मैं दार्शनिक नहीं हूं लेकिन इतना अवश्य कहूंगा कि विस्थापितों का शहर दिल्ली सांस लेने के लिए तड़प रहा है। दिल्ली का दम घुट रहा है। दिल्ली मर रही है। गुरुग्राम- ख़त्म होने के लिए ही बसा है। नोएडा और ग्रेटर नोएडा वर्षों तक विकास की दौड़ में NCR में आगे दौड़ते रहेंगे- बहुत आगे, इतना आगे कि आने वाली पीढ़ियां यह भी भूल जाएंगी कि किसी दौर में गुरुग्राम और नोएडा-ग्रेटर नोएडा के बीच में तुलना भी की जाती थी। यही भविष्य है- यही तथ्य है- यही सत्य है।
दिल्ली-गुरुग्राम को नोएडा-ग्रेटर नोएडा विकास की दौड़ में बहुत पीछे छोड़ देंगे- यह बात मैं किस आधार पर कह रहा हूं- वो आपको अवश्य बताऊंगा लेकिन उससे पहले इन चार शहरों यानी कि दिल्ली, गुरुग्राम, नोएडा और ग्रेटर नोएडा के बारे में कुछ तथ्य आपको अवश्य जान लेना चाहिए।
दिल्ली की कहानी
महाभारत के अनुसार दिल्ली को पांडवों ने इंद्रप्रस्थ के नाम से बसाया था। जातकों के अनुसार इंद्रप्रस्थ सात कोस के घेरे में बसा हुआ था। पांडवों के वंशजों की राजधानी इंद्रप्रस्थ कब तक रही यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता किंतु पुराणों के साक्ष्य के अनुसार परीक्षित तथा जनमेजय के उत्तराधिकारियों ने हस्तिनापुर में भी बहुत समय तक अपनी राजधानी रखी थी। मौर्य काल में दिल्ली या इंद्रप्रस्थ का कोई विशेष महत्त्व न था क्योंकि राजनीतिक शक्ति का केंद्र उस समय मगध था।
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मौर्यकाल के पश्चात् लगभग 13 सौ वर्ष तक दिल्ली और उसके आसपास का क्षेत्र अपेक्षाकृत महत्त्वहीन बना रहा। 12वीं शदी में पृथ्वीराज चौहान ने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया। इसके बाद यहां खिलजी और तुगलक वंशों ने शासन किया- 1192 में आक्रमणकारी मोहम्मद गौरी ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया- 1206 में दिल्ली सल्तनत की नींव रखी गई।
1398 में दिल्ली पर आक्रांता तैमूर ने हमला कर दिया और सल्तनत का खात्मा हो गया- लोधी के बाद बाबर आ गया और इसके बाद मुगल आते रहे- इसके बाद आया 1803 और दिल्ली पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया- वर्ष 1911 में, अंग्रेजों ने कलकत्ता से बदलकर दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया- इसके बाद तभी से दिल्ली भारत की राजधानी है- 1947 में भारत से अंग्रेज चले गए लेकिन दिल्ली, राजधानी बनी रही।
नोएडा-ग्रेटर नोएडा की कहानी।
तो जो दिल्ली आज आपको दिखती है- उस दिल्ली की यही कहानी है- अब आगे बढ़ते हैं- बात करते हैं, नोएडा और ग्रेटर नोएडा की-
1972 की बात है- इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री थी- दिल्ली पर जनसंख्या का दबाव बढ़ने की बातें कही जा रही थी- दिल्ली के बाहर से आने वाले लोगों के अनियंत्रित होने का खतरा सरकार को लगने लगा- तब वर्ष 1972 में 50 गांवों को यमुना-हिंडन-दिल्ली बॉर्डर नियंत्रित क्षेत्र घोषित किया गया। यह ऐलान यूपी रेगुलेशन ऑफ बिल्डिंग ऑपरेशन एक्ट 1958 के तहत किया गया। गांवों को रेगुलेटेड एरिया घोषित करने का फैसला 7 मार्च, 1972 में लिया गया था।
