2 सितंबर 2022 – यह दिन भारतीय इतिहास के स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा। ऐसा इसलिए क्योंकि इस दिन भारत का सर्वप्रथम, स्वनिर्मित नौसैनिक एयरक्राफ्ट कैरियर ‘INS विक्रांत’ को भारत की सेवा में सौंप दिया जाएगा। इस निर्णय से न केवल हमारे देश की नौसेना पुनः समृद्ध होगी अपितु जो शौर्य कभी एक एयरक्राफ्ट कैरियर देश के लिए प्राप्त करता था वही शौर्य इस युद्धपोत के माध्यम से पुनः प्राप्त होगा जिसका नाम भी संयोगवश INS विक्रांत ही था। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि भारत के शौर्य, INS विक्रांत का पुनर्जन्म हुआ है और वह पुनः मां भारती की सेवा हेतु तैयार है।
परंतु यह INS विक्रांत है क्या और इसमें ऐसी क्या विशेषता थी जिसके कारण यह भारतीय नौसेना के लिए गौरव का विषय रहा है?
1940 के दशक पर ध्यान देना होगा
ये बात है 1940 के दशक की जब विश्व युद्ध अपने चरम पर था। तब रॉयल नेवी ने ऐसे एयरक्राफ्ट कैरियर बनाने पर ध्यान दिया जो हल्के हों पर बहुपयोगी हों और जर्मन एवं जापानी सेनाओं से निपटने हेतु सक्षम हों। इसी दिशा में तैयार हुए मैजेस्टिक क्लास के कैरियर जो 16 लाइट एयरक्राफ्ट कैरियर में से चिह्नित किए गए थे, इन्हीं में से एक थी HMS Hercules जो Vickers Armstrong एवं Harland and Wolff जैसे जहाज निर्माताओं द्वारा तैयार किए गए थे। परंतु इससे पूर्व कि इन पर मूलभूत निर्माण प्रारंभ होता था, 1945 में विश्व युद्ध समाप्त हो चुका था और ये परियोजना ठंडे बस्ते में चली गयी।
HMS Hercules यूं ही ठंडे बस्ते में था परंतु इसी बीच यूके को स्मरण आया कि उनके ‘अधीन’ देश तो अब स्वतंत्र भी हो रहे हैं। ऐसे में ये आधे अधूरे कैरियर इन्हीं ‘राष्ट्रमंडल’ देशों में बंटने प्रारंभ हुए, और इन्हीं में से एक था भारत।
ऐसे में भारत ने HMS Hercules के आधे अधूरे एयरक्राफ्ट कैरियर को खरीदते हुए इसे पूरा करने की जिम्मेदारी उठायी और 1961 में इस जहाज़ को भारत की सेवा में सौंपा गया। यही था हमारा INS विक्रांत जो 700 फीट लंबा था और जिसका डिसप्लेसमेंट डीप लोड पर लगभग 20000 टन एवं आम लोड पर लगभग 16000 टन था। ये अधिकतम 25 नॉट की शक्ति से संचालित होता था यानी नौसैनिक परिभाषा में इसकी अधिकतम स्पीड लगभग 46 किलोमीटर प्रति घंटा था।
इस युद्धपोत को प्रारंभ से ही एक्शन में लगाया, जब पुर्तगाल के विरुद्ध गोवा की स्वतंत्रता के अंतर्गत, 1961 में ऑपरेशन विजय में इसका उपयोग हुआ था। परंतु INS विक्रांत की कोई सक्रिय भूमिका नहीं थी, उसने केवल गोवा की तटीय पैट्रोलिंग की थी। 1965 में INS विक्रांत ड्राई डॉक में रही, जिसके कारण उसने कोई सक्रिय भूमिका नहीं निभायी।
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परंतु 1971 में सब कुछ बदल गया। INS विक्रांत के प्रभुत्व से ही पाकिस्तानी सेना इतना थर-थर कांपती थी कि इसे डुबाने के लिए उन्होंने अपना समुद्री खंजर उतारा। ये समुद्री खंजर कोई और नहीं, विश्व युद्ध द्वितीय में अमेरिका द्वारा प्रयोग में लायी गयी पनडुब्बी USS Diablo थी, जो अब पाकिस्तानी नौसेना की शान, PNS Ghazi बन चुकी थी और जिसने 1965 के युद्ध में द्वारका क्षेत्र पर भी कथित तौर पर हमला किया।
पीएनएस ग़ाज़ी को अमेरिकी नौसेना ने पाकिस्तान को उधार दिया था, उसका मूल नाम USS Diablo था। पीएनएस ग़ाज़ी विशाखापत्तनम के करीब आ चुकी थी। एडमिरल कृष्णन ने युद्धपोत INS विक्रांत को अंडमान आईलैंड्स की ओर ले जाने का आदेश दिया। उन्होंने INS विक्रांत का कॉल साइन भी बदल दिया। INS राजपूत के लिए इस्तेमाल होने वाला कॉल साइन INS विक्रांत के लिए तय कर दिया गया। INS राजपूत एक पुराना युद्धपोत था जो बेस पर था। इसी प्रकरण में कथित रूप से एक पनडुब्बी, INS करंज का भी उपयोग हुआ, और 2017 की चर्चित बहुभाषीय ‘द ग़ाज़ी अटैक’ इसी प्रकरण पर आधारित है।
