फ्रीबी संस्कृति कह लीजिए या रेवड़ी कल्चर देश की कुछ राजनीतिक पार्टियों ने इसे ही सत्ता हासिल करने का अस्त्र बना लिया है। मुफ्त में चीजे बांटों और जनता के वोट पाओ, राजनीतिक पार्टियों का यही एजेंडा बनता चला जा रहा है। इसके माध्यम से वो जनता के वोट तो हासिल कर लेते है, परंतु देखा जाए तो यह देश की आर्थिक स्थिति के लिए बेहद ही खतरनाक होता है। रेवड़ी कल्चर किसी भी देश की आर्थिक स्थिति को बर्बाद करके रख सकता है। श्रीलंका इसका सबसे नवीनतम और बड़ा उदाहरण हमें देखने को मिलता है। बावजूद इसके हमारे देश के कुछ नेता इन सबसे सबक लेने की जगह देश में रेवड़ी कल्चर को बढ़ावा दे रहे है। हालांकि अब लगता है कि सुप्रीम कोर्ट इस फ्रीबी राजनीति को हमेशा के लिए नष्ट करने के मूड में है। कोर्ट देश में इस रेवड़ी कल्चर को खत्म करने के लिए गंभीर नजर आ रहा है।
मुफ्तखोरी की आदत बेहद ही बुरी है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट इस पर लगाम लगाने की तैयारी में है। शीर्ष न्यायालय द्वारा फ्रीबी संस्कृति पर नकेल कसने के लिए चुनाव आयोग और केंद्र सरकार से इस पर सुझाव देने को कहा गया है। साथ ही संबंधित संस्थाओं से भी इसको लेकर राय मांगी गई। चीफ जस्टिस एनवी रमन्ना के नेतृत्व वाली बेंच ने कहा कि “नीति आयोग, वित्त कमीशन, सत्ताधारी पार्टी, विपक्षी पार्टियां, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया समेत अन्य संस्थान इस मामले पर अपने सुझाव दें कि आखिर देश में जारी इस रेवड़ी कल्चर को कैसे रोका जाए।”
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‘मुफ्त की राजनीति’ पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि “चुनाव प्रचार के दौरान ‘मुफ्त रेवड़ी’ बांटने के वादे एक गंभीर आर्थिक समस्या है। इसे रोकने के लिए अच्छे सुझाव की आवश्यकता है, जिसके लिए इसे समर्थन करने वाले और विरोध करने वाले, दोनों ही पक्षों के सुझाव की जरूरत है।” इसके अलावा उच्चतम न्यायालय ने यह भी संकेत दिए कि “इस समस्या से निपटने के लिए एक विशेषज्ञ पैनल का गठन करने की भी बात कही है।” अदालत ने कहा कि “हम सभी पक्षों को निर्देश देते हैं कि वे इस तरह के निकाय की संरचना के बारे में सुझाव दें। जिससे हम इसके गठन के लिए एक आदेश पारित कर सकें।”
वहीं इस दौरान केंद्र ने भी राजनीतिक पार्टियों के द्वारा मुफ्त रेवड़ियां बांटने पर रोक को लेकर सुप्रीम कोर्ट का समर्थन किया। सरकार ने कोर्ट में कहा कि “ऐसी घोषणाएं से अर्थव्यवस्था पर बोझ पड़ता है। अर्थव्यवस्था के लिए यह विनाशकारी होती है।” सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता अदालत में केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए उन्होंने कहा कि “इन लोकलुभाव घोषणाएं के जरिए वोटर्स के फैसले लेने की क्षमता को विकृत किया जाता है। मतदाताओं को यह मालूम होना चाहिए कि इस तरह की मुफ्त घोषणाओं से उन पर क्या प्रभाव पड़ेगा। यह हमें आर्थिक आपदा की ओर लेकर जाता है। चुनाव आयोग को इस पर विचार करने की आवश्यकता है।”
