घर का भेदी लंका ढाये। राज्यसभा चुनाव में राजस्थान में भाजपा की हालत पर यह कथन एकदम सटीक साबित होता है। मैं नहीं तो कोई नहीं वाली परिधि की उपासक राजरानी वसुंधरा राजे आज भी अपने राजशाही व्यवहार से बाहर नहीं आ रही हैं। वो भूल गईं कि अब राजा-रानी वाला सिस्टम गया अब लोकतांत्रिक व्यवस्था के अनुरूप देश चलता है। वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाली सरकार 2018 में पुनः वापसी नहीं कर पाई थी और कांग्रेस सत्ता में आ गयी। इसके बाद से ही राज्य में भाजपा का ग्राफ सिरे नहीं चढ़ पाया क्योंकि राज्य का सियासी द्वंद्व भाजपा के लिए बाहरी नहीं उसके अपने ही तैयार कर रहे थे। अब ऐसा ही कुछ शुक्रवार को राज्यसभा चुनाव में देखने को मिला जहां वसुंधरा के करीबी विधायकों ने कांग्रेस को सोने की थाल में परोसकर राज्यसभा की सीटें उपहार में दे दीं।
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यह जीत ऐसे ही कांग्रेस को प्राप्त नहीं हुई
दरअसल, शुक्रवार को राजस्थान में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के तीन उम्मीदवारों ने राज्यसभा चुनाव जीता जबकि विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को एक ही सीट से संतोष करना पड़ा। कांग्रेस के तीन उम्मीदवार- रणदीप सुरजेवाला, मुकुल वासनिक और प्रमोद तिवारी चुनाव जीते हैं तो वहीं बीजेपी उम्मीदवार और पूर्व मंत्री घनश्याम तिवारी 43 वोट पाकर चौथी सीट जीतने में कामयाब रहे हैं। यह जीत ऐसे ही कांग्रेस को प्राप्त नहीं हुई, इसके पीछे का खेल कुछ ऐसा रहा कि स्वयं भाजपा की विधायक ही भाजपा से दगा कर गए। भाजपा के एक अन्य विधायक कैलाश चंद्र मीणा ने कांग्रेस के पोलिंग एजेंट गोविंद सिंह डोटासरा को अपना वोट दिखाया था उनका भी एक वोट रद्द हुआ।
जो भाजपा चुनाव से एक दिन पूर्व तक कांग्रेस में सेंधमारी करने का दंभ भर रही थी उस भाजपा की चुनाव के समय ‘गए थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास’ जैसी हालत हो गई थी। हुआ यह कि भाजपा के विधायकों ने क्रॉस-वोटिंग कर कांग्रेस के प्रत्याशी को अपना मत दे दिया। इनमें प्रमुख नाम धौलपुर से विधायक शोभारानी कुशवाह का है जो वसुंधरा राजे की करीबी बताई जाती हैं। शोभारानी ने कथित तौर पर कांग्रेस उम्मीदवार प्रमोद तिवारी के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की जिसके बाद उन्हें पार्टी से निलंबित भी कर दिया। एक ओर भाजपा ने शोभारानी को निकाला तो दूसरी ओर राज्य के सीएम अशोक गहलोत ने कांग्रेस उम्मीदवार प्रमोद तिवारी के पक्ष में क्रॉस वोटिंग के लिए बीजेपी विधायक शोभारानी कुशवाह का भी शुक्रिया अदा किया।
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राजे तो ठहरीं महारानी
यह राजे गुट की बीमारी रही है जब उन्हें कुछ हासिल नहीं होता वो फड़फड़ाकर उड़ने लगते हैं। अब वसुंधरा राजे की महत्वकांक्षाओं की ही बात करें तो उनसे लोभी राजनीतिज्ञ भाजपा में तो शायद ही हो। 2018 में मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में हारने के बाद भाजपा ने तीनों हारे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, वसुंधरा राजे और डॉ रमन सिंह को संगठन में दायित्व देते हुए तीनों को एक साथ “राष्ट्रीय उपाध्यक्ष” बनाया था पर राजे तो ठहरीं महारानी, उन्हें चाहिए तो सीएम की कुर्सी ही थी। राजे ने यह नहीं माना कि जनता के बीच उनकी स्वीकार्यता अब लेश मात्र भी नहीं है बावजूद इसके राजे अपनी जड़ें फैलाने के लिए राज्य के संगठनात्मक ढांचे में व्यवधान डालने लगीं। राजस्थान भाजपा का एक धड़ा इस स्थिति में है कि वो प्रदेश भाजपा इकाई अध्यक्ष सतीश पुनिया के साथ जाएं तो राजे के विरोधी हो जाते हैं।
राजे के इसी “आई-मी और माइसेल्फ” ने राजस्थान भाजपा को उभरने का मौका नहीं दिया, नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस को वोट देने वाली राजे की करीबी विधायक अपना खेल कर गईं और राजे का पार्टी को राज्य में पतन की ओर ले जाना इस घटनाक्रम के बाद तो और स्वीकृत हो गया।
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