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प्राचीन भारत के वो महान वैज्ञानिक जिन्हें आधुनिक भारत ने भुला दिया

प्राचीन भारत की वैज्ञानिक ताकत इस दुनिया को हमने कभी बताई ही नहीं। इस लेख में भारत के उन महान वैज्ञानिकों के बारे में विस्तार से समझिए जिन्होंने भारत को बहुत पहले विश्व गुरु बना दिया था।

Devesh Sharma द्वारा Devesh Sharma
14 November 2022
in समीक्षा
Ancient Indian Scientists

Source- Google

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Ancient Indian Scientists – इस दुनिया में जो कुछ है सब उन्हीं की देन है, बाकी सब तो मिथ्या है। सांस ले पा रहे हैं न? खाना बनाकर खा रहे हैं न? सब उन्हीं की देन है। अब आप पूछेंगे कौन? अरे तो जिस तरह भारत की आज़ादी के बाद देश में सुई से लेकर सुपरकार बनाने का क्रेडिट नेहरू जी के पास है, ठीक उसी तरह दुनियाभर में अपनी खोज से क्रांति लाने का श्रेय पश्चिमी वैज्ञानिकों को प्राप्त है, जबकि ऐसा है नहीं। आधुनिकता और विज्ञान के बारे में जब भी बता की जाती है तो तथाकथित बुद्धिजीवी कहते हैं कि यह सब पश्चिम की देन है।

परन्तु इन धूर्त लोगों ने भारत के प्रचीन वैज्ञानिकों के बारे में अगर पढ़ लिया होता तो वे ऐसी बात ही नहीं करते, क्योंकि पश्चिम के वैज्ञानिकों को जब ठीक से चलना नहीं आता था तब भारत के वैज्ञानिकों ने गणित, चिकित्सा, खगोल विज्ञान, योग इत्यादि क्षेत्रों में बहुत ही उच्च कोटि का काम कर दिया था। परन्तु कम प्रचार- प्रसार के कारण उन्हें तब उतनी प्रसिद्धि नहीं मिल पाई, जितनी मिलनी चाहिए थी। हालांकि, बाद में इन भारतीय वैज्ञानिकों के बारें में जब पश्चिम के लोगों ने अध्ययन किया तो इनकी बात का लोहा माना। आज हम भारत के कुछ ऐसे वैज्ञानिकों के बारे में बात करने जा रहे हैं जिन्होंने पूरे विश्व को कई बड़े सिद्धांत और ज्ञान देकर मानव विकास के क्रम अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।

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बौधायन

भारत के प्रचीन वैज्ञानिकों की इस लिस्ट में सबसे पहला नाम आता है बौधायन का। ये प्राचीनकाल के एक गणितज्ञ थे और जिन्होंने पूरी दुनिया को पाई (π) का मान दिया था, जिसकी सहायता से किसी भी गोले का पूरा एरिया निकाला जा सकता है। इसके अलावा उन्होंने ‘सल्व सूत्र’ नाम से अपनी एक किताब भी लिखी थी, जो काफी हद तक ‘पाइथागोरस थ्योरम’ से मिलता है, जबकि इसकी खोज पाइथागोरस के जन्म से सदियों पहले हो चुकी थी। फिर भी इसका श्रेय पाइथागोरस को दिया गया।

बौधायन फोटो
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आर्यभट्ट

दूसरा नाम आता है आर्यभट्ट का। इनका नाम तो आपने सुना ही होगा परन्तु आपने सिर्फ जीरो की खोज के लिए सुना होगा लेकिन ऐसा है नहीं। आपको बता दें कि ‘आर्यभट्ट’ ने सिर्फ जीरो की ही खोज नहीं की थी बल्कि 23 वर्ष की आयु में उन्होंने ‘आर्यभट्टीय’ नाम की एक पुस्तक की रचना भी की थी, जिसमें गणित से लेकर खगोलशास्त्र के बारे में विस्तार से लिखा गया है। इसके अलावा पृथ्वी और अन्य ग्रहों के बारे में भी आर्यभट्ट ने पश्चिमी वैज्ञानिक गैलीलियो से बहुत पहले ही बताया था कि पृथ्वी एक जगह पर स्थिर नहीं है बल्कि अपने ध्रुव पर घूमती रहती है और सूर्य का चक्र लगाती है।

