रचनात्मकता जीवन को जीवंत रखता है, भरपूर संभावना है कि यदि आपके जीवन में यह रचनात्मकता न हो तो जीवन नीरस हो जाए। ऐसी स्थिति में उल्लेख होता है संगीत और नृत्य का, सनातन धर्म और सनातन संस्कृति से अटूट और गहरा संबंध रखने वाली ये ऐसी कलाएं हैं जो मन को आनंदित कर देती हैं। आज के समय में तो गीत संगीत सुनना बहुत सरल है, अनेकों अनेक प्रकार की नृत्य कलाएं भी हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि संगीत और नृत्य कला की उत्पत्ति कब और कैसे हुई। टीएफआई प्रीमियम में आपका स्वागत है। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे संगीत एवं नृत्य देवी सरस्वती एवं गन्धर्वों की देन है।
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देवी सरस्वती और गंधर्व
देवी सरस्वती जिन्हें वैसे तो विद्या की देवी माना जाता है परंतु जितने भी लोग गायन या नाटक नृत्य करते हैं वो देवी सरस्वती को ही अपना ईष्ट मानते हैं। देवी सरस्वती कला की अधिष्ठात्री देवी हैं। लय, सुर, ताल जो कि संगीत से ही संबंधित हैं ये सभी देवी सरस्वती के कंठ से ही प्रष्फुटित हुए थे। संगीत, नृत्य और नाटक जैसी कलाओं का अभ्यास करने और प्रस्तुति देने में सबसे ऊपर गंधर्वों का नाम आता है। इन गंधर्वों से ऊपर देवी सरस्वती हैं जो कला और संगीत की देवी हैं।
गंधर्वों का पहले भी कई-कई बार उल्लेख होता रहा है। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि जिस तरह से देव, दानव, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, नाग ये सभी अलग भाग है उसी तरह एक प्रजाति गंधर्व की भी है जो अनेक कलाओं में निपुण थे। गंधर्वों के राजा थे चित्ररथ, कई अन्य गंधर्वों का भी उल्लेख होता है जो संगीतज्ञ हुए और कुछ बड़े योद्धा भी हुए।
महाभारत काल की बात करें तो गंधर्व चित्रांगद ने कुरूवंशी चित्रांगद को मारा था। महाभारत में एक और स्थान पर गंधर्वों का उल्लेख होता है जब पांडव वनवास को जा रहे होते हैं तब उन पर अक्रमण करने के लिए दुर्योधन समेत कौरव और कर्ण उनका पीछा करते हैं। इस समय उनका सामना एक गंधर्व से होता है जो आक्रमण से पहले ही दुर्योधन और उनके साथियों को बंदी बना लेते हैं। इसके बाद अर्जुन युधिष्ठिर की आज्ञा पर अपने भाइयों यानी कौरवों को छुड़ाते हैं। यहां कौरवों को बहुत लज्जित होना पड़ता है। इसी तरह कई-कई बार गंधर्वों का योद्धा के रूप में उल्लेख होता है परंतु अत्यधिक इन्हें संगीत, नृत्य, नाटक जैसी कलाओं के प्रदर्शन के लिए जाना जाता है। वो गंधर्व ही है जो इस कलाओं को आगे तक लेकर गए। आज के समय की बात करें तो शास्त्रीय नृत्य में मिलने वाली उच्चतम डिगरी गंधर्व ही है।
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देवी सरस्वती और गंधर्वों से जुड़ी घटना
देवी सरस्वती और गंधर्वों से जुड़ी एक घटना का उल्लेख भी होता है जिसे जानने के लिए पहले हमें देवताओं की व्यवस्था को जानना होगा। देवराज यानी देवताओं का राजा जो इंद्र हैं और जिनके पास वर्षा का विभाग है। उसी तरह जल, वायु, वर्षा, अग्नि ऐसे हर विभाग के अलग-अलग देवता हैं। यह ऐसे ही है जैसे कि देश को चलाने के लिए मंत्रिमंडल का गठन किया गया हो और उन मंत्रियों के अपने-अपने विभाग हों। मंत्रियों के स्थान पर देवताओं को समझ लीजिए और प्रधानमंत्री के स्थान पर देवराज इंद्र को रख लीजिए। इस पूरी व्यवस्था से संसार का संचालन हो रहा है, वैसे ही जैसे कोई देश एक व्यवस्था के तहत चलता है।
इन्हीं व्यवस्थाओं में एक विभाग मनोरंजन का भी है, गंधर्व और अप्सराएं नृत्य और संगीत किया करती हैं। जहां तक गंधर्व की बात है तो वो नृत्य संगीत में पूरी तरह पारंगत थे। वे सभी इंद्र की सभा में नृत्य, संगीत और नाटक का मंचन किया करते थे। जिसमें तीन गंधर्वों के नाम प्रमुख रूप से आते हैं तुंबरू निर्देशक की भूमिका में होते थे, हाहा जो कि नृत्य करते थे और हूहू जो कि संगीतज्ञ थे। जब भी इंद्र की सभा में कोई उत्सव होता था तब ये तीनों गंधर्व अन्य गंधर्वों के साथ नृत्य संगीत का प्रदर्शन करते थे और अप्सराएं भी नृत्य और संगीत किया करती थीं।
अब जब अधिक से अधिक समय देवराज इंद्र और सभी देव मंत्रणा, देवासुर संग्राम इत्यादि में बिताएंगे, तो एक समय ऐसा भी तो आएगा कि उन्हें भी तनिक विश्राम, आनंद या अवकाश की आवश्यकता होगी। ऐसे में यदा कदा इंद्र की सभा में उत्सव का भी आयोजन किया जाता है। जिसमें देवगण सोमरस का पान करते हैं और आनंदित हो जाते हैं।
जब गंधर्वों को अमृत पान की इच्छा हुई
देवासुर संग्राम के बाद हुआ यह कि गंधर्वों के मन में भी आया कि यदि देवता अमृत पान सकते हैं तो हम गंधर्व क्यों नहीं। जब देवराज इंद्र की सभा में उत्सव चल रहा था और सभी देवता सोमरस पीकर आनंदमग्न हो रहे थे तभी गंधर्वों ने अमृत पान की अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए योजनाबद्ध रूप से अमृत कलश को चुरा लिया। अब देवताओं को तो यह ज्ञात था कि देवासुर संग्राम के बाद असुरों में अब इतना साहस नहीं बचा है कि वो अमृत कलश चुरा लें। दूसरी ओर देवता गण सम्मानवश गंधर्वों से यह पूछने में संकोच कर रहे थे कि क्या आपने अमृत कलश की चोरी की है।
अमृत कलश को पुनः प्राप्त करने का संकट देवों के सामने था। ऐसे में सभी देवता माता सरस्वती के पास सहायता के लिए पहुंचे। ज्ञान और कला की देवी, वीणावादिनी माता सरस्वती ने देवताओं की सहायता की, उन्होंने योजनाबद्ध रूप से चित्ररथ के अति सुंदर चैत्ररथ उद्यान में वीणा बजाना प्रारंभ कर दिया। गंधर्व तो गंधर्व थे देवी सरस्वती की वीणा की मंत्रमुग्ध कर देने वाली ध्वनि को सुनकर वो नृत्य करने लगे। गंधर्व नृत्य में इतने मंत्रमुग्ध हो गए की उन्हीं किसी और बात का आभास ही नहीं रहा। यहीं अवसर पाकर देवी सरस्वती ने गंधर्वों के द्वारा चुराए अमृत कलश लेकर चली गयीं और इस तरह देवताओं ने पुनः अमृत कलश प्राप्त कर लिया।
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