जब कोविड की महामारी ने सम्पूर्ण संसार पर ब्रेक लगाया, हमारे टीवी स्क्रीन ही हमारा सहारा बने! आपको अवश्य स्मरण होंगे वो क्षण, जब रामायण को पुनः प्रसारित किया गया. इसी बीच कुछ कमर्शियल्स ने मेरा ध्यान आकर्षित किया: धूपबत्तियों वाले! इनके प्रभाव ने हमें सोचने पर विवश किया: ऐसे पारम्परिक उत्पादों का मार्केट कैसा होगा, कितना बड़ा होगा? जो परिणाम हमारे समक्ष आये, वे न केवल अविश्वसनीय थे, अपितु अकल्पनीय भी!
अनिश्चितता से भरे समय में धूपबत्ती उद्योग एक नायक की भांति उभरकर सामने आया. कोविड 19 के समक्ष इसका प्रगति रथ टस से मस नहीं हुआ. पिछले दो वर्ष में इस उद्योग ने सभी अपेक्षाओं को धता बताते हुए 10 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की, और अगले चार वर्षों के लिए इसकी संभावित Compound Annual Growth Rate 8.8 प्रतिशत तक अनुमानित है!
ये कथा केवल वृद्धि तक सीमित नहीं है, इसका वास्तविक मूल्य आपको तब ज्ञात होगा जब धूपबत्ती उद्योग के अति प्रतिस्पर्धी [ultra-competitive] मार्केट में प्रवेश करेंगे. छोटी हो या बड़ी, सभी अपने सुगन्धित उत्पादों के साथ इस क्षेत्र में अपना वर्चस्व जमाने को तत्पर है! आइये जानते हैं कि कैसे एक प्राचीन परंपरा ने वर्तमान युग की सभी चुनौतियों का न केवल सामना किया, अपितु पहले से अधिक सशक्त और प्रभावशाली भी बना!
कैसे कोविड में भी विद्यमान रही धूपबत्ती की सुगंध!
धूपबत्ती उद्योग, जिसमें धूप एवं अगरबत्ती दोनों सम्मिलित है, भारत जैसे सांस्कृतिक रूप से समृद्ध राष्ट्र में अति महत्वपूर्ण है. धार्मिक हो, आध्यात्मिक या केवल सुगंध के उद्देश्य के लिए ही सही, इन सुगन्धित उत्पादों का विशाल एवं प्रतिस्पर्धी मार्केट उत्पन्न हुआ है!
केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 2021 के वित्तीय सत्र के अंत तक धूपबत्ती उद्योग के एक्सपोर्ट्स में 15 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई थी. इस उद्योग ने निरंतर वृद्धि के संकेत दिए हैं, और 2023 से 2028 तक इसमें 8.8 प्रतिशत के दर से Compound Annual Growth Rate दर्ज होने की सम्भावना स्पष्ट दिखती है!
धूपबत्ती उद्योग के परिप्रेक्ष्य में भारत की आर्थिक वैल्यू उल्लेखनीय है. इसका मूल्य लगभग 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर है, जिसमें केवल एक्सपोर्ट्स से 1000 करोड़ रुपये की कमाई होती है! चीन और वियतनाम से कड़ी प्रतिस्पर्धा के बाद भी भारत के घरेलू मार्केट में उच्च क्वालिटी के घरेलू उत्पादों की भरमार रहती है, जिससे हमें ज्ञात होता है कि जनता का इन उत्पादों में कितना गहरा विश्वास है!
वाणिज्य मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों पर एक दृष्टि डालने से भारत के धूपबत्ती उद्योग की क्षमता, विशेषकर इसके एक्सपोर्ट्स का प्रभाव हमें पता चलता है. 2012 से 2016 में भारत ने 498.02 million अमेरिकी डॉलर मूल्य की धूपबत्ती एवं अगरबत्ती निर्यात की! इस गतिविधि में निरंतर वृद्धि भी देखने को मिली, २०१२ के वित्तीय वर्ष 89.64 million अमेरिकी डॉलर के अनुपात में बढ़कर 2016 में 100.02 million अमेरिकी डॉलर हुआ. वित्तीय वर्ष 2016 में यूएसए भारतीय धूपबत्ती एवं अगरबत्तियों का प्रमुख आयातक सिद्ध हुआ, जिनका इम्पोर्ट वैल्यू 11.3 million अमेरिकी डॉलर था. इनके बाद नंबर आता है संयुक्त अरब अमीरात [UAE] का, जिनकी इम्पोर्ट वैल्यू 6.23 million अमेरिकी डॉलर, और फिर आता है नंबर नाइजीरिया का, जिनकी इम्पोर्ट वैल्यू 5.85 million अमेरिकी डॉलर है!
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वित्तीय सत्र 2016-17 में भारत के धूपबत्ती एक्सपोर्ट्स का मूल्य 400 crores के आसपास था, जो वैश्विक धूपबत्ती उद्योग के 10 प्रतिशत के आसपास था. इसी बीच आगमन हुआ कोविड 19 जैसी विकट महामारी का, जिसने अच्छे से अच्छे उद्योग की हवा निकाल दी! परन्तु इस वज्रपात के समक्ष धूपबत्ती उद्योग डटकर खड़ा रहा. इसका प्रभाव इसी बात से पता चलता है कि पैंडेमिक से प्रभावित होने के बाद भी दो वर्षों तक इस उद्योग में १० प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई!
