मालदीव से लेकर म्यांमार तक हिंद महासागर में फुफकार रहे चीनी ड्रैगन पर लगाम लगाने के लिए भारत ने कमर कस ली है। भारत सरकार के निशाने पर चीन की दुखती रग है जिसे दुनिया मलक्का स्ट्रेट के नाम से जानती है। इंडोनेशिया से सटे इस संकरे समुद्री रास्ते से ही ‘दुनिया की फैक्ट्री’ कहा जाने वाला चीन पश्चिम एशिया, भारत और यूरोप के ज्यादातर देशों से व्यापार करता है।
इसी मलक्का स्ट्रेट से ही जापान, दक्षिण कोरिया, ताइवान, दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के साथ भी दुनिया का व्यापार होता है। मलक्का स्ट्रेट के इसी व्यापारिक मार्ग के पास भारत का अंडमान निकोबार द्वीप समूह स्थित है।
भारत सरकार अब चीन की हिंद महासागर में बढ़ती धमक को करारा जवाब देने के लिए अपने ग्रेट निकोबार द्वीप को ‘हांगकांग’ में बदलने की तैयारी कर रही है। भारत का यह हांगकांग जहां आर्थिक गतिविधियों का बड़ा केंद्र बनने जा रहा है, वहीं समुद्र के अंदर हिंदुस्तान की जोरदार सैन्य ताकत का प्रतीक भी होगा।
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भारत के ग्रेट निकोबार को आर्थिक और सैन्य केंद्र के रूप में बदलने के प्लान पर रक्षा विश्लेषकों का कहना है कि जिस तरह से चीन हिंद महासागर में अपनी ताकत बढ़ा रहा है, उसको देखते हुए भारत को तत्काल इस बात की आवश्यकता है कि वह अंडमान के पास अपनी नौसैनिक उपस्थिति को जोरदार तरीके से बढ़ाए।
भारत हिंद महासागर में चीन की बढ़ती उपस्थिति को लेकर चिंतित है, जिसमें पाकिस्तान, म्यांमार तथा श्रीलंका में उसके हंबनटोटा बंदरगाह और मालदीव में जासूसी जहाज की हाल की गतिविधियां शामिल हैं।
ग्रेट निकोबार में क्या है भारत का प्लान ?
इसी को देखते हुए अपने समुद्री हितों की रक्षा के लिए, भारत अपने रणनीतिक रूप से अहम ग्रेट निकोबार द्वीप के विकास में 9 बिलियन डॉलर का निवेश करने का इरादा बना चुका है। भारत इसे हांगकांग के दक्षिण एशियाई संस्करण के रूप में देखता है।
ग्रेट निकोबार की विकास योजनाओं में एक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, एक शिपिंग टर्मिनल, पर्यटन बुनियादी ढांचा, एक बिजली संयंत्र और एक औद्योगिक क्षेत्र शामिल है। सरकार की पहल आर्थिक क्षमता और पर्यटन लाभों पर प्रकाश डालती है।
वहीं, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की हालिया ग्रेट निकोबार द्वीप की यात्रा को इस क्षेत्र में विकास परियोजना को आगे बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जा रहा है। अंडमान निकोबार द्वीप समूह भारत की मुख्यभूमि से 1800 किमी की दूरी पर है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया है।
भारत और दुनिया में निकोबारी और शोमपेन जनजातियों को लेकर चिंता जताई गई है जो धरती पर पाई जाने वाली सबसे अलग-थलग जनजातियों में से हैं। आलोचकों का तर्क है कि सरकार ने इन जनजातियों के भविष्य पर स्पष्ट जानकारी नहीं दी है। हालांकि, इन द्वीपों पर इस मेगाप्रोजेक्ट का उद्देश्य समुद्री विकास को बढ़ावा देना है और इसमें एक रणनीतिक बंदरगाह है जो बड़े कंटेनर जहाजों को समायोजित कर सकता है। इससे क्षेत्र में आर्थिक विकास की काफी संभावना है।
अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह भारत के लिए विशेष महत्व रखते हैं, कई कारणों से:
- सुरक्षा: ये द्वीप समूह भारतीय समुद्री सीमा के महत्वपूर्ण हिस्से में स्थित हैं और समुद्री सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं। इनके माध्यम से भारतीय सैन्य और सुरक्षा बलों का प्रभाव विस्तार होता है। वहीं, जिस तरह हिंद महासागर में चीन अपनी मौजूदगी स्थापित करता जा रहा है उस हिसाब से भारत अपने इस क्षेत्र से चीन की आर्थिक कमर किसी भी समय तोड़ सकता है क्योंकि चीन का 80% व्यापार इसी रास्ते से होता है।
- रणनीति: अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह भू-राजनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण हैं। ये भारत के सागरीय रणनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- संसाधन: ये द्वीप समूह अमूमन समृद्ध संसाधनों से भरपूर हैं, जैसे कि जलवायु, वन्य जीवन, और समुद्री संपदा। इसके साथ ही, यहां प्राकृतिक संसाधनों की भरमार है जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए उपयोगी हैं।
- पर्यटन: अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह पर्यटन का एक महत्वपूर्ण केंद्र हैं। इनकी सुंदरता, समुद्री जीवन, और एकांत में स्थिति इन्हें एक आकर्षक और विश्वसनीय पर्यटन स्थल बनाती है।
इन सभी कारणों से, अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह भारत के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास, और राजनीतिक महत्त्व रखते हैं।
अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह भारत की रक्षा और सुरक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, खासकर भारत के तट से निकटतम स्थित होने के कारण। इन द्वीपों की रणनीतिक महत्त्वपूर्णता को बढ़ावा देते हुए, भारत ने इसके माध्यम से अपनी सागरीय सुरक्षा को मजबूत किया है।
चीन के साथ भारत के संबंधों को लेकर, अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। ये भारत को चीनी समुद्री गतिरोध के खिलाफ रणनीतिक उपाय अपनाने में मदद करते हैं। इन द्वीपों की रणनीतिक स्थिति और उनकी विशेषता के कारण, भारत अपने प्रतिरक्षा क्षमताओं को और भी प्रभावी बना सकता है, जिससे वह अपने क्षेत्रीय हितों की सुरक्षा और अपने मुद्दों की सुरक्षा कर सकता है।
साथ ही, अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह के महत्व को समझकर, भारत ने उसके विकास और पर्यटन को बढ़ावा दिया है, जिससे द्वीपों की सुरक्षा में और भी मजबूती आई है। इससे चीन को भारत के समुद्री प्रभाव को झेलना पड़ता है। संक्षेप में, अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह भारत की सुरक्षा को बढ़ावा देते हैं, जिससे भारत चीन के साथ रणनीतिक और वाणिज्यिक संघर्ष में अधिक प्रभावी हो सकता है।
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