आर्यभट्ट, Ancient Indian Scientists
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ब्रह्मगुप्त

आर्यभट्ट के बाद गणित के क्षेत्र में आगमन होता है ब्रह्मगुप्त का। उन्होंने गुणा करने की पद्धति जिसे अंग्रजी में मल्टीप्लाई कहते हैं, उसके बारे में 7वीं शताब्दी में ही बता दिया था। इसके आलावा ‘ब्रह्मस्फुट सिद्धांत’ नाम से एक किताब भी लिखी थी, जिसमें खगोलशास्त्र में उपयोग किए जाने वाले यंत्रों के बारे में बताया गया है।

ब्रह्मगुप्त
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 Ancient Indian Scientists – भास्कराचार्य 

गणितज्ञों की इस लिस्ट में अब अगला नाम है भास्कराचार्य का। ये ब्रह्मगुप्त से 500 वर्षों बाद 12वीं शताब्दी में पैदा हुए थे और इनका जन्म कर्नाटक के बीजापुर में हुआ था। अपने समय के ये बहुत बड़े गणितज्ञ हुआ करते थे, इन्होंने ‘सिद्धांत शिरोमणि’ नाम की एक पुस्तक की रचना की थी, जिसे चार भागों में विभाजित किया गया है- लीलावती, गोलाध्याय, बीजगणित और ग्रहगणित। इन चारों भागों में अंकगणित से लेकर खगोलशास्त्र तक सभी चीजों के बारे में बताया गया है। इसके अलावा 19वीं शताब्दी में जेम्स टेलर ने इसका अंग्रजी में अनुवाद भी किया, जिसके बाद पश्चिम से लेकर अरब तक भास्कराचार्य की ख्याति फैल गई।

और पढ़ें: वैदिक गणित: गणित का वो तरीका जिसे पूरी तरह मिटा दिया गया और आपको पता भी नहीं चला

Bhaskracharya
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महर्षि कणाद

वैज्ञानिकों की लिस्ट में अगला नाम है महर्षि कणाद का। ये छठी शताब्दी ईसा पूर्व के ‘स्कूल ऑफ फिलॉस्फी’ से संबंध रखने वाले वैज्ञानिक थे और इनका असल नाम औलुक्य हुआ करता था। परन्तु बचपन से ही इन्हें छोटे-छोटे कणों में रुचि थी इसलिए इन्हें कणाद के नाम से जाना जाने लगा। महर्षि कणाद की उपलब्धि की बात की जाए तो इन्होंने डाल्टन की एटोमिक थ्योरी से बहुत पहले एक एटोमिक थ्योरी दी थी, जिसमें एटम यानी अणु के बारे में बताया गया था।

महर्षि कणाद
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वराह मिहिर

अब आते हैं वराह मिहिर पर (Ancient Indian Scientists)। आसान भाषा में कहा जाए तो ये एक ऑलराउंडर थे क्योंकि इन्होंने भूगर्भ विज्ञान, पारिस्थितिकी तंत्र (Ecology) और ज्योतिष विज्ञान के बारे में अपने समय में बहुत अच्छा काम किया है। पारिस्थितिकी तंत्र में खोज करने के दौरान इन्होंने 6 जानवरों और 30 ऐसे पौधों के बारे में बताया था, जिसके द्वारा धरती के नीचे के जलस्तर का पता लगाया जा सकता है। इसके अलावा वराहमिहिर ने बृहत्संहिता किताब की रचना भी थी, जिसमें उन्होंने भूकंप के बारे में पता लगाने वाली चीजों के बारे में लिखा है।