Mysore Deep Perfumery House [जेड ब्लैक के संचालक] के डायरेक्टर अंकित अग्रवाल के अनुसार, धूपबत्ती उद्योग ने पैंडेमिक के कारण उत्पन्न अनेक चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना किया. उनके अनुसार, धूपबत्ती के सेल्स पैंडेमिक के बाद दो भागों में बांटे जा सकते हैं. प्रथम भाग, जो जून २०२० में प्रारम्भ हुआ, ने आने वाले त्योहारों को देखते हुए डिमांड में वृद्धि एवं बढ़ते हुए सेल्स का अनुभव किया. दूसरा भाग था दिवाली के पश्चात्, जहाँ सेल्स में ड्रॉप एकदम सामान्य था, और कोविड 19 की महामारी से कोई नाता नहीं था!
निस्संदेह कोविड 19 के कारण कई फैक्ट्रियों को बंदी का भी सामना करना पड़ा, परन्तु अगस्त आते आते उत्पादन रिबाउंड कर गया, मानो कुछ हुआ ही नहीं था! 2021 के अंत तक भारत में इसका सम्पूर्ण मूल्य 7500 से 8000 करोड़ रुपये तक पहुँचने का अनुमान था. अब आप स्वयं सोचिये, धूपबत्ती उद्योग का वर्तमान मार्केट साइज़ क्या होगा?
सुगन्धित धूपबत्ती उद्योग के प्रणेता
“अगरबत्ती राजधानी” के रूप में प्रख्यात कर्णाटक राज्य अगरबत्ती के उत्पादन में सम्पूर्ण भारत में अग्रणी है! इनके उत्पादन केंद्र प्रमुख रूप से मैसूर एवं बेंगलुरु के आसपास केंद्रित है, और इसके कारण राज्य का मार्केट शेयर भारत भर में 30 प्रतिशत से भी अधिक है. सुगन्धित अगरबत्तियों का केंद्र मैसूर और बेंगलुरु जैसे स्थान है, जबकि सुगंध रहित अगरबत्तियों के निर्माण का प्रमुख केंद्र बिहार राज्य में स्थित गया है!
अगरबत्ती निर्माण में मैसूर अग्रणी रहा है. राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में जब बात हो अगरबत्ती मार्केट में वर्चस्व की, तो एक ही नाम सामने आता है: एन रंगा राव एन्ड संस द्वारा निर्मित “Cycle Pure Agarbattis” का! वहीँ दूसरी और जब बात होती है धूपबत्ती के मार्केट की, तो यहाँ पर “हरी दर्शन” का प्रभाव व्याप्त है, जो अगरबत्ती उद्योग में भी कम शक्तिशाली नहीं है!
हरी दर्शन की यात्रा यात्रा कुछ कुछ मसाला उद्योग में अग्रणी MDH की याद दिलाती है. इनके संस्थापकों ने भी विभाजन का वीभत्स रूप देखा था, और फिर दिल्ली में आकर अपना व्यवसाय पुनर्स्थापित किया. अंतर बस इतना है कि हरी दर्शन ने अपनी पहली दुकान दिल्ली के सदर बाजार में प्रारम्भ की! इनकी यात्रा दृढ़ता का परिचायक है, और आज ये साइकिल अगरबत्ती से लेकर MDPH [जो ज़ेड ब्लैक संचालित करती है] और ITC [जो मंगलदीप ब्रांड संचालित करती है] जैसे दिग्गजों तक को चुनौती देने में सक्षम है!
परन्तु धूपबत्ती उद्योग की राह इतनी भी सरल नहीं रही है. इसका उत्पादन काफी स्पष्ट है, क्योंकि इसके अधिकतम raw materials आसानी से प्राप्त हो जाते हैं. परन्तु कुछ वर्षों पूर्व यह आरोप लगा था कि धूपबत्ती उद्योग भी कई raw materials के लिए चीन और वियतनाम जैसों पे निर्भर है. इसके कारण केंद्र सर्कार को धूपबत्ती उत्पादों के आयात पर 2019 में कुछ पाबंदियां भी लगानी पड़ी थी.
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आत्मनिर्भर भारत में धूपबत्ती उद्योग का योगदान
इन पाबंदियों के बाद भी हमारा धूपबत्ती उद्योग “आत्मनिर्भर भारत” के सिद्धांतों को आत्मसात करने की दिशा में आगे बढ़ चुका है. अब इनके प्रयास बाहरी सोर्सेज पर अपनी निर्भरता कम करके आत्मनिर्भरता की ओर केंद्रित है.
अनोखी रणनीतियों एवं साधन संपन्न दृष्टिकोण के साथ इस उद्योग ने बदलाव और बाधाओं, दोनों को पार किया है. इम्पोर्ट पाबंदियों एवं कोविड 19 जैसी बाधाओं के बाद भी धूपबत्ती उद्योग थमने का नाम नहीं ले रही है. ये उद्योग भारतीय उद्योगों के विभिन्न चुनौतियों को पार करने एवं उत्कृष्टता के नित नए आयाम प्राप्त करने की क्षमता का परिचायक है!
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