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अब संपूर्ण तौर पर भारत के कब्जे में है ईरान का चाबहार बंदरगाह

चीन वर्षों से लार टपका रहा था, भारत ने बाजी पलट दी!

Ruchi Mehra द्वारा Ruchi Mehra
11 September 2022
in मत
modi
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वर्तमान समय में चीन एक ऐसा देश है, जो पूरी दुनिया के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन रहा है। ड्रैगन अपनी चालक रणनीतियों के माध्यम से दुनिया पर राज करने के सपने देखता है। अमेरिका से लेकर भारत तक चीन अपनी कुटिल चालों के माध्यम से सबसे दुश्मनी मोल लेता जा रहा है। हालांकि मौजूदा समय में भारत ही वो एकमात्र देश के रूप में उभरा है जिसके आगे ड्रैगन की एक नहीं चल पा रही है। भारत चालक और मक्कार चीन की हर रणनीति का करारा जवाब देने में सक्षम हैं। चीन को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए भारत को शीघ्र ही एक और बड़ा हथियार मिलने जा रहा है।

भारत का मजबूत हथियार है चाबहार बंदरगाह

भारत के लिए हथियार है ईरान का चाबहार बंदरगाह, जिस पर अब बहुत जल्द ही भारत का पूर्ण नियंत्रण होने जा रहा है। दरअसल, भारत और ईरान के बीच चाबहार बंदरगाह को लेकर समझौता अपने अंतिम चरण पर है। नवीनतम जानकारी के अनुसार भारत और ईरान रणनीतिक चाबहार पोर्ट के संचालन के लिए एक दीर्घकालिक समझौते के बेहद ही करीब है। दोनों देशों के बीच यह समझौता मध्यस्थता से जुड़े मामले पर अटका है जिसके जल्द सुलझने की संभावना है।

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भारत ईरान के बीच दस वर्षों के लिए यह एक दीर्घकालिक समझौता होगा और उसके बाद इसका स्वतः नवीनीकरण हो जाएगा। यह उस प्राथमिक समझौते का स्थान लेगा जो चाबहार पोर्ट के शहीद बेहेश्ती टर्मिनल पर भारत के संचालन के लिए किया गया था और वार्षिक आधार पर इसका नवीनीकरण किया जा रहा था।

भारत ईरान के बीच चाबहार बंदरगाह को लेकर समझौता फाइनल होने की खबर ऐसे वक्त पर आ रही है, जब चालाक ड्रैगन की नजरें उस पर पड़ने लगी हैं।  चीन ईरान के बंदरगाहों और तटीय संसाधनों पर निवेश करने में रुचि दिखा रहा है और चीन की हरकतों से दुनिया वाकिफ है ही। वो कैसे निवेश की आड़ में कई देशों को अपने नियंत्रण में कर लेता है। हालांकि दूसरी तरफ ईरानी पक्ष भारत से शहीद बेहेश्ती टर्मिनल पर विकास कार्यों को बढ़ावा देने के लिए कह रहा है। जान लें कि इस टर्मिनल का संचालन भारत सरकार के स्वामित्व वाली इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (IPGL) करती है।

और पढ़ें- लद्दाख: चालबाज चीन की चाल से बचे भारत, सुरक्षा में कटौती हो सकती है घातक

अभी पिछले ही महीने भारत के जहाजरानी मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने ईरान की यात्रा की थी जिसके बाद इस समझौते की रूपरेखा तैयार हुई। इस पूरे मामले के जानकारों के अनुसार भारत ईरान के बीच दीर्घकालिक समझौते को लेकर मतभेद केवल मध्यस्थता के अधिकार क्षेत्र से जुड़ा है। दोनों पक्ष इस मामले के शीघ्र समाधान को लेकर आशान्वित हैं, क्योंकि कानूनी और तकनीकी विशेषज्ञ इस पर काम कर रहे हैं।

दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्ष 2016 में जब ईरान की यात्रा पर गए थे, उस दौरान बंदरगाह व संबंधित इन्फ्रास्ट्रक्चर को विकसित करने हेतु 50 करोड़ डॉलर निवेश के एक समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे। भारत तब से ही ईरान की धरती पर इस पोर्ट का निर्माण करता आ रहा है। भारत के लिए यह चाबहार बंदरगाह कई मायनों में काफी खास है। यह कई देशों तक भारत की पहुंच को आसान बना देगा। भारत का मकसद इस बंदरगाह के माध्यम से कई देशों के साथ अपना व्यापार क्षमता को बढ़ाना है। विशेषकर इस बंदरगाह के जरिए भारत के लिए मध्य एशिया से जुड़ने का सीधा रास्ता बन जाता है। साथ ही अफगानिस्तान और रूस से भारत का जुड़ाव और मजबूत हो जाएगा। पाकिस्‍तान से गुजरे बिना भारत चाबहार के जरिए सीधा अफगानिस्‍तान तक अपनी पहुंच बना सकता है।

और पढ़ें- रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की मंगोलिया यात्रा ने चीन को अंदर तक झंकझोर दिया है

जब भारत ने चीन की रणनीति को विफल कर दिया

इसके अतिरिक्त सामरिक रूप से देखें तो यह चाबहार पोर्ट भारत के लिए काफी उपयोगी है। चीन किस तरह से हिंद महासागर में अपनी दखलअंदाजी तेजी से बढ़ाने के प्रयासों में जुटा है वो किसी से छिपा नहीं है। बीते दिनों श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर अपना जहाज भेजकर भारत की जासूसी करने के प्रयास किए। वो बात अलग है कि भारत ने ड्रैगन की रणनीति को सफल नहीं होने दिया और उसे मुंहतोड़ जवाब दिया।

पाकिस्तान के  ग्वादर बंदरगाह को चीन द्वारा बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट (BRI) के तहत बनाया गया है। ग्‍वादर पोर्ट की दूरी चाबहार से सड़क मार्ग से महज 400 किमी दूर है जबकि समुद्र से मात्र 100 किमी है। पाकिस्तान और चीन के संबंध तो किसी से छिपे नहीं है। कर्ज के जाल में फंसाकर चीन, पाकिस्तान को अपना गुलाम तो बना ही चुका है। इससे चीन आसानी से हिंद महासागर तक पहुंच सकता है। ऐसे में ग्‍वादर पोर्ट पर चीन की मौजूदगी भारत की सुरक्षा के लिहाज से बड़ी समस्‍या उत्‍पन्‍न कर सकती है। चाबहार बंदरगाह चीन की चुनौतियों को जवाब देने के लिए भारत का हथियार बन सकता है। इसलिए ईरान के चाबहार बंदरगाह आर्थिक और रणनीतिक लिहाज से भारत के लिए बेहद उपयोगी है। यह अरब सागर में चीन की चुनौती का जवाब देने के लिए काफी अहम है।

ऐसे में जब भारत और ईरान के बीच समझौते फाइनल होने की कगार पर है तो जाहिर है इससे ड्रैगन की बेचैनी बढ़ रही होगी। चीन वर्षो से इस पर अपनी नजरें गढ़ाए हुए था परंतु एक बार फिर भारत ने चीन की तमाम चालों को नाकाम कर दिया और पूरा का पूरा खेल ही बदलकर रख दिया।

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Tags: Chabahar Portचाबहार पोर्टचाबहार बंदरगाहप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
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राजनीतिक इस्लाम बनाम सनातन चेतना: योगी आदित्यनाथ का वैचारिक शंखनाद और संघ का शताब्दी संकल्प
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राजनीतिक इस्लाम बनाम सनातन चेतना: योगी आदित्यनाथ का वैचारिक शंखनाद और संघ का शताब्दी संकल्प

22 October 2025

गोरखपुर के पावन मंच से जब योगी आदित्यनाथ ने यह कहा कि राजनीतिक इस्लाम ने सनातन धर्म को सबसे बड़ा झटका दिया है, तो यह...

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