अमित शाह के साथ एक वार्तालाप और पहलवान आंदोलन का सूपड़ा साफ

खान मार्केट पुनः शोकाकुल!

Wrestlers Amit Shah meeting: जॉर्ज बर्नार्ड शॉ ने एक बार कहा था, “कीचड़ में सूअरों के साथ कभी कुश्ती न करें”। ऐसा लगता है कि राजनीतिक अवसरवादियों द्वारा अपने लाभ के लिए दुरुपयोग किए जा रहे इन विरोध प्रदर्शनों से निपटने के संदर्भ में अमित शाह और उनके साथियों ने इस कथन को गंभीरता से लिया है।

इस लेख में पढियेकि कैसे एक ही बैठक (Wrestlers Amit Shah meeting) ने पहलवानों के विरोध को क्षीण कर दिया है, अराजकतावादियों को ‘पीड़ित एथलीटों’ की आड़ में उपद्रव मचाने के उद्देश्य से नकार दिया है।

पहलवानों ने पुनः जॉइन की नौकरी

एक अप्रत्याशित निर्णय में, गृह मंत्री अमित शाह के साथ एक बैठक ने पहलवानों के विरोध प्रदर्शन को काफी हद तक बदल दिया है जो धीरे-धीरे उग्र हो रहा था। हालांकि विरोध की गूंज अब भी सुनाई दे रही है, लेकिन तीव्रता और दृढ़ता स्पष्ट रूप से कम हो गई है। इस अप्रत्याशित बदलाव ने हमें जॉर्ज बर्नार्ड शॉ के शब्दों के ज्ञान पर विचार करने के लिए मजबूर कर दिया है: “कीचड़ में सूअरों के साथ कभी कुश्ती न करें”। ऐसा लगता है मानो अमित शाह और उनकी टीम ने इन विरोधों से निपटते समय इन शब्दों को हृदय से लगा लिया हो।

और पढ़ें: Wrestlers Protest: मोदी सरकार ने टूलकिट गैंग के साथ जो किया वह बहुत पहले होना चाहिए था

कुछ दिन पहले डब्ल्यूएफआई के पूर्व प्रमुख बृजभूषण शरण सिंह की गिरफ्तारी की मांग को लेकर धरना-प्रदर्शन कर रहे पहलवान अमित शाह से मिलने को राजी हो गए थे। यह बैठक (Wrestlers Amit Shah meeting) अब विरोध गाथा में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में सामने आई है। इस वार्तालाप के बाद, सभी तीन प्रमुख पहलवानों-साक्षी मलिक, बजरंग पुनिया और विनेश फोगट- ने राजपत्रित रेलवे अधिकारियों के रूप में अपने पदों पर फिर से शामिल होने का आश्चर्यजनक रूप से फैसला किया है।

यद्यपि पहलवानों ने आधिकारिक तौर पर अपना विरोध वापस नहीं लिया है, उन्होंने अपनी नौकरी फिर से शुरू करने की बात स्वीकार की है। इनके टोन का परिवर्तन भी उल्लेखनीय है, पहले मरने मारने के आह्वान की तुलना में अब ये “सत्याग्रह” पर उतर आए हैं। इसी भांति आईओए अध्यक्ष और पूर्व एथलीट पीटी उषा ने भी जल्द से जल्द डब्ल्यूएफआई चुनाव कराने का आश्वासन दिया है।

दिशाहीन विपक्ष

ये परिवर्तन विपक्ष के लिए एक बड़ा झटका है, जिसने इन विरोध प्रदर्शनों में एक मजबूत मोर्चा पाया था। लेकिन अफ़सोस, ऐसा लगता है जैसे “माटी के लाल” समझ गए हैं कि राजनीति उनका अखाड़ा नहीं है! यदि पहलवान अपने विरोध के लिए प्रतिबद्ध होते, तो वे हरिद्वार में अपने पदक फेंकने के तमाशे में शामिल नहीं होते, और न ही टिकैत बंधुओं को सौंप देते। इस हरकत ने ही कई लोगों को विरोध की मंशा और दिशा पर प्रश्न उठाने पे विवश किया है।

और पढ़ें: Indian wrestlers’ protest: आपने साक्षी मलिक के आँसू देखे, पीटी ऊषा की बेइज्जती नहीं!

ये विरोध प्रदर्शन अब कितना निरर्थक हो गया है, ये इसी बात से पता चलता है कि विरोधी पहलवानों के मुख्य समर्थकों में से एक, दीपेंद्र हुड्डा, जो कथित तौर पर डब्ल्यूएफआई में अपनी किस्मत आजमाने का प्रयास कर रहे हैं, राहुल गांधी के साथ अमेरिका निकल गए हैं। आंदोलन के एक महत्वपूर्ण समर्थक हुड्डा की अनुपस्थिति, इस विरोध प्रदर्शन पर ही प्रश्नचिन्ह लगा देती है। अगर ये पहलवानों के अधिकार के लिए नहीं लड़ रहे थे, तो फिर लड़ किसलिए रहे थे।

अमित शाह के साथ बैठक (Wrestlers Amit Shah meeting) के बाद विरोध प्रदर्शनों का पूरा प्रकरण विपक्षी नेताओं, विशेषकर आन्दोलनजीवियों के लिए हताशा का स्रोत बन गया है। इस बेतुके राजनीतिकरण ने उन्हें 2024 के आगामी चुनावों के लिए प्रधान मंत्री मोदी और उनके प्रशासन के खिलाफ किसी भी ठोस एजेंडे से वंचित कर दिया है। ऐसी दुनिया में जहां सब कुछ राजनीतिक है, राजनीतिक रूप से प्रेरित एजेंडे से वास्तविक कारणों को पहचानना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

TFI का समर्थन करें:

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें।

Exit mobile version