इन दिनों धर्मांतरण का नया मॉडल बाजार में मिल गया है। कोई भी अत्याचार होता है, उसे जातिवाद का रंग दे दो, और अगड़ा पिछड़ा का नारा बुलंद कर धर्मांतरण कराओ। विश्वास नहीं होता तो राजस्थान के वर्तमान धर्मांतरण कर्मकांड को ही देख लीजिए। एक हिंसक झड़प के पश्चात 250 लोगों ने हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म अपना लिया।
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250 हिंदुओं का धर्म परिवर्तन
दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के अंश अनुसार,
राजस्थान के बारां जिले में सवर्ण समाज के लोगों की मारपीट से आहत 250 दलित लोगों ने हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म अपना लिया। इन लोगों ने अपने घरों से देवी-देवताओं की मूर्तियों और तस्वीरों को बैथली नदी में विसर्जित कर दिया।
इन परिवारों ने राज्य सरकार के खिलाफ भी आक्रोश जताया और आरोप लगाया कि 15 दिन पहले मां दुर्गा की आरती करने पर सवर्णों ने दलित समुदाय के दो युवकों के साथ मारपीट की थी। समाज ने राष्ट्रपति से लेकर जिला प्रशासन तक न्याय की गुहार लगाई, लेकिन मारपीट के आरोपियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। यह पूरा मामला छबड़ा क्षेत्र के भूलोन गांव का है।
अगर पिछले कुछ समय के मामलों को देखें तो यह एक ट्रेंड बन गया है, कुछ भी हुआ तो धर्मांतरण कर लो। यहां भी लड़ाई हुई तो कानूनी कार्रवाई के लिए इंतजार नहीं किया गया। लोगों के दिमाग में सोशल मीडिया पर तुरंत जातिसूचक शब्दों का उपयोग करते हुए कथित समाज सुधारक ‘उच्च जाति शोषण’ का नारा बुलंद कर धर्मांतरण के कुत्सित एजेंडे को बढ़ावा देने में जुट गए ताकि राजस्थान में वास्तविक अपराधों की ओर ध्यान कम जाए।
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राजस्थान में अल्पसंख्यकों का हाल
आश्चर्य की बात यह है कि जिस शोषण के नाम पर धर्मांतरण किया गया, उसी राजस्थान में पिछड़े वर्गों का सबसे अधिक शोषण किया जाता है और आश्चर्यजनक रूप से दोषी उच्च जातियां है ही नहीं। बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने जिस संविधान का सपना देखकर उसे मूर्त रूप देने का काम किया, आज उसी संविधान को कुचलने का काम उस पार्टी के नेतृत्व वाली सरकारें कर रही हैं जो स्वयं को देश की आज़ादी की पुरोधा कहती हैं। राजस्थान की हालत डांवाडोल है। राजस्थान के हर कोने में कोहराम मचा हुआ है और अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार हाथ पर हाथ धरकर बैठी हुई है। राजस्थान के आतंक का डेटा आपकी अंतरात्मा को झकझोर कर रखा देगा कि कैसे एक सरकार ने कानून व्यवस्था को कठपुतली बना दिया है, जिसे अराजक तत्व अपने मन मुताबिक चला रहे हैं।
वहीं, मूल रूप से राजस्थान की बात करें तो विशेष रूप से अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) समुदायों के एक बड़े वर्ग के लिए जातिवादी हिंसा एक गंभीर वास्तविकता है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों से पता चलता है कि राजस्थान सहित कुछ राज्यों में हो रहे कुल अपराधों में ऐसे अपराधों का दो-तिहाई हिस्सा है। कांग्रेस शासित राज्य में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत 6000 से अधिक मामले दर्ज किए गए हैं। ध्यान देने वाली बात है कि वर्ष 2020 में अनुसूचित जाति और जनजाति से जुड़े करीब 8500 से अधिक मामले दर्ज किए गए थे।
आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि राजस्थान की राजधानी जयपुर में दलितों के खिलाफ अपराधों में वृद्धि हुई है। शहर ने वर्ष 2017 में 6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की। हालांकि वर्ष 2018 में अपराधों का हिस्सा बढ़कर सीधे 13.4 प्रतिशत हो गया। शहर ने यह मुकाम 19 अन्य महानगरीय शहरों में सबसे खराब महानगर के रूप में दर्ज किया था। अब चाहे दर्जी कन्हैया लाल का सिर काटना हो या घोड़ी पर सवार दलित को मारना। अपराध के लगातार बढ़ रहे मामले राजस्थान राज्य को दलितों और अन्य उत्पीड़ित समुदायों के लिए असुरक्षित साबित कर रही हैं। इसमें भी अधिकतम अपराधी अल्पसंख्यक वर्ग से अधिक आते हैं, परंतु इसका लेशमात्र भी उल्लेख करो तो मीडिया में त्राहिमाम मच जाए।
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सनातन धर्म को अपमान
तो इसका हिन्दू विरोधी दलित चिंतकों के षड्यंत्रों से क्या लेना देना? असल में बात-बात पर अपराध का सांप्रदायिकरण न करने की दुहाई देने वाले कुछ कथित ‘शुभचिंतक’ यहां पर खुलेआम सनातन धर्म को अपमानित करने से बाज नहीं आते, जिनमें दिलीप मण्डल जैसे नमूने अग्रणी रहते हैं। उदाहरण के लिए इस व्यक्ति ने 2019 में ट्वीट किया था, ‘प्रिय जैक डोर्सी, ट्विटर इंडिया के कर्मचारी स्वभाव से जातिवादी हैं, वे पिछड़े समुदाय को उनका उचित स्थान नहीं देना चाहते, वे लोकतान्त्रिक आवाज़ देने वाले ट्विटर अकाउंट को सस्पेंड कर देते हैं। अपने भारतीय ऑफिस का सामाजिक ऑडिट कीजिये’।
ये तो कुछ भी नहीं है। इसके अलावा एक और ट्वीट में उन्होंने अपनी मंशा ज़ाहिर करते हुए इस ट्वीट में वे कहते हैं, ‘वेरिफिकेशन और ब्लू टिक का नियम बनाओ। ग्रेजुएट चाहिए, पीएचडी चाहिए। कौन सा पद चाहिए। कितने फॉलोवर चाहिए। कितनी किताबों का लेखक चाहिए। वकील चाहिए, किसान चाहिए, डॉक्टर चाहिए। आदमी चाहिए, बैल चाहिए। कोई तो नियम बनाओ। सबको एक नियम पर वेरिफाई करो। जातिवाद मत करो। #VerifySCSTOBCMinority’
वेरिफिकेशन और ब्लू टिक का नियम बनाओ. ग्रेजुएट चाहिए, पीएचडी चाहिए. कौन सा पद चाहिए. कितने फॉलोवर चाहिए. कितनी किताबों का लेखक चाहिए. वकील चाहिए, किसान चाहिए, डॉक्टर चाहिए. आदमी चाहिए, बैल चाहिए. कोई तो नियम बनाओ. सबको एक नियम पर वेरिफाई करो. जातिवाद मत करो. #VerifySCSTOBCMinority
— Dilip Mandal (@Profdilipmandal) November 4, 2019
इतना ही नहीं, जब NASA ने एक बार भारतीय मूल की इंटर्न प्रतिमा रॉय की हिंदू देवी-देवताओं के साथ एक तस्वीर ट्विटर पर पोस्ट की, तो इसी दिलीप मण्डल तो नासा को दलित विरोधी करार दे दिया था।
7% of @NASA employees are Asian Americans. This category includes Chinese, Koreans, Indians etc. This is happening only because NASA, like all US institutions, follows affirmative action. Oppressor Caste Indians, getting there due to diversity quota, oppose reservations in India. pic.twitter.com/IGGFswJeft
— Dilip Mandal (@Profdilipmandal) July 12, 2021
ऐसे में इन लोगों का बस एक ही ध्येय है- कैसे भी करके सनातन समाज का विध्वंस करना और अंग्रेजों के अधूरे स्वप्न को पूर्ण, भारत का सामाजिक विनाश करना। परंतु अपनी अधीरता में वे एक बात भूलते हैं, सोशल मीडिया के इस युग में कुछ नहीं छुपता, इनकी नंगई भी नहीं।
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