जब बीज में ही मिलावट हो तो नतीजा भी तो मिश्रित या मिलावट से भरपूर आएगा। अब जिस पार्टी की उत्पत्ति ही राष्ट्र से नहीं हुई हो बल्कि ब्रांच की भांति अन्य देशों से प्रेरित होकर एक शाखा भारत में खोल दी गई हो, उस पार्टी से राष्ट्रहित की अपेक्षा कैसे की जा सकती है। जिस पार्टी का विचार ही लोकतांत्रिक पद्धति को सिरे से ख़ारिज करना हो, ऐसी कम्युनिस्ट पार्टियों से हर घर तिरंगा का समर्थन करने की उम्मीद करना ठीक भैंस के आगे बीन बजाने जैसा है।
दरअसल, देशभर में आज़ादी का अमृत महोत्सव और स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य पर हर घर तिरंगा अभियान दलगत राजनीति से ऊपर उठकर स्वीकृति के अंतिम पायदान पर है पर देश में अब भी कुछ गैर भारतीय पार्टियां अपनी निकृष्टता पर उतारू हैं। इसमें सबसे बडा नाम है उस सीपीआई अर्थात् कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया का जो हर घर तिरंगा अभियान को न मानने का मन पहले ही बना चुकी है। संघ तिरंगे का अपमान करता है, भगवा के अतिरिक्त अन्य कोई भी झंडा नहीं फहराता है यह सब ढकोसला इन वामपंथियों का ड्रामा था ताकि तिरंगा न लगाना पड़े।
वहीं, अब संघ क्या उसके सरसंघचालक अर्थात् मोहन भागवत समेत सभी संघ से जुडे प्रकल्पों ने हर घर तिरंगा का अनुसरण कर सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर तिरंगा अपडेट कर लिया तब भी इन कम्युनिस्टों के कान में जूं नहीं रेंगी। रेंगेगी भी कैसे ? यह सीपीआई जैसी कम्युनिस्ट पार्टियां उस संघ से प्रतिस्पर्धा करने चली हैं जो 1925 से “देश हमें देता है सबकुछ, हम भी तो देना सीखें” वाले मंत्र के साथ देश सेवा में लगा हुआ है।
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ऐसा नहीं है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अगर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर तिरंगा लगा लिया है तो देश पर कोई उपकार किया है। यह बात इसलिए कही जा रही है क्योंकि सीपीआई जैसे राजनीतिक संगठनों ने संघ जैसे स्वयंसेवी और गैर राजनीतिक संगठन पर आक्षेप लगाए कि संघ स्वयं तिरंगे को नहीं मानता वो तो सिर्फ भगवा ध्वज को ही मानता है। ऐसे आक्षेपों का उत्तर है यह सब जो अब संघ में हो रहा है। इन सभी लिबरल और कम्युनिस्टों ने पीएम मोदी पर प्रहार करते हुए हाल ही में कहा था कि पीएम मोदी अगर कर पायें तो संघ में तिरंगे को स्वीकृति दिलाकर दिखायें। मात्र इसलिए कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तमाम सोशल मीडिया अकांउट पर भगवा ध्वज लगा हुआ था, इसलिए हमेशा की तरह कम्युनिस्टों की सुलगी हुई थी। ऐसे में संघ ने तो हर घर तिरंगा को प्रचारित किया पर यह कम्युनिस्ट पार्टियां ढाक के तीन पात उसी खुर्पी वाले लोगो पर सिमटी हुई है। न ही वामपंथियों ने अपने हर घर तिरंगा को अपनाया और न ही वो कभी अपनाएंगे।
ऐसा इसलिए है क्योंकि यह कम्युनिस्ट पार्टियां कभी देश की थी ही नहीं। कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया के कारनामों से साफ-साफ प्रतीत होता है कि यह पार्टी देश की है ही नहीं। ये तो रूस से उत्पत्ति होने के बाद अन्य देशों में प्राइवेट कंपनियों की तरह अपनी शाखायें खोलते गए। भारत में आकर इन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया नाम रख लिया, अन्य किसी देश में जाने पर उस देश का नाम रख लिया, ऐसे में जो पार्टी भारत की है ही नहीं उसकी ओर से देशविरोधी बातें आना कोई नई बात नहीं है।
भारत चूंकि एक लोकतांत्रिक देश है तो इसलिए 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान भी इसी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया ने चीन का साथ इसलिए दिया था क्योंकि वहां का शासन कम्युनिस्ट विचार के हाथों में था। जबकि इस कम्युनिस्ट और वहां के कम्युनिस्ट में कोई सरोकार नहीं था पर बीएस कम्युनिस्ट लिखे होने के चक्कर में उस समय कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया ने चीन का साथ दिया था। इन कम्युनिस्टों का मार्क्स, लेनिनवाद, द्वंद्ववाद और साम्यवाद प्रेम इतना आकंठ था कि यह आज भी रूस को ही अपनी पितृभूमि मानते हैं जबकि आज के समय में रूस में कम्युनिस्ट तंत्र का लेश मात्र भी अंश नहीं है।
यह सभी ब्रांच बनी हुई हैं और इसके ही माध्यम से भारत में कम्युनिस्ट अपनी सोच को ऐसे प्रसारित करना चाहते हैं कि न ही तिरंगे को मानेंगे और न ही देश को एकसूत्र में पिरोने का प्रयास करेंगे। फिर चाहे कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया- मार्क्सिस्ट (CPIM) का ट्विटर हैंडल हो, जहां अभी तक तिरंगा नहीं लगा है या इसी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया का सस्ता विकल्प बन चुकी आम आदमी पार्टी हो, जिसके न ही आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर तिरंगा लगा है और न ही उसकी राज्य इकाइयों के आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर तिरंगा लगा है। ऐसे में यह चरितार्थ हो गया है कि कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया अपनी एकमात्र पितृभूमि के प्रति अपना कृतज्ञभाव कभी नहीं त्यागेगी और साथ ही आम आदमी पार्टी जैसी पार्टियों को भी अपना चेला बना लेगी जो आज हर घर तिरंगा अभियान के विरोध में परोक्ष रूप से उतर आई हैं।
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