घरेलू हिंसा का नाम आते ही सबसे पहले अधिकतर लोग महिलाओं के ऊपर होने वाले अत्याचारों के विषय में बात करने लग जाते हैं। लेकिन क्या घरेलू हिंसा का अर्थ केवल महिलाओं पर होने वाले अत्याचार से ही है? क्या केवल पुरुषों द्वारा ही महिलाओं पर अत्याचार किये जाते हैं? नहीं ऐसा बिलकुल नहीं है। घरेलू हिंसा का अर्थ है वैवाहिक दुर्व्यवहार, घरेलू मारपीट आदि अथवा विवाह जैसे बंधनों के बाद घरेलू स्तर पर एक साथी (पति/पत्नी) का अन्य साथी के साथ मारपीट अथवा दुर्व्यवहार करने से होता है, जोकि महिला या पुरुष दोनों पर ही लागू होता हैं।
परंतु दुर्भाग्य से हमारे देश में पुरुषों यानी पतियों के पास महिलाओं यानी अपनी पत्नी के विरुद्ध कार्रवाई करने के लिए घरेलू हिंसा के अधिनियम जैसा कोई भी कानून ही मौजूद नहीं है। इस कारण से हमेशा ही पुरुषों पर होने वाले अत्याचारों को अनदेखा कर दिया जाता है।
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पत्नी के खिलाफ दर्ज कराया मामला
अभी हाल ही में एक ऐसा मामला सामने आया है। इसी साल अक्टूबर में एक पति ने अपनी पत्नी के खिलाफ घरेलू हिंसा का मामला दर्ज करवाया था जिसके बाद दिल्ली की एक निचली अदालत ने उस पर सुनवाई की और पत्नी को इस मामले में एक समन जारी किया था। अब उसके बाद पत्नी इस दलील के साथ दिल्ली उच्च न्यायालय की चौखट पर पहुंच गयी है कि भारत का घरेलू हिंसा कानून केवल महिलाओं के मामले पर ही लागू होता है।
क्या ये तर्क देना ठीक है? ऐसे तो यह घरेलू हिंसा का कानून सिर्फ महिलाओं तक सीमित रह गया है। हालांकि अब पुरुषों को भी विवाह में अपने साथ होने वाले अत्याचारों को लेकर कानूनी अधिकार मिलने की उम्मीद जगी है। क्योंकि खबरों की मानें तो अब दिल्ली हाईकोर्ट इस पर कई संभावनाएं तलाश रहा है। जिसके बाद संभावनाएं बन रही है कि दिल्ली हाईकोर्ट पतियों को भी पत्नी के खिलाफ घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत अधिकार दे सकती है? अगर ऐसा होता है तो पहली बार पीड़ित पुरुषों को आशा की एक नयी किरण मिल जाएगी।
ऊपर बताए गए मामले की बात करें तो दोनों पक्षों ने एक दूसरे पर दुर्व्यवहार करने का गंभीर आरोप लगाया है। वहीं इस मामले ने सबके सामने प्रश्न खड़े कर दिए हैं कि क्या भारत के घरेलू हिंसा कानून के अंतर्गत किसी महिला के खिलाफ किसी भी पुरुष द्वारा मामला दर्ज किया जा सकता है ? निचली अदालत की मानें तो ऐसा हो सकता है।
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लेकिन वहीं पत्नी की वकील आशिमा मंडला ने हाईकोर्ट में अपनी दायर की गयी याचिका में ये कहा है कि ऐसा संभव नहीं है। दलील के अनुसार घरेलू हिंसा अधिनियम धारा 2(A) एक महिला के रूप में यह पीड़ित को परिभाषित करती है और इस तरह की कार्यवाही आरंभ करने के लिए पुरुष व्यक्ति के लिए कोई भी प्रावधान मौजूद नहीं है।
ऐसा दावा किया जा रहा है कि पति ने मीडिया को समन के बारे में सूचना दी है। इस याचिका के अनुसार, पति ने कर्नाटक के उच्च न्यायालय के एक फैसले पर अपना भरोसा जताया था कि पुरुष द्वारा भी घरेलू हिंसा की कार्रवाई को शुरू किया जा सकता है।
पुरुष भी होते हैं पीड़ित
