जब न्याय देने वाला ही अपने दायित्व को भूल जाए तो उसे उसका दायित्व स्मरण कराना हम सबका परम कर्तव्य बन जाता है! उदयपुर घटना और नूपुर शर्मा मामले पर सुप्रीम कोर्ट के दो न्यायाधीशों ने जो कहा है वो कोई नई बात नहीं है परंतु इस पक्षपाती रवैये के विरुद्ध जनता का आक्रोश अब दिन प्रतिदिन तेज होते जा रहा है और स्वयं देश के न्यायिक प्रतिनिधि भी उनके विचारों से सहमति नहीं जता रहे हैं। इसी बीच दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस पारदीवाला के बयानों को लेकर असहमति जताई है और उसे ‘नीति विरुद्ध’ भी बताया है।
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दरअसल, दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एस एन ढींगरा की एक क्लिप सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो रही है। असल में नूपुर शर्मा मामले पर सुप्रीम कोर्ट के दो न्यायाधीशों की टिप्पणी पर चर्चा करते हुए उनका मानना था कि उनके अनुसार ये बहुत ही अनुचित है और ये निचली अदालतों के लिए एक गलत रीति को बढ़ावा देगा।
जस्टिस एस एन ढींगरा के अनुसार, “मेरे ख्याल से ये टिप्पणी बेहद गैर-जिम्मेदाराना है। उनका कोई अधिकार नहीं है कि वो इस तरह की टिप्पणी करें, जिससे जो व्यक्ति न्याय मांगने आया है उसका पूरा करियर चौपट हो जाए या जो निचली अदालते हैं वो पक्षपाती हो जाएं। उन्होंने याची (नूपुर) को सुना तक नहीं और आरोप लगाकर अपना फैसला सुना दिया। मामले में न सुनवाई हुई, न कोई गवाही, न कोई जांच हुई और न नूपुर को अवसर दिया गया कि वो अपनी सफाई पेश कर सकें। तो इस तरह की टिप्पणी पेश करना न केवल गैर-जिम्मेदाराना है बल्कि गैर कानूनी भी है और अनुचित भी। ऐसी टिप्पणी करने का किसी व्यक्ति को कोई अधिकार नहीं है।” –
सुप्रीम कोर्ट की नूपुर शर्मा पर की गई टिप्पणी पर रिटायर्ड न्यायाधीश एस एन ढींगरा का जवाब एक बार अवश्य सुनना चाहिए।👇
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— 𝐒𝐮𝐝𝐡𝐢𝐫 भारतीय 🇮🇳 (@seriousfunnyguy) July 2, 2022
परंतु जस्टिस ढींगरा इतने पर ही नहीं रुके। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सब समान हैं और बताया कि “स्वयं कोर्ट कानून से ऊपर नहीं है। कानून कहता है कि अगर आप किसी व्यक्ति को दोषी बताना चाहते हैं तो पहले आपको उसके ऊपर चार्ज फ्रेम करना होगा और इसके बाद जांचकर्ता सुबूत पेश करेंगे, फिर बयान लिए जाएंगे, गवाही होगी तब जाकर सभी साक्ष्यों को ध्यान में रखकर अपना फैसला सुनाया जाएगा लेकिन यहां क्या हुआ। यहां तो नूपुर शर्मा अपनी एफआईआर ट्रांसफर कराने गई थी और वहीं कोर्ट ने खुद उनके बयान पर स्वत: संज्ञान लेकर उन्हें सुना दिया। अगर अब सुप्रीम कोर्ट के जज को ये पूछा जाए कि नूपुर शर्मा का बयान कैसे भड़काने वाला है, इस पर वह आकर कोर्ट को बताएं, तो उन्हें पेश होकर ये बात बतानी पड़ेगी।”
जस्टिस सूर्यकांत एवं जस्टिस पारदीवाला के टिप्पणियों को सुप्रीम कोर्ट के लिए हानिकारक बताते हुए जस्टिस ढींगरा ने ये भी बताया कि “जिस प्रकार नूपुर शर्मा को ये कहा गया कि उनके सिर पर ताकत का नशा था क्योंकि उनकी पार्टी सत्ता में थी। ये चीज उन लोगों पर भी लागू होती है। कोर्ट किसी को मौखिक तौर पर दोषी नहीं बता सकता। सड़क पर खड़ा व्यक्ति अगर मौखिक रूप से कुछ बोले तो लोग उसे गंभीरता से नहीं लेते लेकिन अगर सुप्रीम कोर्ट बोले तो इसका महत्व होता है। ऐसी मौखिक टिप्पणी देकर लोगों को मौका दे दिया है कि वो उनकी आलोचना करें। सुप्रीम कोर्ट अपने आपको इस स्तर पर ले गया कि मजिस्ट्रेट भी इस तरह का काम नहीं करता। वो भी मौखिक रूप से नहीं बोलते। इन टिप्पणियों से सर्वोच्च न्यायालय की छवि को धक्का लगता है।”
अब ऐसे समय में जब न्यायपालिका की छवि पर सुप्रीम कोर्ट के दो न्यायाधीशों की टिप्पणियों से धक्का लगा है, उस समय में पूर्व न्यायाधीश जस्टिस एस एन ढींगरा के विचार न केवल स्वागत योग्य हैं अपितु इस बात को भी स्पष्ट करते हैं कि न्यायपालिका में सुधार का दायित्व केवल सरकार का ही नहीं है, इसके लिए हर भारतीय को आगे आना पड़ेगा।