स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट: BBC की वो रिपोर्ट आप भूल तो नहीं गए जिसमें करोड़ों भारतीयों के कोविड से ग्रसित होने और मरने की भविष्यवाणी की गई थी? स्मरण हैं वो बड़ी-बड़ी संस्थाओं की रिपोर्ट्स, जहाँ भारत द्वारा सहायता से लेकर भारत की वैक्सीन तक का उपहास उड़ाया गया था? अब वास्तविक सत्य सामने आ चुका है और लगता नहीं है कि हमारे कई बुद्धिजीवियों में इसे पचाने की शक्ति होगी।
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट
हाल ही में एक रिपोर्ट में ये प्रमाणित हुआ है कि कैसे कोरोना काल के दौरान सफल टीकाकरण अभियान की वजह से भारत में 34 लाख से अधिक लोगों का जीवन बचाने में सफलता मिली और कैसे टीकाकरण और समय-समय पर उठाए गए अन्य कदमों की वजह से देश को 18.3 अरब डालर के नुकसान से भी बचाया जा सका।
असल में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट ‘हीलिंग द इकोनमी: एस्टीमेटिंग द इकोनामिक इंपैक्ट ऑफ़ इंडियाज वैक्सीनेशन एंड रिलेटेड मेजर्स‘ में यह तथ्य उजागर किया गया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने इस रिपोर्ट को जारी करते हुए बताया कि कैसे स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट में पहले लॉकडाउन से लेकर टीकाकरण तक और इसके बीच कृषि, एमएसएमई, गरीब, मजदूर व अन्य वर्गों के लिए समय-समय पर जारी पैकेज के प्रभावों का विस्तृत विश्लेषण किया गया है।
Take a look at how various initiatives of PM @NarendraModi Ji's Govt during COVID-19 helped greatly in saving both lives & livelihoods.
According to a @Stanford report, COVID-19 vaccination prevented the loss of Rs 1.29 lakh crore in 2021 and saved lakhs of precious lives. pic.twitter.com/vELrhe6x6V
— Dr Mansukh Mandaviya (मोदी का परिवार) (@mansukhmandviya) February 24, 2023
इसके अतिरिक्त भारत में अचानक लागू किए गए कड़े लॉकडाउन के ऊपर भले ही विपक्षी दल प्रश्न उठाते रहे हों परंतु स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के अनुसार अकेले इसकी वजह से मार्च और अप्रैल के बीच एक लाख से अधिक जीवन बचाने में सफलता मिली। इसकी वजह से भारत में कोरोना की पहली लहर 175 दिन में पीक पर पहुंची थी, जबकि रूस, कनाडा, फ्रांस, इटली और जर्मनी जैसे देशों में 50 दिन के भीतर पीक आ गया था।
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रिपोर्ट के अनुसार, सफल टीकाकरण अभियान सिर्फ जिंदगियां बचाने में ही सफल नहीं रहा, बल्कि इससे भारत 18.3 अरब डॉलर के नुकसान से भी बच गया। यदि टीकाकरण अभियान सफलतापूर्वक नहीं चलता तो भारत को यह नुकसान उठाना पड़ता। रिपोर्ट के अनुसार, टीकाकरण अभियान पर होने वाले खर्च को घटा दें तो भी भारत को इस अभियान से 15.42 अरब डॉलर का शुद्ध लाभ हुआ।
इसी रिपोर्ट में कोरोना काल में मोदी सरकार की हर योजना के आर्थिक प्रभावों का आंकलन किया गया है। मनसुख मांडविया के अनुसार, कोरोना के दौरान समग्र सरकार और समग्र जनता के अप्रोच के साथ काम किया गया। समग्र अप्रोच की वजह से टेस्ट, ट्रैक, ट्रीट, टीकाकरण व कोरोना उचित व्यवहार का पालन सफलतापूर्वक किया गया।
भारत विरोधी के मुंह पर तमाचा
ऐसे में ये रिपोर्ट उन लोगों के मुँह पर तमाचे के समान है, जो कोविड के प्रारंभ से ही भारत का अहित चाहते थे। BBC जैसी संस्थाओं ने भारत के वैक्सीन पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया था। बीबीसी के लेख में कहा गया कि प्रभावकारी डेटा की अनुपस्थिति से उत्पन्न होने वाली तीव्र चिंताओं के साथ-साथ पारदर्शिता की कमी है, जो “समाधान से अधिक प्रश्न उठाएगी।“
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आपको जानकर आश्चर्य होगा कि विश्व की तमाम कोरोना वैक्सीन को एक दो ट्रायल के बाद इजाजत दे दी गई, लेकिन कोवैक्सीन को यह स्वीकृति मिलने में 4 महीनें से अधिक का समय लगा, क्योंकि देश के गए गुजरे नेताओं की लफ्फाजियों के साथ वामपंथी मीडिया की ओर से इसे लेकर काफी भ्रामक खबरें दिखाई गई थी।
इतना ही नहीं, जब कोविड से निपटने में कारगर Hydroxychloroquine (हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वाइन) को भारत ने बड़ी मात्रा में निर्यात करने का निर्णय किया, तो उसका भी BBC समेत कई संस्थानों ने उपहास उड़ाया और इसे रोकने का प्रयास भी किया।
Lancet medical journal का हवाला देते हुए इस दवा के बारे में चेतावनी लिखी गयी कि अगर खुराक को सावधानी से नियंत्रित नहीं किया गया तो हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वाइन के खतरनाक दुष्प्रभाव हो सकते हैं।
कोवैक्सीन के विरुद्ध षड्यंत्र
शायद इसीलिए 2021 में टाइम्स नाउ शिखर सम्मेलन के आयोजन में भारत बायोटेक के कृष्ण ईला ने बताया कि कैसे भारतीय एवं विदेशी मीडिया की मिलीभगत की वजह से विश्व स्वास्थ्य संगठन कोवैक्सीन को प्रमाण नहीं दे रहा था।
गौरतलब है कि कोवैक्सीन के सफल होने से सबसे ज्यादा नुकसान अन्य मेडिकल कॉरपोरेट और कांग्रेसी नेताओं को था। मोदी सरकार के शासनकाल में स्वदेशी वैक्सीन को विश्व स्वास्थ्य संगठन से मान्यता ना मिले, इसे लेकर कथित तौर पर कांग्रेसियों ने कई पैंतरे अपनाए!
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दूसरी ओर मेडिकल कॉरपोरेट ने पैसों के जरिये कई मीडिया समूहों से कोवैक्सीन को लेकर भ्रामक प्रचार प्रसार कराया, ताकि कोवैक्सीन की अस्वीकृति और लोकप्रियता कम हो। इसके अलावा भारतीय मीडिया समूहों का वामपंथी विचारधारा के प्रति झुकाव सर्वविदित है। इन्होंने अपने नैरेटिव के कारण भारतीय उपलब्धि को ही निशाने पर ले लिया।
परंतु इन सब दावों को धता बताते हुए प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत दुनिया के विकसित देशों के साथ ही न सिर्फ देश में कोरोना का टीका विकसित करने में सफल रहा, बल्कि उसका बड़े पैमाने पर उत्पादन कर 220 करोड़ से अधिक डोज लगाने में सफल रहा।
उन्होंने कहा कि 97 प्रतिशत एक डोज और 90 प्रतिशत से अधिक लोगों को दोनों डोज के साथ ही लगभग 30 प्रतिशत लोगों को सतर्कता डोज के साथ भारत का टीकाकरण अभियान दुनिया में सबसे बड़ा और सबसे सफल कहा जा सकता है।
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