जून, 1975 को इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगा दी- दक्षिणी दिल्ली के ओखला इंडस्ट्रियल एरिया की तर्ज पर यमुना नदी के पूर्वी किनारे पर यूपी इंडस्ट्रियल एक्ट 1976 के तहत न्यू ओखला इंडस्ट्रियल एरिया के तहत नोएडा घोषित किया गया। इस शहर को बसाने के लिए जो अथॉरिटी गठित की गई। उसके नाम पर ही शहर का नाम नोएडा पड़ गया। ग्रेटर नोएडा भी नोएडा की तरह ही उत्तर-प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर में स्थित है। यूपी इंडस्ट्रियल एक्ट 1976 के तहत ही इसे भी 1991 में बसाया गया- बहुत कम समय में ग्रेटर नोएडा एक बेहतरीन शहर बनकर उभरा। आज ग्रेटर नोएडा, नोएडा से भी कहीं ज्यादा तेजी से विकसित होता दिख रहा है।
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गुरुग्राम की कहानी।
दिल्ली और नोएडा-ग्रेटर नोएडा के बाद अब आगे बढ़ते हैं- बात करते हैं गुरुग्राम की पौराणिक कथाओं के अनुसार, गुरुग्राम गुरु द्रौणाचार्य का गांव था। अकबर के शासनकाल के दौरान गुरुग्राम को दिल्ली और आगरा के क्षेत्रो में गिना जाने लगा।
1857 के विद्रोह के बाद, इसे उत्तर-पश्चिमी प्रान्तों से पंजाब प्रांत में स्थानांतरित किया गया। 1861 में, जिला, जिसमें गुरुग्राम का हिस्सा था, का पुनर्गठन पांच तहसीलों में किया गया: गुड़गांव, फिरोजपुर झिरका, नूंह, पलवल और रेवाड़ी और आधुनिक शहर गुड़गांव तहसील के नियंत्रण में आया। 1947 में, गुड़गांव पंजाब राज्य के अंतर्गत आ गया- 1966 में हरियाणा राज्य के निर्माण के साथ, यह हरियाणा में शामिल हो गया।
अब आगे की कहानी
चारो शहरों का संक्षेप में इतिहास हमने समझ लिया- हमने समझ लिया कि इन शहरों का निर्माण कैसे हुआ- इन शहरों का विकास कैसे हुआ- अब आगे बढ़ते हैं- तो हमारा सवाल था कि कैसे गुरुग्राम और दिल्ली, नोएडा और ग्रेटर नोएडा से विकास की दौड़ में पीछे रह जाएंगे-
किसी भी शहर के विकास को समझने के लिए कई पैमाने हो सकते हैं- लेकिन हमें साथ ही साथ यह भी समझना है कि भविष्य क्या होगा- इसलिए हम कुछ बहुत महत्वपूर्ण मानक तय करते हैं- इन शहरों की तुलना हम इन 5 मानकों के आधार पर करेंगे, जो हैं- विनिर्माण यानी इन्फ्रास्ट्रक्चर, कनेक्टिविटी, कानून व्यवस्था और सरकारी नीतियां।
इन्फ्रास्ट्रक्चर
इन्फ्रास्ट्रक्चर के मामले में नोएडा-ग्रेटर नोएडा, गुरुग्राम से कहीं आगे हैं। नोएडा- ग्रेटर नोएडा एक तरह से योजनाबद्ध तरीके से बसाए गए शहर हैं- पूरी तरीके से नहीं, लेकिन बहुत हद तक- नोएडा को सेक्टर्स में डिवाइड किया गया है- कमर्शियल क्षेत्रों को आवासीय क्षेत्रों से बिल्कुल अलग रखा गया है- कमर्शियल क्षेत्रों को भी सोच-समझकर बसाया गया है- सभी सेक्टर्स या फिर ब्लॉक्स में पार्क स्थापित किए गए हैं- इसी तरह से आवासीय क्षेत्रों में व्यवस्था बनाई गई है। अब आगे बढ़ते हैं- इन्फ्रास्ट्रक्चर में सड़कें सबसे महत्वपूर्ण हैं- नोएडा की सड़कें चौड़ी-चौड़ी और हैं- वहीं, दूसरी तरफ गुरुग्राम की सड़कें कहीं बहुत चौंड़ी और कहीं-कहीं बहुत ज्यादा संकरी हैं- इतनी ज्यादा संकरी की गाड़ियों को ठीक से ले जाने में भी दिक्कत आती है।
