क्या आपको वह क्षण याद है जब योगी आदित्यनाथ, जो अब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं, संसद को संबोधित करते समय लगभग रुंध गये थे? वह झूठे आरोपों के तहत अपने अन्यायपूर्ण कारावास के दिनों को याद करते हुए भावुक हुए थे। अब वर्षों के संघर्ष और उथल-पुथल के बाद, आखिरकार उन्हें दोषमुक्त कर दिया गया और गोरखपुर वासियों को न्याय मिला है।
लंबे समय से चली आ रही इस कहानी में निर्णायक मोड़ तब आया जब 2007 के कुख्यात गोरखपुर दंगों के मुख्य आरोपी मोहम्मद शमीम को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। 2007 के गोरखपुर दंगे शहर के इतिहास में एक काला अध्याय थे, जो सांप्रदायिक झड़पों से चिह्नित थे जिनके विनाशकारी परिणाम हुए थे।
शमीम अपनी शुरुआती गिरफ्तारी के बाद अगस्त 2007 में जमानत हासिल करने में कामयाब रहा था। इस कदम से उन्हें एक दशक से अधिक समय तक अधिकारियों से बचने की अनुमति मिली। शमीम 16 अगस्त, 2007 को जमानत पा गया था और फरार हो गया था। इस मामले में उसके अब्बू शफीकउल्लाह को साल 2012 में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी, वो अब अपनी सजा काट रहा है।
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वहीं, शमीम फरार हो गया था और चेन्नई में पहचान छिपाकर रहता था। इस बीच, वो गोरखपुर शिफ्ट हो गया था, जिसके बाद मुखबिर की सूचना पर उसे 16 सितंबर, 2023 को पुलिस ने पूरे 15 साल बाद गिरफ्तार किया था। वो यहाँ भी पहचान छिपाकर किराए के घर में रहा था। इसके एक माह के बाद अब शमीम को कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई है।
बता दें कि दंगों के बाद संसद सत्र में 12 मार्च 2007 को योगी आदित्यनाथ अपनी बात कहने के लिए खड़े हुए। संसद में खड़े होने के बाद वो फूट-फूटकर रोने लगे थे। साथी सांसदों ने उनके आँसू पोछे थे। इस मामले में उन्होंने बताया कि तत्कालीन राज्य सरकार ने उनके साथ कैसा व्यवहार किया था। इस मामले में योगी आदित्यनाथ पर दंगे भड़काने के आरोप लगाए थे, लेकिन साल 2014 में वो सीडी फर्जी पाई गई, जिसमें योगी आदित्यनाथ के बयान को रिकॉर्ड करने का दावा किया गया था। इस मामले में 2017 में केस को बंद कर दिया गया था।
शमीम और उसके साथियों ने शादी समारोह से लौटते समय राजकुमार अग्रहरि नामक युवक को बुरी तरह से चाकुओ, तलवार से गोद डाला था, जिसकी दो दिन बाद अस्पताल में मौत हो गई थी। इस घटना के बाद पूरा गोरखपुर सुलग गया था। यही वो मामला है, जिसमें मुलायम सिंह यादव की सरकार में मौजूदा मुख्यमंत्री और तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ को भी आरोपित बनाया गया था, जिसमें उन्हें 11 दिन के लिए जेल भी जाना पड़ा था।
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गोरखपुर दंगा मामले का समाधान न्याय की खोज में एक मील का पत्थर है और योगी आदित्यनाथ जैसे व्यक्तियों की अटूट प्रतिबद्धता का प्रमाण है। यह एक निष्पक्ष और निष्पक्ष न्यायिक प्रणाली की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है और प्रतिकूल परिस्थितियों में भी न्याय को बनाए रखने के महत्व की याद दिलाता है। यह न केवल योगी आदित्यनाथ के लिए बल्कि हमारे समाज में न्याय और निष्पक्षता के सिद्धांतों के लिए भी पुष्टि का क्षण है।
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