इधर कृष्णन ने INS राजपूत के कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टिनेंट कमांडर इंदर सिंह को बता दिया था कि वह जब हार्बर से निकलेंगे तो हो सकता है कि उनके आसपास दुश्मन की सबमरीन मिले। कृष्णन अपनी किताब ‘नो वे बट सरेंडर- ऐन एकाउंट ऑफ इंडो-पाकिस्तान वॉर इन द बे ऑफ बंगाल 1971’ में लिखते हैं, ‘चकमा देने की हमारी रणनीति सफल रही। डूब चुके ग़ाज़ी से हमने एक सीक्रेट सिग्नल रिकवर किया था। उसमें कराची के सबमरींस कमांडर ने 25 नवंबर को ग़ाज़ी को सिग्नल भेजा था कि इंटेलिजेंस से संकेत मिल रहा है कि वह युद्धपोत पोर्ट में ही है।’ उस सिग्नल में ग़ाज़ी से कहा गया था कि उसे ‘पूरे साजोसामान के साथ विशाखापत्तनम की ओर बढ़ना चाहिए।’ परंतु उन्हें क्या पता था कि भारतीय नौसेना उनके लिए पूरी तरह तैयार खड़ी थी और PNS ग़ाज़ी के लिए बंगाल की खाड़ी में उसका कब्र सारी सुविधाओं सहित उनकी प्रतीक्षा कर रही थी।
3 से 4 दिसंबर 1971 की रात को क्या हुआ, यह आज भी एक रहस्य है परंतु उसी के पश्चात भारत पाकिस्तान युद्ध आधिकारिक तौर पर प्रारंभ हुआ, क्योंकि उसके पश्चात कुछ भी पहले जैसा नहीं रहा। आज भी पाकिस्तान ग़ाज़ी की पराजय को खुलेआम स्वीकारता नहीं है और आज भी वह 1971 की पराजय की भांति इस पराजय से मुंह मोड़ता है।
INS विक्रांत ने जब त्राहिमाम मचाया
तद्पश्चात INS विक्रांत ने खुलना, चटगाँव इत्यादि में काफी त्राहिमाम मचाया, जो उस समय पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा थे। अपनी सेवा के लिए INS विक्रांत के क्रू को 2 महावीर चक्र और 12 वीर चक्र से उस युद्ध में सम्मानित किया गया। फिर कई वर्षों की सेवा के पश्चात 1997 में INS विक्रांत सेवानिर्वृत्त हुआ। कुछ समय के लिए इसे एक संग्रहालय पोत के रूप में संरक्षित करने का प्रयास किया गया परंतु वह अधूरा ही रहा और अंतत: 2014 में इसे स्क्रैप कर दिया गया।
तो नये और पुराने INS विक्रांत में अंतर क्या है? अंतर है और बहुत स्पष्ट अंतर है। मूल जहाज़ की तुलना में भारत से पहले सिर्फ पांच देशों ने 40 हजार टन से अधिक वजन वाला एयरक्राफ्ट कैरियर बनाया है। नये INS विक्रांत का वजन 45 हजार टन है।
इस पोत का डिजाइन नौसेना के वारशिप डिजाइन ब्यूरो ने तैयार किया है। वहीं निर्माण सार्वजनिक क्षेत्र की शिपयार्ड कोचिन शिपयार्ड लिमिटेड ने किया है। पिछले साल 21 अगस्त से अब तक समुद्र में परीक्षण के कई चरणों को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है। पोत को नौसेना की सेवा में शामिल किए जाने के बाद इस पर विमानों को उतारने का परीक्षण किया जाएगा।
इसके अतिरिक्त नए INS विक्रांत में ये विशेषताएँ हैं–
- इसका मूल्य है 20 हजार करोड़ रुपये
- 18 राज्यों में बने हैं इसके उपकरण
- ये पोत 262 मीटर लंबा और 62 मीटर चौड़ा है
- इसकी अधिकतम गति 28 नॉट है
- विक्रांत में करीब 2200 कंपार्टमेंट हैं
- पोत से एक साथ 30 विमान संचालित हो सकते हैं
- चालक दल 1,600 सदस्यों के रहने के लिए पर्याप्त है
- मिग-29के लड़ाकू विमानों और केए-31 हेलिकॉप्टरों का एक बेड़ा तैनात होगा
अब कल्पना कीजिए, ऐसा युद्धपोत यदि सक्रिय युद्ध में भारत की सेवा में उतरता है तो सामने वाले शत्रु का क्या हाल होगा? पाकिस्तान तो दूर की बात है, चीन एवं अन्य औपनिवेशिक मानसिकता से ग्रसित देश भी अब भारत से भिड़ने से पूर्व हजार बार सोचेंगे। कभी भारतीय नौसेना का शौर्य रहे INS विक्रांत का पुनर्जन्म हुआ है और वह स्वदेशी रूप में गर्व से वापसी करने को तैयार है।
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