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सड़कों की स्थिति पर अगर बात करें तो वो भी नोएडा और ग्रेटर नोएडा में गुरुग्राम की अपेक्षा कहीं अच्छी है- अब आगे बढ़ते हैं- बिजली आपूर्ति में नोएडा-ग्रेटर नोएडा का मुकाबला गुड़गांव कभी नहीं कर सकता- इसके पीछे एक मुख्य वज़ह यह है कि नोएडा और ग्रेटर नोएडा में प्राइवेट कंपनियां बिजली की आपूर्ति करती हैं- इसलिए 24 घंटे की बिजली की आपूर्ति निश्चित है- वहीं दूसरी तरफ गुरुग्राम में हरियाणा स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड पर बिजली की आपूर्ति निर्भर करती है-
इससे आगे पानी आपूर्ति की बात करें तो उसमें भी नोएडा-ग्रेटर नोएडा और गुरुग्राम में जमीन आसमान का फ़र्क है- इन दोनों शहर में साफ-स्वच्छ और मीठा पानी जमीन से निकलता है- कोई भी बोरिंग करवाकर 24 घंटे पानी का आपूर्ति सुनिश्चित कर सकता है जबकि गुरुग्राम में पानी की आपूर्ति पश्चिमी यमुना कैनाल से होती है- इसी तरह से चाहे- ट्रैफिक की बात हो- मार्केट की बात हो- पब्लिक ट्रांसपोर्ट की बात हो- रेंटल प्रोपर्टीज़ की बात हो- हाउसिंग सोसायटी की बात हो- नोएडा- ग्रेटर नोएडा, गुरुग्राम से इन्फ्रास्ट्रक्चर के सभी मानकों पर भारी पड़ता है-
कनेक्टिविटी
इन्फ्रास्ट्रक्चर के बाद अब हम बात करेंगे कनेक्टिविटी की- कनेक्टिविटी के मामले में अभी तक गुरुग्राम को एक विशेष लाभ इंदिरा गांधी एयरपोर्ट का था- दिल्ली एयरपोर्ट गुरुग्राम के ज्यादा नज़दीक है- इस कारण से बहुत-सी कंपनियों ने अपने ऑफिस गुरुग्राम में खोले- लेकिन अब यह भी बदलने जा रहा है- जेवर एयरपोर्ट गुरुग्राम के इस इकलौते लाभ को भी छीन लेगा- विशाल जेवर एयरपोर्ट नोएडा, ग्रेटर-नोएडा को कनेक्विटिटी के क्षेत्र में बहुत आगे कर देगा।
सड़क से जुड़े होने की बात करें तो उसमें तो पहले से ही नोएडा-ग्रेटर नोएडा, गुरुग्राम से काफी आगे है- दिल्ली से गुरुग्राम जाने के तीन एंट्री पॉइट हैं- वहीं, अगर नोएडा-ग्रेटर नोएडा की बात करें तो दोनों ही शहर कई तरफ से दिल्ली से जुड़ते हैं-
कानून व्यवस्था
कानून व्यवस्था यह एक मानक है जिस पर कुछ वर्षों पहले तक नोएडा-ग्रेटर नोएडा पर भी सवाल खड़े होते थे- लेकिन वो दौर बीत गया- उत्तर-प्रदेश में महंत योगी आदित्यनाथ की सरकार है- और इस सरकार में अपराधों पर कैसे रोक लगाई है यह बताने की कोई आवश्यकता नहीं- आज नोएडा-ग्रेटर नोएडा के अपराधियों का या तो एनकाउंटर होता है या फिर उनके घरों पर बुलडोजर चलाए जा रहे हैं।
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ये दोनों शहर महिलाओं के लिए भी पूरी तरह से सुरक्षित हैं- वहीं दूसरी तरह गुरुग्राम का जो चमकता-दमकता इलाका है- उससे थोड़ा-सा आगे बढ़ते हैं- बिहड़ शुरू हो जाता है- जयपुर हाइवे पर क्या-क्या नहीं होता है? एक्सल गैंग की घटनाओं से हम सभी वाकिफ़ हैं- सड़कों के दोनों तरफ का घना जंगल हमें यूं ही डरा देता है- इस तरह से इस मानक पर ही नोएडा-ग्रेटर नोएडा, गुरुग्राम पर भारी पड़ते हैं-
