न्याय की देवी की प्रतिमा ‘लेडी जस्टिस’ की आंखों पर लगी पट्टी हटाने की सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पहल की तारीफ हो रही है और लोग इस पहल को सराह रहे हैं। इसी कड़ी में उत्तराखंड की समान नागरिक संहिता समिति के सदस्य मनु गौड़ ने CJI की तारीफ और उनका धन्यवाद करते हुए उन्हें एक पत्र लिखा है। न्याय की देवी की इस नई मूर्ति को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की लाइब्रेरी में रखा गया है। दरअसल, उत्तराखंड के समान नागरिक संहिता 2024 के मसौदे और विशेषज्ञों की समिति के रिपोर्ट के कवर पेज पर जो न्याय की देवी की तस्वीर लगाई गई थी उसमें न्याय की देवी को बिना आंखों पर पट्टी बांधे और भारत के संविधान को पकड़े हुए दिखाया गया था।
‘असंवेदनशीलता का प्रतीक बन गई थी लेडी जस्टिस’
CJI द्वारा किए गए इस काम को न्याय के सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है जिसे लेकर गौड़ ने उनकी तारीफ की है। गौड़ ने पत्र में लिखा है, “मैं आपको बधाई देता हूं कि आपने औपनिवेशिक प्रतीकात्मकता की गुलामी की बेड़ियों को तोड़ा है और भारतीयों को यह विश्वास दिलाया है कि भारत में न्याय खुली आंखों से दिया जाता है औ हर विषय को अत्यंत सावधानी, विचार और कर्तव्यनिष्ठा के साथ तौला जाता है।” गौड़ ने लिखा, “लेडी जस्टिस के जिस यूरोपीय चित्रण को हमने अनजाने में अपना लिया था वो निष्पक्षता का प्रतीक था। बीतते समय के साथ खासतौर पर औपनिवेशिक शासन में इसके मायने बदल गए और यह अज्ञानता, पूर्वाग्रह और आम आदमी के प्रति असंवेदनशीलता का प्रतीक बन गया।”
‘अंधे कानून की धारणा खत्म करें’
गौड़ ने अपने पत्र में लिखा है, “आंखों से पट्टी हटने के बाद अब संदेश साफ है कि भारत में न्याय निष्पक्ष, कर्मठ और संविधान में निहित है। न्याय की देवी के हाथों में भारत के संविधान की पुस्तक ‘लोकतंत्र में न्याय की मार्गदर्शक शक्ति’ की ओर इशारा करती है।” उन्होंने लिखा, “यह आवश्यक है कि हम ‘अंधा कानून’ की धारणा को खत्म करें और उसकी जगह एक नई, निष्पक्ष और लोगों के हितों पर आधारित न्याय की परिकल्पना स्थापित करें।”
उत्तराखंड के UCC के मसौदे पर दिखी थी यह तस्वीर
उत्तराखंड के समान नागरिक संहिता 2024 के मसौदे और विशेषज्ञों की समिति (सीओई) की रिपोर्ट के कवर पेज पर न्याय की देवी को बिना आंखों पर पट्टी बांधे और भारतीय संविधान की किताब पकड़े हुए दिखाया गया है। इस कवर के लिए मनु गौड़ इस प्रतीकात्मक परिवर्तन को डिजाइन और प्रस्तावित किया था।
साथ ही, सिक्किम उच्च न्यायालय के पूर्व चीफ जस्टिस प्रमोद कोहली ने इसके लिए एक कविता भी लिखी है। यह कविता ड्राफ्ट यूनिफॉर्म सिविल कोड के उपशीर्षक के रूप में प्रकाशित हुई है।
इंसाफ करने की कसम खाई थी,
इसलिए आँखों पर पट्टी लगाई थी।
इंसाफ हो बिन देखे बिन पहचानें,
कानून ने कुछ ऐसी रसम बनाई थी।
मेरी खामोशी को, मेरी कमजोरी माना गया,
इसलिए मुझे बतौर अंधा कानून जाना गया।
न मैं अंधा हूँ, न मैं खामोश हूँ,
अपनी ही बंदिश से रूपोश हूँ।
मैं समझ गया हूँ, मुझे संवरना होगा,
इसलिए अपने अंदाज़ को बदलना होगा।
वक्त आ गया है, आँखों से पट्टी खोली जाए,
और सच्चाई आँखों के सामने तोली जाए।
कहां से ली गई न्याय की देवी की मूर्ति?
न्याय की देवी असल में यूनान की देवी हैं। उनका नाम जस्टिया है। यूनान की इसी न्याय की देवी के नाम से ‘जस्टिस’ शब्द आया है। उनकी आंखों पर बंधी पट्टी का अर्थ है कि न्याय हमेशा निष्पक्ष होना चाहिए। अंग्रेजों के शासन के दौरान 17वीं शताब्दी में पहली बार यह मूर्ति भारत लाई गई थी। इसे लाने वाले अंग्रेज अफसर एक न्यायालय अधिकारी थे। धीरे-धीरे 18वीं शताब्दी आने तक न्याय की देवी की मूर्ति का सार्वजनिक रूप से प्रयोग किया जाने लगा। भारत ने भी 1947 में आजादी हासिल करने के बाद न्याय के इसी प्रतीक को अपनाया।