इस समय विश्वभर के लोग बढ़ते तापमान और ग्लोबल वार्मिंग से परेशान हैं। ऐसे में कई देशों के नेताओं ने फैसला किया कि वे ऊर्जा के उन स्रोतों पर काम करेंगे जिनका उपयोग कर मनुष्य अपनी आवश्यकताओं को भी पूरा कर ले और पर्यावरण को भी नुक्सान न पहुंचे। इसी के साथ कम कार्बन ऊर्जा के स्रोतों की तलाश शुरू हुई जो वायु, जल, और सौर ऊर्जा पर आकर ख़त्म हुई। ये सभी ऊर्जा के ऐसे स्रोत थे जो न कभी ख़त्म होने वाले थे और न ही पृथ्वी का प्रदूषण और तापमान बढ़ाने में इनकी कोई भूमिका होती। लेकिन इस चर्चा में एक ऐसा भी ऊर्जा स्रोत है जिसपर कभी कोई खुलकर बात नहीं करता- परमाणु ऊर्जा।
ऐसा समय जब भारत सरकार बढ़ती ऊर्जा मांगों को पूरा करने के लिए अधिक नवीकरणीय ऊर्जा का उत्पादन करने के प्रयास कर रही है ऐसे में कोई भी परमाणु ऊर्जा की बात नहीं कर रहा है और इसका कारण है कि कई कार्यकर्ताओं और पर्यावरणविदों का मानना है कि परमाणु ऊर्जा पर्यावरण के लिए खतरनाक है। लेकिन क्या हो अगर यही परमाणु ऊर्जा स्वयं प्रकृति में मौजूद हो? क्या तब भी इसे खतरनाक मानकर इससे होने वाले लाभ को नजरअंदाज कर दिया जाएगा? इस पृथ्वी पर एक ऐसा स्थान है जहाँ अरबों साल पुरानी चट्टानों में प्राकृतिक रूप से परमाणु रिएक्शन हो रहे थे। यह जगह है, गैबॉन। 1950 के दशक में मनुष्यों द्वारा पहला वाणिज्यिक परमाणु ऊर्जा संयंत्र विकसित करने से पहले, पश्चिमी अफ्रीका के गैबॉन में 17 प्राकृतिक परमाणु विखंडन रिएक्टर ( natural nuclear fission reactors) काम कर रहे थे। हालाँकि इन प्राकृतिक परमाणु रिएक्टरों द्वारा उत्पादित ऊर्जा लगभग 100 किलोवाट था, जो केवल 1,000 लाइट बल्बों को बिजली देने में समर्थ था।
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भले ही यह इंसानों द्वारा बनाये गए परमाणु ऊर्जा संयंत्र से कम उत्पादन करता हो लेकिन बावजूद इसके गैबॉन परमाणु रिएक्टर असाधारण हैं क्योंकि वे दो अरब साल जैसी लम्बी अवधि से काम कर रहे हैं और आज भी स्थिर हैं। इसके अलावा, गैबॉन रिएक्टरों में परमाणु विखंडन के radioactive products को दो अरब वर्षों से सुरक्षित रूप से समाहित किया गया है, जो यह साबित करता है कि परमाणु कचरे का दीर्घकालिक भूगर्भिक भंडारण ( geologic storage) संभव है।
कैसे हुई ओकलो रिएक्टर की खोज?
उस समय गैबॉन एक फ्रांसीसी कॉलोनी था, जब फ्रांसीसी परमाणु ऊर्जा आयोग ने 1956 में इस क्षेत्र में यूरेनियम की खोज की। फ्रांस ने तुरंत यहाँ खदानें खोलीं और 40 वर्षों तक गैबॉन में यूरेनियम का खनन किया। इस यूरेनियम का उपयोग फ्रांस और यूरोप के अधिकांश हिस्सों में बिजली उत्पादन के लिए किया जाता था।
परमाणु रिएक्टर में, यूरेनियम के परमाणुओं को अलग करने के लिए दबाव बनाया जाता है। जैसे ही वे परमाणु विभाजित होते हैं, तो न्यूट्रॉन का उत्सर्जन होता है। जब उत्सर्जित न्यूट्रॉन एक दूसरे से टकराते हैं या दूसरे यूरेनियम परमाणु से टकराते हैं तो एक श्रृंखला प्रतिक्रिया (Chain reaction ) शुरू करते हैं। इस चेन रिएक्शन से निकलने वाली ऊर्जा गर्मी पैदा करती है जिसे आगे बिजली के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
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क्या परमाणु ऊर्जा वास्तव में खतरनाक है?