देखा जाए तो केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार भी रेवड़ी कल्चर के विरुद्ध में खड़ी नजर आती है। बीते दिनों बुदेलखंड एक्सप्रेस-वे का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रेवड़ी कल्चर का जिक्र किया था और उन्होंने इसकी तीखी आलोचना करते हुए देश के विकास के लिए घातक बताया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की जनता से अनुरोध किया था कि “सब मिलकर इस ‘फ्री पॉलिटिक्स’ का विरोध करें और देश की राजनीति से इसे उखाड़ फेकें।” जिस तरह सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार दोनों ही रेवड़ी कल्चर को लेकर चिंतित है। इस समस्या को गंभीरता से ले रहे है, उससे तो ऐसा ही प्रतीत होता है कि देश में फ्रीबी राजनीति का अंत अब दूर नहीं। परंतु इससे उन नेताओं को समस्या होने लगी है। जो मुफ्तखोरी के जरिए ही अपनी राजनीति आगे बढ़ाने का काम कर रहे थे।
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फ्रीबी राजनीति के अंत होने से घबराए केजरीवाल
यही कारण है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी इससे मिर्ची लग गई है। केंद्र ने फ्रीबी पॉलिटिक्स को आर्थिक तबाही क्या बताया, केजरीवाल बिलबिला गए और उन्होंने ट्विटर के माध्यम से इस पर अपनी कुंठा प्रदर्शित की। “केजरीवाल ने चुनाव से पहले घोषणाओं पर रोक, क्यों? घोषणाओं से आर्थिक संकट कैसे आएगा? इनका निशाना कही और है। घोषणाओं पर रोक नहीं होनी चाहिए। सरकारी बजट के एक हिस्से से अधिक फ्री नहीं देने पर विचार किया जा सकता है।”
1. चुनाव से पहले घोषणाओं पर रोक? क्यों? घोषणाओं से आर्थिक संकट कैसे आयेगा? इनका निशाना कही और है
2. घोषणाओं पर रोक नहीं होनी चाहिए। सरकारी बजट के एक हिस्से से ज़्यादा फ़्री नहीं देने पर विचार हो सकता है
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) August 3, 2022
मुफ्तखोरी पर लगाम लगने की चर्चा से केजरीवाल को सबसे अधिक तकलीफ होना तो लाजिमी है क्योंकि वहीं सत्ता पर काबिज होने के लिए इसे एक अस्त्र की तरह सबसे अधिक इस्तेमाल कर रहे है। अरविंद केजरीवाल ने पहले दिल्ली की जनता को फ्री-फ्री का लालच दिया और यहां इसके माध्यम से सत्ता हथियाने में कामयाब हुए। उन्होंने जब अपने इस मॉडल को दिल्ली में सफल होते देखा तो वे फ्री शिगूफा लेकर पंजाब पहुंच गए।
पंजाब में भी उनका यह मॉडल काम कर गया। इसके बाद अब अन्य राज्य जहां चुनाव नजदीक है उन जगहों पर केजरीवाल के मुफ्तखोरी से जुड़े वादों का सिलसिला शुरू हो चुका है। ऐसे में अगर देश में चुनाव के दौरान यूं मुफ्त बांटने की योजनाओं पर रोक लग जाएगी, तो इससे केजरीवाल का राजनीतिक अस्त्र ही छिन जाएगा। फिर केजरीवाल आखिर किन मुद्दों को लेकर राजनीति करेंगे और कैसे वोट पाने के लिए जनता को लुभा पाने में कामयाब होंगे। यही कारण है कि केजरीवाल फ्रीबी संस्कृति पर लगाम कसने से चिंतित हो उठे है और उनकी तकलीफ स्पष्ट तौर पर नजर आ रही है।
केजरीवाल जैसे नेता जितना भी इसका विरोध क्यों ना कर लें। परंतु चुनावी रेवड़ियों की संस्कृति को खत्म करना आज के समय की सबसे बड़ी आवश्यकता बनती जा रही है। हालांकि जिस तरह से देखने को मिल रहा है, उससे तो ऐसा ही लगता है कि अब कोर्ट और सरकार मिलकर इस संस्कृति को खत्म करने के लिए बड़ी भूमिका निभाने वाली है।
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