भारत की कूटनीतिक ताकत से आज पूरी दुनिया परिचित है। रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान भारत ने जो निर्णय लिया, उस निर्णय के बाद पूरी दुनिया ने देखा कि भारत कैसे उस पर मजबूती से खड़ा रहा। वो निर्णय आसान नहीं था क्योंकि एक ओर पश्चिमी देश थे, जिनमें अमेरिका प्रमुख भूमिका निभा रहा था और दूसरी तरफ रूस था, जिसके साथ भारत के पुराने और रणनीतिक रिश्ते थे। ऐसे में भारत ने निर्णय किया कि वह किसी भी देश के साथ नहीं है, वह किसी भी गुट के साथ नहीं है, वह किसी का भी विरोध या समर्थन नहीं करता है बल्कि उसका अपना एक पक्ष है। उसका पक्ष, भारत का पक्ष है। शांति का पक्ष है। भारत ने कहा कि वह शांति के पक्ष में खड़ा है। पश्चिमी देशों ने कई रणनीति अपनाई, कई तरह के दवाब डाले लेकिन भारत अपने निर्णय पर अड़ा रहा। इस एक निर्णय ने दिखा दिया था कि नया भारत, नए तरीके से सोचता है। नई तरह की कूटनीति पर चलता है। नई तरह की रणनीति पर काम करता है।
इस क्रम में अब भारत, तुर्की को सबक सिखा रहा है। तुर्की को सबक कैसे सिखा रहा है, वो हम आपको बताएंगे लेकिन उससे पहले जान लीजिए कि क्यों तुर्की को भारत सबक सिखा रहा है। तुर्की के राष्ट्रपति हैं, रेसेप तैयप एर्दोगन। एर्दोगन, जम्मू और कश्मीर को लेकर बहुत बयानबाजी करते रहे हैं। जब भारत ने आर्टिकल 370 को हटाया, उस वक्त भी एर्दोगन ने जबरदस्त बयानबाजी की थी। पाकिस्तान की संसद में जाकर भी एर्दोगन ने जोरदार तरीके से भारत विरोधी रुख अपनाया। भारत इन सभी बयानों को, तुर्की के रुख को देख रहा था लेकिन तीखी प्रतिक्रिया उस वक्त भारत ने नहीं दी। भारत सही मौके की प्रतीक्षा कर रहा था। वो वक्त आ गया और अब तुर्की को भारत सबक सिखा रहा है। इसके लिए भारत एक विशेष रणनीति पर काम कर रहा है।
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तुर्की को कैसे सबक सिखा रहा है भारत?
दरअसल, आर्मीनिया और अज़रबैजान के विरुद्ध टकराव की स्थिति बनी रहती है। दोनों देशों के विरुद्ध युद्ध भी हो चुका है। तुर्की, अज़रबैजान का समर्थन करता है। ऐसे में भारत, आर्मीनिया को मजबूत करने की रणनीति अपना रहा है। हाल ही में भारत ने हथियारों का एक सौदा आर्मीनिया के साथ किया है। करीब दो हजार करोड़ रुपये में तय हुई इस डील में भारत ने आर्मीनिया को हथियार बेचने का सौदा किया है। इन हथियारों में सबसे महत्वपूर्ण भारत का पिनाका रॉकेट लॉन्चर है। पिनाका रॉकेट लॉन्चर को DRDO ने विकसित किया है। इसके अलावा भारत आर्मीनिया को एंटी टैंक रॉकेट और गोला-बारूद भी सप्लाई करेगा। इसके बाद अब भारत आर्मीनिया की आर्थिक मदद करने जा रहा है। रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत आर्मीनिया को 1.2 मिलियन डॉलर की मदद करने जा रहा है।
As per reports, #Armenia to get close to $1.2 mn grant from #India for community development! It’s another quick action from India’s part to cement further Indo-Armenian bonding at a time when it matters the most!
🇮🇳🤝🇦🇲— Rananjay Anand (@BrahmasmiAham) October 7, 2022
तुर्की को सबक सिखाने का भारत का जो तरीका है, उससे चीन चाहे तो कुछ सबक ले सकता है क्योंकि आने वाले वक्त में चीन के लिए भी भारत कुछ इसी तरह की रणनीति अपना सकता है। गलवान में हुई झड़प की बात हो, चीन का पाकिस्तान को समर्थन देने की बात हो या संयुक्त राष्ट्र में बार-बार भारत के प्रस्तावों पर चीन के वीटो की बात हो, भारत निरंतर, चीन की इन गतिविधियों को देख रहा है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो आने वाले वक्त में भारत, चीन के विरुद्ध भी तुर्की वाली रणनीति अपना सकता है।
भारत के पास ऐसे कई ट्रंप कार्ड हैं, जिनसे वह चीन को नाको चने चबवा सकता है। आइए, कुछ मुद्दों पर बात करते हैं। भारत ने हाल ही में उइगर मुस्लिमों के मानवाधिकार के मुद्दे पर चिंता जताई है। यानी कि अगर चीन नहीं सुधरता है तो उइगर मुस्लिमों का मुद्दा भारत जोर-शोर से उठा सकता है और चीन की अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इसके लिए जवाबदेही तय करवा सकता है।
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इसके साथ ही भारत, ताइवान के मुद्दे पर भी आधिकारिक तौर पर बयान जारी कर सकता है। भारत, चीन को दबाव में लाने के लिए वन चाइना पॉलिसी को मानने से इनकार कर सकता है और साथ ही ताइवान को लेकर अपनी नीति जारी कर सकता है। अगर भारत ऐसा करता है तो चीन मिमियाने के सिवाय कुछ नहीं कर पाएगा। चीन भी यह बात जानता है कि उसकी कमजोर नस को भारत कभी भी दबा सकता है, इसलिए वक्त-वक्त पर चीन ठंडा पड़ जाता है।
उइगर मुस्लिम और ताइवान से इतर अगर बात करें तो तिब्बत का मुद्दा भी चीन के लिए उसकी एक कमजोर नस है। ताइवान की निर्वासित सरकार के कई नेता वक्त-वक्त पर भारत से अपील करते रहते हैं कि वह तिब्बत को लेकर चीन पर दबाव डाले। तिब्बत के धार्मिक गुरु दलाई लामा भी अधिकांश वक्त भारत में ही रहते हैं और खुले तौर पर भारत के समर्थक भी हैं। ऐसे में अगर तिब्बत के मुद्दे पर नई दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस भी हो गई तो चीन के अंग विशेष में आग लग जाएगी।
ऐसे में अगर चीन नहीं सुधरा और तुर्की के साथ जो हो रहा है, उससे सबक नहीं लिया तो आने वाले एक या दो वर्षों में भारत, चीन को सबक सिखाने के लिए इन रणनीतियों का इस्तेमाल कर सकता है।
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