जैसे ही भारत नई दिल्ली में 7 से 10 सितंबर 2023 तक होने वाले बहुप्रतीक्षित जी20 शिखर सम्मेलन के लिए तैयार हो रहा है, वैश्विक मंच पर एक दिलचस्प मोड़ आ गया है। चीन ने आधिकारिक तौर पर भारतीय अधिकारियों को सूचित किया है कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग उपस्थित नहीं होंगे। इसके बजाय, चीनी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व चीनी प्रधान मंत्री ली कियांग करेंगे।
तो इसमें समस्या क्या है? ऐसे तो व्लादिमीर पुतिन जी २० सम्मिट का हिस्सा नहीं बन पाएंगे. दिक्कत तो तब आती है जब ये ज्ञात होता है कि जिनपिंग महोदय केवल जी २० सम्मिट से ही नहीं, अपितु आगामी आसियान सम्मिट से भी अनुपस्थित रहेंगे? कारण केवल एक : भारत और पीएम मोदी की उपस्थिति!
दरअसल, चीन को ऐसा प्रतीत होता है कि उसके दुश्मन हर तरफ हैं। शिक्षण संस्थान हों या मल्टीनेशनल कंपनियाँ, वो हर किसी को शक की निगाह से देख रहा है। ऊपर से चीन में अगर आप विदेशी हैं, तो यकीन मानिए कि आपको देखने वाली हर नजर पारखी है। वो आप पर अच्छे से नजर रख रहे होते हैं, क्योंकि चीन ने अपने नागरिकों को पूरी तरह से जासूसों में बदल डाला है। जासूसी भी ऐसी वैसे स्वत: प्रेरित नहीं, बल्कि चीनी सरकार ने बाकायदा ट्रेनिंग दी है कि आम लोग किस तरह से विदेशी संस्थानों से जुड़े लोगों पर नजर रख सकते हैं।
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न्यूयोर्क टाइम्स के एक लेख के अनुसार, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग डरे हुए हैं। उन्हें विदेशी जासूसों से बहुत डर लग रहा है। वो इसीलिए देश के बाहर बहुत ही कम मौकों पर जा रहे हैं। खास बात ये है कि उन्होंने घरेलू परिस्थितियों में उलझे होने की वजह से जी-20 जैसे समूह के शिखर सम्मेलन तक में शामिल होने से मना कर दिया। उन्हें डर है कि चीजें अगर उनके कंट्रोल से बाहर गई, तो उन्हें सत्ता से बाहर होना पड़ेगा। इसलिए वो इंडोनेशिया में होने वाली आसियान की बैठक में भी नहीं जा रहे हैं।
इसके अतिरिक्त एक सच्चाई ये भी है कि चीन के इस समय वांदे लगे पड़े हैं. चीन इस समय अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। रियल इस्टेट सेक्टर पूरी तरह से तबाह हो चुका है। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में प्रतिबंधों का सामना करना पड़ रहा है। विकास दर घट चुकी है और आंतरिक तौर पर नागरिकों में भी असंतोष बढ़ रहा है। यही नहीं, अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के चीफ ने कुछ समय पहले एक बयान देकर भी चीन के कान खड़े कर दिए थे, जिसमें उन्होंने कहा था कि अमेरिका अब चीन में अपने जासूसी नेटवर्क को फिर से खड़ा कर रहा है। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि चीन, विशेषकर शी जिनपिंग की हालत बहुत ख़राब है, और वे बस अपने संभावित विनाश को रोकने हेतु एड़ी छोटी का ज़ोर लगा रहे हैं.
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