“न खाऊंगा, न खाने दूंगा”, नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2014 में देश की सत्ता संभालते हुए अपने इरादे जनता के सामने स्पष्ट कर दिए थे। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद लगने लगा था कि अब भ्रष्टाचारियों, रिश्वतखोरों के ‘बुरे दिन’ शुरू होने वाले हैं, उनकी शामत आने वाली हैं। और हुआ भी कुछ इसी प्रकार। 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद देश में भ्रष्टाचारियों और अपराधियों के खिलाफ जांच एंजेसियां लगातार ताबड़तोड तरीके से एक्शन ले रही हैं, जिससे सबसे अधिक बौखलाई विपक्षी पार्टियां ही नजर आती हैं, क्योंकि सरकार द्वारा एजेंसियों को खुली छूट मिलने के बाद भष्ट्र नेताओं को चुन-चुनकर बाहर निकाला जा रहा है। जिसके चलते बौखलाए विपक्ष के द्वारा जांच एजेंसियों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाने का ट्रेंड सा बना लिया है।
जैसा कि आप देख रहे होंगे पिछले कुछ सालों में चाहे वो सीबीआई हो या ईडी जब वे अपना काम करते हुए किसी नेता पर शिकंजा कसती हैं तो विपक्ष अपनी सुविधा अनुसार इन जांच एंजेसियों पर सरकार के इशारों पर काम करने के आरोप लगा देते हैं। यह इनकी आदत सी ही बन गई है कि कुछ भी हो मोदी सरकार के इशारों पर हुआ है यह कहकर मामले से ही लोगों का ध्यान भटका दो। विपक्षी पार्टियों के द्वारा न केवल सीबीआई, ईडी और ECI जैसी एजेंसी पर प्रश्न खड़े किये जाते हैं, बल्कि इसके साथ ही वे तो इन पर ऐसे आरोप तक लगा देती है, जिसका कोई आधार तक नहीं होता।
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चुनाव आयोग ने अखिलेश से सबूत दिखाने को कहा
समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी ऐसा ही कुछ किया था। अखिलेश ने चुनाव आयोग पर मतदाता सूची से यादव और मुस्लिम वोटर्स को घटाने के गंभीर आरोप लगाये थे। इन्हीं आरोपों को लेकर अब चुनाव आयोग के द्वारा अखिलेश को एक नोटिस भेजा गया है। चुनाव आयोग ने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को नोटिस जारी कर उनके द्वारा लगाए गए आरोपों के सबूत मांगे है। आयोग ने कहा कि सपा अध्यक्ष इस संबंध में 10 नवंबर तक सबूत उपलब्ध करवाएं। आपको बता दें कि अखिलेश यादव ने 29 सितंबर को आरोप लगाते हुए कहा था कि चुनाव आयोग ने भाजपा के पन्ना प्रमुखों के निर्देश पर हर विधानसभा क्षेत्र से 20 हजार यादव-मुस्लिम मतदाताओं के नाम मतदाता सूची हटा दिए हैं। कुछ लोगों को तो एक बूथ से दूसरे बूथ पर ट्रांसफर कर दिया गया। अखिलेश ने कहा था कि उत्तर प्रदेश में जो सरकार बनी वो जनता की बनायी हुई नहीं है। यह सरकार छीनी हुई है। यूपी में पूरी की पूरी मशीनरी लगाकर जनता की बनायी हुई सरकार छीन ली गई है।
कुछ पार्टियां ऐसी होती हैं जो जनता के निर्णय को मानते हुए अपनी हार स्वीकार नहीं करती। जब चुनाव के परिणाम उनके पक्ष में नहीं आते तो वो अपनी हार का पूरा का पूरा ठीकरा यूं चुनाव आयोग पर फोड़ने के प्रयास करती हैं। अखिलेश ने भी ऐसा ही कुछ किया। परंतु इस तरह के आरोप काफी संगीन है, क्योंकि इससे चुनाव आयोग की विश्वनीयता को बड़ा खतरा पैदा होता है। यही कारण है कि चुनाव ने अब अखिलेश को नोटिस जारी कर इस संबंध में 10 नवंबर तक सबूत पेश करने को कहा है।
चुनाव आयोग के अतिरिक्त सीबीआई और ईडी जैसी जांच एजेंसियों पर भी सवालिया निशान यह विपक्षी पार्टियां आए दिन खड़े करती नजर आ ही जाती हैं। जिस तरह से राजनीतिक भ्रष्टाचार के मामलों में जांच एजेंसियों ने सक्रियता दिखाई है और लगातार एंजेसियों द्वारा छापेमारी की जा रही है, तब से विपक्ष पूरी तरह से तिलमिला उठा हैं।
सिसोदिया ने लगाये थे सीबीआई पर गंभींर आरोप
दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के विरुद्ध भी सीबीआई ने किस प्रकार बड़ा एक्शन लेते हुए उन पर शिंकजा कस रही है, वे तो सभी के सामने हैं। दिल्ली में विवादित आबकारी नीति आम आदमी पार्टी सरकार के गले की फांस बनती चली जा रही हैं। सीबीआई पिछले कुछ महीनों से लगातार उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के खिलाफ जांच कर रही हैं। सीबीआई ने डिप्टी सीएम के घर से लेकर उनके दफ्तर और बैंक के लॉकर्स तक खंगाल डाले। इसके बाद सीबीआई ने उन्हें पूछताछ के लिए भी बुलाया था। मनीष सिसोदिया पूछताछ के लिए गए भी परंतु जैसी नौटंकी कांग्रेस किसी जांच में घिरने के बाद करती है, ठीक उसी तरह की नौटंकी मनीष सिसोदिया ने भी की। इस दौरान आम आदमी पार्टी ने सीबीआई पर कई आरोप लगाते हुए मामले को काफी तूल देने की कोशिश की।