चेरनोबिल और फुकुशिमा दाइची ऐसी आपदाएं हैं जिन्हें कोई भी दोबारा अनुभव नहीं करना चाहता। लेकिन यह भी समझना होगा कि दुर्घटनाओं का कारण मानवीय त्रुटि या प्राकृतिक आपदा थी। मनुष्य अपनी खामियां ठीक कर सकता है लेकिन प्राकृतिक आपदा तो कहीं भी किसी के भी साथ घट सकती है।
परमाणु रिएक्टर में परमाणु प्रतिक्रिया नियंत्रित नहीं होने पर हवा और पानी के व्यापक प्रदूषण का कारण बन सकती है। परमाणु रिएक्टर अपने संचालन के दौरान वायु प्रदूषण या कार्बन डाइऑक्साइड का उत्पादन नहीं करते हैं। लेकिन यह रेडियोधर्मी कचरे का उत्पादन करता है जिसे सुरक्षित रूप से संग्रहीत किया जाना चाहिए ताकि यह पर्यावरण को प्रदूषित न करे। हालांकि कम मात्रा में इसकी रेडिएशन हानिकारक नहीं है। हालाँकि यह याद रखना होगा कि परमाणु ऊर्जा अक्षय ऊर्जा का स्रोत नहीं है। यूरेनियम सीमित आपूर्ति में है। भले ही यह जीवाश्म ईंधन नहीं है, फिर भी यूरेनियम के खत्म होने का जोखिम अभी भी मौजूद है।
क्यों परमाणु बेहतर हैं?
परमाणु ऊर्जा जिसे आज भी लोग इस्तेमाल नहीं करना चाह रहे हैं उसके पीछे का सबसे बड़ा कारण है उनका डर। साथ ही लोगो का झुकाव हरित और अक्षय ऊर्जा के स्रोतों- जल, वायु और सूर्य पर इतना अधिक है कि वे यह समझ पाने में असमर्थ हैं कि ये तीनों संसाधन प्राकृतिक हैं और हर स्थान पर उतनी मात्रा में मौजूद नहीं जिससे की उनका उपयोग ऊर्जा/ बिजली पैदा करने के लिए किया जा सके। ऐसे में परमाणु ऊर्जा देश के लिए एक बेहतर विकल्प है।
इसके अलावा, अक्षय ऊर्जा का उपयोग भी परमाणु की तुलना में बहुत अधिक जगह लेता है। संयुक्त राज्य सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, पवन फार्म परमाणु संयंत्रों की तुलना में 360 गुना अधिक जगह लेते हैं जबकि सौर संयंत्र 75 गुना अधिक जगह लेते हैं। इसके अलावा, हाइड्रो- इलेक्ट्रिसिटी पाने के लिए या विंड- टूरबीनेस काम में लाने के दौरान बड़ी मात्रा में पर्यावरण और जीवों- पक्षियों आदि को नुक्सान पहुँचता है जिस कारण से अक्षय ऊर्जा के ये स्रोत उतने भी पर्यावरण के अनुकूल नहीं होते जितना कि हमें समझाया या पढ़ाया जाता था। ऐसे में परमाणु ऊर्जा कहीं बेहतर है और यदि इसकी रेडिएशन्स को नियंत्रण में रखा जाए तो इसके हानिकारक होने का कोई सवाल ही नहीं उठता और गैबॉन उसी के लिए एक उदाहरण है।
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