई आदेश नहीं लागू होगा।
- किसी भी गैर नागा को नागालैंड में भूमि और संसाधन स्थानांतरित नहीं होगा। स्थानीय लोग ही नागालैंड की भूमि को खरीद सकते हैं।
ध्यान देने वाली बात यह है कि केंद्र सरकार ने 2015 के फ्रेमवर्क समझौते में इस बात पर सहमति दी थी कि पड़ोसी राज्यों के सभी नागाओं पर भी अनुच्छेद 371A के प्रावधान लागू होंगे। ऐसे में नागाओं के संगठन जो भी मांग कर रहे हैं उसको तब तो माना ही नहीं जा सकता है जब वो मांगें राष्ट्रीय एकता और अखंडता के विरुद्ध हों। शांति की प्रक्रिया में सरकार को इस बात के लिए सतर्क रहना चाहिए कि जम्मू-कश्मीर जैसी गलती किसी और राज्य में न हो जाए। ऐसे किसी भी प्रावधान पर सहमति नहीं दी जानी चाहिए जो भविष्य में अलगाववादी भावना को पैदा कर सकती है।