यहां तक तो ठीक था। परंतु मनीष सिसोदिया ने सीबीआई पर गंभीर आरोप लगाते हुए यह तक कह दिया था कि बीजेपी ऑपरेशन लोटस को सफल बनाने के लिए इस तरह के केस लगा रही हैं। उन्होंने कहा कि सीबीआई दफ्तर के अंदर अधिकारी उनसे केस को लेकर पूछताछ नहीं कर रहे थे बल्कि बार-बार केजरीवाल का साथ छोड़ बीजेपी में शामिल होने का दबाव बना रहे थे। सीधे तौर पर कहें तो सीबीआई पर भाजपा के लिए काम करने का आरोप तक मनीष सिसोदिया ने लगा दिया था। किसी भी संवैधानिक जांच एजेंसी पर इस तरह का आपत्तिजनक आरोप लगाना संस्था की छवि को धूमिल कर सकता है। इसको लेकर सीबीआई को सामने आना पड़ा था और इस मुद्दे पर बयान तक जारी करना पड़ा कि ऐसा कुछ भी नहीं है।
देखा जाये तो सीबीआई की कोई भी पूछताछ यूं हवा में तो होती नहीं हैं, बल्कि उसका एक-एक शब्द रिकॉर्ड किया जाता है और यह रिकॉर्ड यदि सामने आ गया तो सिसोदिया का क्या होगा, यह कहा नहीं जा सकता। केवल सिसोदिया ही क्यों अन्य पार्टियों के नेता देखेंगे तो वो भी इसी प्रकार से इन एजेंसियों पर सवाल उठाने लगती हैं। यदि TMC के किसी नेता के खिलाफ सीबीआई या ईडी कारवाई करे तो ममता बनर्जी चिल्लाने लगती हैं। गांधी परिवार को पूछताछ के लिए बुलाया जाए तो कांग्रेस सड़कों पर उतरकर तमाशा करने लगती हैं। इस दौरान इन सभी पार्टियों का एक ही आरोप होता है कि यह सबकुछ मोदी सरकार के इशारों पर हो रहा है।
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एजेंसियों को बदनाम करना ट्रेंड बन गया है
देखा जाए तो 2014 के बाद से सुस्त पड़ी प्रवर्तन निदेशालय (ED) सक्रिय हो गया और भ्रष्टाचार पर ताबड़तोड़ प्रहार कर रहा है। बेशक भष्ट्राचार की जड़ों को उखाड़ना शायद संभव न हो परंतु इस पर अंकुश लगाने के प्रयास अवश्य किए जा रहे हैं। पिछले कुछ समय से ईडी लगातार चर्चा का विषय बनी हुई है क्योंकि ईडी की कार्रवाई से देश के कई बड़े राजनेताओं की पोल जो खुली हैं। बीते दिनों प्रवर्तन निदेशालय ने नेशनल हेराल्ड मामले में देश में कई जगहों पर छापेमारी की थीं। ईडी ने नेशनल हेराल्ड केस में हाल ही में सोनिया गांधी और राहुल गांधी से पूछताछ की थी, जिससे तिलमिलाए कांग्रेसियों ने ईडी की कार्रवाई के खिलाफ देशभर में सत्याग्रह किया था। वहीं बंगाल से लेकर महाराष्ट्र तक देश में कई जगहों पर ईडी की कार्रवाई देखने को मिल चुकी हैं।
जहां ट्रेंड को देखते हुए ही जिन पार्टियों के नेताओं पर कार्रवाई हुई उन्होंने ईडी पर सवाल खड़े करने शुरू कर दिया और एजेंसी पर सरकार के इशारों पर काम करने का आरोप लगाया। पश्चिम बंगाल में जब ममता के भष्ट्र नेताओं पर ईडी का शिकंजा कसा तो खुद ममता बनर्जी उनके बचाव में खड़ी हो गई और उन्होंने टीएमसी की कार्यकर्ताओं को भड़काना शुरू कर दिया। ममता ने तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं से कहा कि अगर केंद्रीय एजेंसी के लोग उनके दरवाजे तक पहुंचते हैं तो वे सड़कों पर उतरें। ममता बनर्जी की ये टिप्पणी ऐसे समय में आई जब राज्य में पार्थ चटर्जी, अर्पिता बनर्जी और अनुब्रत मंडल पर केंद्रीय एजेंसी ने कार्रवाई की थी।
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जिस तरह से देश की संवैधानिक एजेंसियों और संस्थाओं पर आरोप लगाकर उन्हें बदनाम करने का जो ट्रेंड चल रहा है, वो कहीं न कहीं एंजेसियों के मनोबल को भी कम कर सकता है, जिसको लेकर कुछ न कुछ तो करने की जरूरत है। यह सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि विपक्षी पार्टियां केंद्रीय एजेंसियों का सम्मान करें। सरकार को ऐसा कोई सख्त कदम उठाने की आवश्कता है, जिससे इन एजेंसियों और संस्थाओं पर लोगों का विश्वास कम न हो और उनका मनोबल भी बना रहें।
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