सरकारी नीतियां
अब हम अपने पांचवें और अंतिम बिंदु पर चर्चा करते हैं- और यह बिंदु है सरकारी नीतियां- सरकार की नीतियां भी कई मायनों में विकास की रफ्तार तय करती हैं- राज्य सरकार की नीतियों का सीधा प्रभाव उस राज्य के विकास पर पड़ता है- नोएडा-ग्रेटर नोएडा और गुरुग्राम के साथ भी यही हुआ- इसका सबसे बड़ा उदाहरण है- हरियाणा सरकार ने प्राइवेट सेक्टर की नौकरियों में खासकर उद्योगों में हरियाणा के स्थानीय युवाओं को 75 फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान किया है-
इस फैसले पर बहुत विवाद हुआ- अदालतों में सुनवाई हुई-लेकिन खट्टर सरकार ने इसे लागू कर दिया- हरियाणा के युवाओं के लिए यह फैसला निसंदेह अच्छा है- लेकिन कंपनियों के लिए अच्छा नहीं है- 30 हजार तक का वेतन बहुत सी MSME कंपनियां अपने कर्मचारियों को देती हैं- कई बार वो कर्मचारी भारत के दूसरे राज्यों से आकर काम करते हैं-
ऐसे में कंपनियों के अंदर यह चर्चा चली कि गुरुग्राम को छोड़कर नोएडा-ग्रेटर नोएडा की तरफ जाना चलना चाहिए- इसके साथ ही निवेश करने की इच्छुक कंपनियां भी इस प्रावधान को तीखी दृष्टि से देख रही हैं- ऐसे में निवेश की दृष्टि से देखें तो नोएडा-ग्रेटर नोएडा तेजी से आगे बढ़ेगा- उसके पीछे यह भी एक कारण है।
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दिल्ली का अब कुछ नहीं हो सकता!
अब आपके दिमाग में सवाल होगा कि हमने दिल्ली का नाम लिया है फिर दिल्ली से क्यों तुलना नहीं कर रहे- गुरुग्राम से ही क्यों कर रहे हो? आपका सवाल सही है- सभी मानकों में मैंने दिल्ली के साथ नोएडा-ग्रेटर नोएडा की कोई तुलना नहीं की- उसके पीछे कई कारण हैं- आइए, उन्हें समझते हैं-
1. दिल्ली में जितना विकास- जितना काम होना था- हो गया- अब इससे ज्यादा दिल्ली का कुछ नहीं हो सकता- हर तरफ से ठूसी हुई दिल्ली- दिल्ली अब ऐसी ही रहेगी। अब वहां विकास की कोई बड़ी संभावनाएं नहीं हैं।
2. दिल्ली का क्षेत्र बहुत सीमित है और जनसंख्या का भार बहुत ज्यादा- इसलिए प्रदूषण से लेकर- गदंगी तक- दिल्ली की स्थिति आने वाले वर्षों में और ज्यादा ख़राब ही होगी।
3. दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार है और मुख्यमंत्री हैं अरविंद केजरीवाल- अरविंद केजरीवाल फ्री की रेवड़ियां बांटने के झंडाबदार हैं- दिल्ली में भी वो यही कर रहे हैं- ऐसे में बजट का ज्यादातर हिस्सा रेवड़ियों के खर्च पर चला जाता है- विकास के कार्यों पर एक तरह से रोक लगी है।
इन सभी आधार पर कह सकते हैं कि दिल्ली का तो जो होना था- सो गया- अब कुछ नहीं होना- इसलिए आने वाले वर्षों में दिल्ली की स्थिति और ज्यादा ख़राब ही होगा- विकास की रफ्तार में वो नोएडा-ग्रेटर नोएडा से पीछे छूट जाएगी।
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