वराह मिहिर, Ancient Indian Scientists
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Ancient Indian Scientists – नागार्जुन

इसके बाद आते हैं नागार्जुन पर। इन्होंने रसायनशास्त्र में बड़े ही क्रांतिकारी काम किए हैं। जैसे कि इन्होंने किसी भी धातु को सोने में बदलने की तकनीक विकसित करने पर काम किया था। हालांकि, ये उसमें पूर्ण रूप से सफल नहीं हो सके परन्तु आज हम बाजार में जिस किसी भी धातु के ऊपर सोने की परत चढ़े हुए आभूषणों को देखते हैं, वो इसी का परिणाम हैं। इस प्रक्रिया को अंग्रेजी में अल्केमी के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा इन्होंने रसरत्नाकर नामक एक किताब भी लिखी है, जिसमें सोने, टिन और तांबे जैसी धातुओं के बारे में विस्तार से चर्चा की गई है।

नागार्जुन
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महर्षि चरक और सुश्रुत

जब हम मेडिकल साइंस की बात करते हैं तो इस क्षेत्र में महर्षि चरक का नाम सबसे पहले आता है। इनके बारे में बात की जाए तो ये अपने समय के जाने-माने आयुर्वेदाचार्य हुआ करते थे और कनिष्क के राजवैद्य हुआ करते थे। इन्होंने चरक संहिता की रचना की थी जिसमें आयुर्वेद के बारे में लिखा गया है।

Maharshi Charak
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चिकित्सा की क्षेत्र में दूसरा नाम आता है सुश्रुत का, ये अपने समय के एक बड़े सर्जन हुआ करते थे और आज की प्लास्टिक सर्जरी से मिलती हुई सर्जरी की बात इन्होंने ही की है। इसके अलावा इन्होंने सुश्रुत संहिता की रचना की है जिसमें 1000 बीमारियों और 700 मेडिसिनल पौधे के बारे में लिखा गया है।

सुश्रुत, Ancient Indian Scientists
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आइंस्टीन ने कही थी ये बात

निष्कर्ष के रूप में हम यहां पर अल्बर्ट आइंस्टीन को कोट करना चाहते हैं, जिन्होंने कहा था कि “We owe a lot to the ancient Indians, teaching us how to count. Without which most modern scientific discoveries would have been impossible.”  इसका अर्थ है कि हमें प्रचीन भारतीयों (Ancient Indian Scientists) को श्रेय देना चाहिए कि उन्होंने हमें गिनती गिनना सिखाया वरना आधुनिक युग में वैज्ञानिक खोज करना उसके बिना असंभव था। इसका सीधा सा अर्थ यह है कि जो लोग ये सोचते हैं कि भारत ने विज्ञान के क्षेत्र में कुछ नहीं किया है सब कुछ पश्चिम द्वारा ही किया गया है। उन्हें अल्बर्ट आइंस्टीन की इन अंग्रेजी की पंक्तियों को पढ़ना चाहिए।

और पढ़ें: Ancient Indian cities: भारत के वो प्राचीन शहर जो आज भी विश्व के नक्शे पर हीरे की तरह चमकते हैं

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पूर्वोत्तर भारत, जिसे कभी दिल्ली की नीतिगत दृष्टि में हाशिए का इलाका माना जाता था, आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दृष्टि में भारत के विकास...

वंदे मातरम्, विभाजन की मानसिकता और मोदी का राष्ट्रवादी दृष्टिकोण – इतिहास, संस्कृति और आत्मगौरव का विश्लेषण
इतिहास

वंदे मातरम्, विभाजन की मानसिकता और मोदी का राष्ट्रवादी दृष्टिकोण – इतिहास, संस्कृति और आत्मगौरव का विश्लेषण

10 November 2025

भारत के राजनीतिक और सांस्कृतिक इतिहास में वंदे मातरम् केवल एक गीत नहीं, बल्कि एक चेतना और राष्ट्र की आत्मा का उद्घोष रहा है। यह...

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