जोसेफ गोएबेल्स ने कहा था, “किसी झूठ को निरंतर बताते जाइये और इतना दोहराइये कि लोग उसे सत्य मानने लगे” यह आज के परिप्रेक्ष्य में काफी सटीक बैठता है, विशेषकर वर्तमान भारत पर, क्योंकि यहाँ कई गल्प कथाएं हैं, जिन्हें हम लोग शाश्वत सत्य मान लेते हैं परन्तु आवश्यक नहीं कि जो दिखे, वही हो. कहते हैं कि गौतम बुद्ध, भगवान विष्णु के 9वें अवतार थे परन्तु क्या यही अंतिम सत्य है? इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे गौतम बुद्ध को भगवान विष्णु का अवतार माने जाने के पीछे कोई सच्चाई नहीं है, कोई सार्थक तर्क नहीं है और कुछ है ही नहीं, जो यह साबित करे कि वो भगवान विष्णु के अवतार थे!
और पढ़ें: पौराणिक कथाओं के नाम पर मनोहर कहानियां आपकी बुद्धि को भ्रष्ट बना रही हैं
गौतम बुद्ध पर सभी के विचार भिन्न हैं
गौतम बुद्ध पर अनेक लोगों के अनेक विचार हैं. कोई कहता है वो विचारक हैं, कोई कहता है वो ढोंगी हैं, कोई कहता है वो देवता हैं, कोई कहता है वो शैतान हैं. परन्तु वो जो भी हैं, इतना तो अवश्य है कि एक विशाल पंथ के संस्थापक हैं, जिसका आज भी विश्व के अनेक लोग अनुसरण करते हैं. परन्तु प्रश्न तो अब भी उठता है, गौतम बुद्ध, भगवान विष्णु के अवतार कैसे बने? इसका कोई प्रामाणिक स्त्रोत नहीं है, न ही वेद पुराणों में कोई स्पष्ट उल्लेख है. अब बुद्ध का शाब्दिक अर्थ है, जागृत होना, सतर्क होना तथा जितेन्द्रिय होना. वस्तुतः बुद्ध शब्द एक व्यक्तिविशेष का परिचायक न होकर स्थितिविशेष का परिचायक है. वर्तमान समय में बुद्ध शब्द का व्यापक प्रयोग राजकुमार सिद्धार्थ के परिव्राजक रूप के लिए किया जाता है. अब इस मानक पर सिद्धार्थ गौतम कैसे ठहरते हैं, इसका विश्लेषण करते हैं.
शाक्य गणराज्य की तत्कालीन राजधानी कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी में जन्मे सिद्धार्थ का शाब्दिक अर्थ था “वह जो सिद्धी प्राप्ति के लिए जन्मा हो.” जन्म समारोह के दौरान, साधु द्रष्टा आसित ने अपने पहाड़ के निवास से घोषणा की- बच्चा या तो एक महान राजा या एक महान पवित्र पथ प्रदर्शक बनेगा. अब राजा शुद्दोधन (सिद्धार्थ के पिताजी) ने पांचवें दिन एक नामकरण समारोह आयोजित किया और आठ ब्राह्मण विद्वानों को भविष्य पढ़ने के लिए आमंत्रित किया.
सभी ने एक सी दोहरी भविष्यवाणी करते हुए कहा कि बच्चा या तो एक महान राजा या एक महान पवित्र आदमी बनेगा. सिद्धार्थ का मन बचपन से ही करुणा और दया से भरा हुआ था. इसका परिचय उनके आरंभिक जीवन की अनेक घटनाओं से पता चलता है. घुड़दौड़ में जब घोड़े दौड़ते और उनके मुंह से झाग निकलने लगता तो सिद्धार्थ उन्हें थका जानकर वहीं रोक देते और जीती हुई बाजी हार जाते. खेल में भी सिद्धार्थ को खुद हार जाना पसंद था क्योंकि किसी को हराना और किसी का दुःखी होना उनसे नहीं देखा जाता था. सिद्धार्थ ने चचेरे भाई देवदत्त द्वारा तीर से घायल किए गए हंस की सहायता की और उसके प्राणों की रक्षा की थी.
नारायण के अवतारों के समक्ष नहीं टिकते सिद्धार्थ
परन्तु कोई भी नारायण अवतार इतना भीरु, इतना असहाय तो कतई नहीं था, जितने ये थे. निस्संदेह विनयी, दयालु और सौम्य होना हर सिद्ध पुरुष का गुण है परन्तु जब बात आती है सिद्धार्थ गौतम की तो वो भगवान विष्णु के पूर्व अवतारों के समक्ष कहीं नहीं आते. न वो मत्स्य और कुर्मावतार जितने उपयोगी थे, न वराह अवतार जितने पराक्रमी, न नरसिंह जितने शक्तिशाली, न वामन जितने बुद्धिमान, न परशुराम जैसे लक्ष्य के लिए सर्वस्व अर्पण करने वाले और न अयोध्यापति श्रीराम की भांति स्त्री के सम्मान हेतु समुद्र पर पत्थरों का पुल बांध एक अत्याचारी आक्रांता का विनाश करने वाले और अभी तो हमने योगी अवतार श्रीकृष्ण पर चर्चा भी नहीं की है.
इन सबके समक्ष गौतम बुद्ध ने क्या किया? अपने कर्त्तव्य का निर्वहन करने की जगह उन्होंने सब कुछ त्याग दिया. हालांकि, भगवान नारायण के ये भी अवतार है- कौमार सर्ग, हयशीर्ष (हयग्रीव), नारद, हंस, नर-नारायण, कपिल, दतात्रेय, सुयज्ञ, ऋषभदेव, पृथु, धन्वन्तरि, मोहिनी, व्यास एवं श्रीहरि गजेन्द्रमोक्ष दाता. ऐसे में भगवान बुद्ध और कुछ भी हो भगवान नारायण के अवतार हैं, ये मानना कठिन है, आगे आपकी इच्छा.
TFI का समर्थन करें:
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें.