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Kanpur Holi: जब अंग्रेजों ने होली पर लगाया प्रतिबंध तो पूरे कानपुर ने कर दिया विद्रोह, झुक गए अंग्रेज

हटिया बाजार में उस दिन जो हुआ वो इतिहास बन गया।

Animesh Pandey द्वारा Animesh Pandey
2 March 2023
in इतिहास
Reviving the Spirit of Holi/Gangamela: How Kanpur Fought Against British Oppression and Won

Source: iChowk

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Kanpur Holi: 1942, द्वितीय विश्व युद्ध चरमोत्कर्ष पर था। जहां एक ओर अंग्रेज़ हिटलर को परास्त करने हेतु अमेरिकियों के साथ जोड़-तोड़ कर रहे थे, तो वहीं जापानी दूसरी ओर से एशिया के कोने-कोने पर अपना राज स्थापित करना चाहते थे, और ब्रिटेन के उपनिवेश होने के कारण भारतीय गेहूं में घुन की भांति पिस रहे थे। परंतु इसी समय कानपुर में एक ऐसी घटना हुई, जिसने न केवल ब्रिटिश साम्राज्य की जड़ें हिला दी, अपितु ये भी सिद्ध किया कि परतंत्र रहते हुए भी भारतीय कभी भी अपनी संस्कृति बचाने से पीछे नहीं हटे।

इस लेख में उस घटना के बारे में पढ़िए, जब ब्रिटिश प्रशासन ने Holi को प्रतिबंधित किया था और Kanpur के लोगों ने इसका करारा जवाब दिया था।

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Kanpur Holi: हटिया बाजार की घटना

किसी ने एक फिल्म में खूब कहा था, “ये कानपुर है भैया! रिवोल्यूश्नरी कैपिटल ऑफ इंडिया! यहाँ क्रांतिकारी पुलिस के साथ छुपा-छुपी खेलते हैं”। ये नगर अंग्रेज़ों के लिए जितना महत्वपूर्ण था, उतना ही स्वतंत्रता सेनानियों, विशेषकर क्रांतिकारियों के लिए। यहीं पर भगत सिंह से लेकर चंद्रशेखर आज़ाद ने अपने गुणों को निखारा था और यहीं पर हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की सबसे महत्वपूर्ण बैठकें होती थी।

1942 में Kanpur के हटिया में धूम-धाम से Holi मनाई जा रही थी। ये जगह लोहा गल्ला के व्यापार एवं बर्तनों के विक्रय के लिए बहुत प्रसिद्ध है। यही पर हटिया बाजार रज्जन बाबू पार्क में नौजवान क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी हुकूमत की परवाह किए बगैर पहले तिरंगा फहराया फिर जमकर होली खेली।

जल्द ही इस बात की खबर ब्रिटिश हुक्मरानों को लग गई। एक दर्जन से भी ज्यादा अंग्रेज सिपाही घोड़े पर सवार होकर आ गए और झंडा उतारने लगे, यह देखकर होली खेलकर युवक भड़क गए और उन्होंने अंग्रेजी जवानों को कूट दिया, फिर क्या था, भारतीयों के इस प्रत्युत्तर से ब्रिटिश प्रशासन क्रोध से तमतमाने लगा।

और पढ़ें: भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह की वो कहानी जो दरबारी इतिहासकारों ने आपको कभी नहीं बताई

उन्होंने होली पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगा दिया। इसके अतिरिक्त गुलाब चन्द्र सेठ, बुद्धूलाल मेहरोत्रा, नवीन शर्मा, विश्वनाथ टंडन, हमीद खान, गिरिधर शर्मा समेत लगभग पैंतालीस लोगों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया।

परंतु यहीं पर ब्रिटिश प्रशासन भारी भूल कर बैठा। होली केवल एक त्योहार नहीं, अपितु सांस्कृतिक एकता का प्रतीक भी है। जिसे पूरा देश मनाता है। ऐसे में स्वतंत्रता सेनानियों को गिरफ्तार करना अंग्रेजी हुक्मरानों के लिए गले की हड्डी बन गई। इस गिरफ्तारी के विरोध में कानपुर का पूरा बाजार बंद हो गया।

कानपुर के लोगों ने छेड़ दिया आंदोलन

मजदूर, किसान, व्यापारी, साहित्यकार समेत सभी ने मिलकर एक तरह से ब्रिटिश प्रशासन के विरुद्ध आंदोलन छेड़ दिया। आंदोलन के समर्थन में समूचा कानपुर शहर और आसपास के ग्रामीण इलाकों का बाजार भी बंद हो गया।

मजदूरों ने फैक्ट्री में काम करने से मना कर दिया। ट्रांस्पोटरों ने चक्का जाम कर सड़कों पर ट्रकों को खड़ा कर दिया। सरकारी कर्मचारी हड़ताल पर चले गए। हटिया बाजार में मौजूद उस मोहल्ले के सौ से ज्यादा घरों में चूल्हा जलना बंद हो गया। मोहल्ले की महिलाएं और छोटे-छोटे बच्चे उसी पार्क में धरने पर बैठ गए।

Holi मनाना अब Kanpur में मानो प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुका था। पूरे शहर की जनता ने अपने चेहरे से रंग नहीं उतारे, यूं ही लोग घूमते रहे। शहर के लोग दिनभर हटिया बाजार में ही इक्कठा हो जाते और पांच बजे के बाद अपने घरों में वापस चले जाते। इस आंदोलन की आंच ऐसी थी कि दो दिन में ही दिल्ली तक पहुंच गई और नेहरू और गांधी ने भी आंदोलन का समर्थन कर दिया।

मिलें और कारोबार बंद होने से ब्रिटिश प्रशासन परेशान हो गया। स्थिति यह हो गई कि स्वयं ब्रिटिश प्रशासन के उच्चाधिकारियों को मध्यस्थता के लिए कानपुर आना पड़ा। 1857 में इसी कानपुर ने अंग्रेजों की दुर्गति कर दी थी, अब फिर वही दोहराया जाने वाले था।

और पढ़ें: गांधी इरविन समझौता: जब महात्मा गांधी के एक निर्णय के विरुद्ध पूरा देश हो गया

ब्रिटिश प्रशासन के उच्चाधिकारियों ने शहर के कुछ प्रतिष्ठित लोगों को बात करने के लिए बुलाया। पहले जब लोगों ने उसे हटिया बाज़ार के पार्क में आकर बात करने को कहा तो उसने मना कर दिया।

लेकिन फिर आंदोलन तीव्र होने की संभावना देखते हुए वो अंग्रेजी अफसर हटिया बाज़ार के उस पार्क में आ गया, जहां से सब प्रारंभ हुआ था। करीब चार घंटे तक बातचीत चली और उसके बाद सभी क्रांतिकारियों को होली के पांचवे दिन अनुराधा नक्षत्र के दिन रिहा कर दिया गया। ब्रिटिश प्रशासन को अपनी पराजय स्वीकारनी पड़ी।

परंतु बात यहीं तक सीमित नहीं थी। कहते हैं कि अनुराधा नक्षत्र के दिन जब नौजवानों को जेल से रिहा किया जा रहा था। पूरा शहर उनको लेने के लिए जेल के बाहर इकठ्ठा हो गया थे। जेल से रिहा हुए क्रांतिवीरों के चेहरे पर रंग लगे हुए थे।

जेल से रिहा होने के बाद जुलुस पूरा शहर घूमते हुए हटिया बाज़ार में आकर खत्म हुआ। उसके बाद क्रांतिवीरों की रिहाई को लेकर यहां जमकर होली खेली गई। तभी से यह रीति वर्षों से एक उत्सव के रूप में गंगा किनारे मनाई जाती है।

अब गंगा मेला के दिन यहां भीषण होली होती है। ठेले पर यहां होली का जुलुस निकाला जाता है। ये जुलुस हटिया बाज़ार से शुरू होकर नयागंज, चौक सर्राफा, सहित कानपुर के करीब एक दर्जन पुराने मोहल्ले में धूमता हुआ दोपहर दो बजे तक हटिया के रज्जन बाबू पार्क में आकर खत्म किया जाता है। इसके बाद शाम को सरसैया घाट पर गंगा मेला का आयोजन किया जाता है। जहां Kanpur भर के लोग इकठ्ठा होते है और एक दूसरे को Holi की बधाई।

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