ड्रैगन के नाम से मशहूर चीन के बारे में एक कहावत प्रसिद्ध है कि चीन की दुश्मनी से ज्यादा उसकी दोस्ती हानिकारक है। वस्तुतः चीन की विस्तरवादी नीतियों से विश्व भलीभांति परिचित है, चीन पहले मित्रता करता है तत्पश्चात छोटे देशों को भर भर कर पैसा देता है, फिर वे देश जब ऋण का पैसा वापस नहीं दे पाते हैं तो वह उनकी भूमि हथिया लेता है। किंतु कहते हैं कि जब पाप का घड़ा भरता है तो भयानक तबाही आती है और यह तबाही अपने साथ हर एक चीज को बहा कर ले जाती है। मौजूदा समय में चीन के साथ कुछ ऐसा ही हो रहा है। धूर्त चीन जिस पैसे के दम पर पूरे विश्व में अपनी धाक जमाने चला था, उसकी स्वयं की हवा निकल गई है। मूलतः डॉलर डिप्लोमेसी करने वाला चीन अब जिस संकट में है वहां से निकलने के लिए वह काफ़ी हाथ पांव मार रहा है लेकिन निकल नहीं पा रहा है। परिस्थिति कुछ ऐसी बनी है कि वह अपने प्रिय मित्र पाकिस्तान एवं श्रीलंका की मदद भी नहीं कर पा रहा है।
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पाक-श्रीलंका को नहीं दे रहा सहायता
ध्यातव्य हो कि पाकिस्तान बाढ़ में जलमग्न है। चारों ओर त्राहि त्राहि मची हुई है, ऐसे में पाकिस्तान की डूबती अर्थव्यवस्था अब सबसे निचले स्तर पर जा पहुंची है और उसके अस्तित्व पर ख़तरा बना हुआ है। ऐसे में पाकिस्तान बड़ी उम्मीद के साथ मदद के लिए अपने मित्र चीन की ओर देख रहा था। हाल ही में पाकिस्तान ने अपने सेना प्रमुख को इस उम्मीद में चीन भेजा था कि चीन अपने प्रगाढ़ मित्र को कुछ नहीं तो थोड़ा भीख ही दे देगा। किंतु चीन की अर्थव्यवस्था भी चरमराई हुई है ऐसे में उसने पाकिस्तान के दौरे पर आए सेना प्रमुख को तकनीकी सहायता की पेशकश की किंतु पाकिस्तान को एक रुपए भी नहीं दिया। मृत्यु शय्या पर लेटी पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था को देखते हुए चीन पूर्व में उससे अपने पैसे भी मांग चुका है, जिससे पता चलता है कि चीन की अर्थव्यवस्था की स्थिति बदतर हो चुकी है।
इसी क्रम में उसके एक और यार श्रीलंका की आर्थिक स्थिति भी ध्वस्त हो गई है। श्रीलंका दिवालिया हो चुका है। वित्तीय तनाव का सामना कर रहे पाकिस्तान और श्रीलंका दोनों ही सहायता के लिए बीजिंग के साथ लंबे समय से बातचीत कर रहे थे किंतु चीन से मदद न मिलने के बाद दोनों देशों ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की ओर रुख किया है। ध्यान देने वाली बात है कि पिछले पांच वर्षों में चीन ने दोनों देशों को $26 बिलियन से अधिक का ऋण दिया है लेकिन अब उनकी सहायता करने से पीछे हट रहा है। कारण है- डूबती अर्थव्यवस्था।
बर्बाद हो चुका है चीन
हालांकि, इसमें कोई संदेह नहीं है कि चीन अपने घुटने पर आ गया है। उसके फाइनेंशियल बबल की जो हवा निकली है उससे उसकी अर्थव्यवस्था चौपट होने की कगार पर है। चीन की सबसे बड़ी रियल एस्टेट कम्पनी एवरग्रांडे दिवालिया हो चुकी है, पूरा रियल एस्टेट सेक्टर थम गया है। ध्यान देने वाली बात है कि एवरग्रांडे की देनदारी $300 बिलियन से अधिक थी, यह कंपनी अंतरराष्ट्रीय निवेशकों के ब्याज भुगतान को पूरा करने में विफल रही। जिसके बाद फिच, जो कि कंपनियों के वित्तीय जोखिम के आधार पर रेटिंग देती है, उसने एवरग्रांडे को डिफ़ॉल्ट घोषित कर दिया।
परिणाम यह हुआ कि उसके शेष निवेशक भी झिटक गए और कंपनी अपने प्रोजेक्ट पूरी नहीं कर पायी, जिस कारण लोगों को तय समय पर घर नहीं मिले। मूलतः लोगों ने स्वयं के घर की चाह रखते हुए बैंक से लोन लिया था किंतु उन्हें घर नहीं मिला, अतः उन्होंने बैंक की किश्त देने से भी मना कर दिया। अब ऐसे में चीनी बैंकों के ऊपर भी गहरा संकट मंडरा रहा है। परिणामस्वरूप चीन की हवा निकलनी शुरू हो गई है।
ज्ञात हो कि रियल एस्टेट क्षेत्र चीन की अर्थव्यवस्था के सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक है। रिपोर्ट्स की माने तो यह क्षेत्र चीन के कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 25 फीसदी का योगदान देता है। ऐसे में चीन की दिग्गज रियल एस्टेट कंपनी का इस प्रकार से दिवालिया होने से चीन की अर्थव्यवस्था ध्वस्त होने के कगार पर खड़ी हो गई है। चीन ने अपने विनाश की स्क्रिप्ट स्वयं ही लिखी है। वस्तुतः अपने विस्तारवाद को बढ़ावा देने के क्रम में उसने पाकिस्तान, श्रीलंका जैसे देशों के साथ साथ कई अफ़्रीकी देशों को सहायता के नाम पर कर्ज दिया, कई जगह उसने निवेश भी किया किंतु उसके निवेश डूबते गए। CPEC और BRI इसके प्रचंड उदाहरण हैं। ऐसे में यह कहना सही होगा कि चीन से प्रेम करने वाले देश अगर उसके सगे बने रहे तो चीन पहले उन्हें डुबोएगा तत्पश्चात स्वयं ही गर्त में चला जाएगा।
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