वैसे देखा जाये तो ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब किसी पुरुष द्वारा महिला यानी अपनी पत्नी पर घरेलू हिंसा का आरोप लगाया हो। इससे पहले भी कई ऐसे मामले आ चुके है परंतु इस पर कभी किसी का भी ध्यान नहीं जाता और कोई इन मामलों को गंभीरता ने नहीं लेता। हाल ही में कर्नाटक के एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी से सहायता और सुरक्षा की मांग करते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय में शिकायत दर्ज़ की थी। इस शिकायत में व्यक्ति का आरोप था कि उसकी पत्नी उसे ‘नियमित रूप से पीटती है’। साथ ही उसने ये भी कहा है कि उसे पत्नी जान से मारने की धमकी भी देती है। व्यक्ति के द्वारा ट्विटर हैंडल से एक तस्वीर भी शेयर की गयी थी जिसमें उसके खून निकलता हुआ नज़र आ रहा था।
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https://twitter.com/yaadac/status/1586333846244507648
महिलाओं के साथ होने वाली घरेलू हिंसा के बहुत से आंकड़े अक्सर ही सामने आते रहते हैं। लेकिन भारत में ऐसा कोई भी सरकारी आकंड़ा नहीं मिला है जिससे घरेलू हिंसा में शिकार पुरुषों की जानकारी मिल सके। वर्ष 2020 में लॉकडाउन के समय सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन की ओर से एक टेलीफोनिक सर्वे करवाया गया था, जहां इंदौर की पौरुष संस्था और राष्ट्रीय पुरुष आयोग समन्वय समिति दिल्ली को पुरुष हेल्पलाइन पर कई सारी शिकायतें मिली थी। जिसमें पता चला था कि लॉकडाउन के दिनों में पत्नियों के द्वारा अपने पतियों को प्रताड़ित करने के मामलों में 36 फीसदी तक वृद्धि हुई थीं।
हर थोड़े समय में ऐसे घरेलू हिंसा के मामले हमारे सामने आते रहते हैं जिसमें पीड़ित एक पुरुष होता है, लेकिन दुर्भाग्य से कोई इस पर ध्यान ही नहीं देता। उदाहरण के तौर पर वर्ष 2018 में कानपुर के एक पुलिस अधीक्षक (पूर्वी) के पद पर तैनात रहे भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी सुरेंद्र कुमार दास की जहरीला पदार्थ खाने के कारण मौत हो गई थीं। इस मामले की जांच की गयी तो उसमें पता चला कि घरेलू कलह की वजह से आत्महत्या की बात निकलकर सामने आयी थीं।
दिल्ली हाईकोर्ट लेगा कोई फैसला?
भारत में अधिकतर घरेलू हिंसा के मामले में महिलाओं को ही पीड़ित मान लिया जाता है जिसके आधार पर हमारे देश में कई कानून भी बना दिए जाते है। कई बार घरेलू हिंसा के कानून के गलत फायदा कई ऐसी घोखेबाज़ महिलाएं भी उठा लेती हैं, जिसका खामियाजा पुरुषों को भुगतना पड़ता है क्योंकि वह एक धोखेबाज़ महिला से पीड़ित होने बाद भी उन पर केस दर्ज़ नहीं कर सकते है, जोकि सरासर गलत है। हम यहां यह नहीं कह रहे कि महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार नहीं होती। अवश्य अभी भी हमारे देश में कई सारी महिलाएं इसका दंश झेल रही होगीं। परंतु हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। किसी मामले में महिला पीड़ित है, तो किसी में पुरुष भी पीड़ित हो सकते हैं लेकिन उनकी आवाज समाज और कानून दोनों को ही सुनाई नहीं पड़ती है।
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लेकिन अब समय आ गया है कि महिलाओं की तरह पुरुषों को भी अधिकार मिलें कि यदि वे पीड़ित है, तो इसके खिलाफ एक्शन ले सकें। हालांकि अब तक केवल ‘महिलाओं तक सीमित’ घरेलू हिंसा के कानून पर दिल्ली हाईकोर्ट में बहस होने वाली है, जिससे संभावनाएं हैं कि निर्णय पुरुषों के पक्ष में आ सकता है और उन्हें कोई न कोई अधिकार तो हाईकोर्ट के द्वारा दिया ही जा सकता हैं।
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