भारत में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन 2026 के बाद जनगणना के आधार पर किया जाना है। देश में जनगणना 2021 में होनी थी लेकिन कोविड-19 महामारी के चलते इसे स्थगित कर दिया गया था। कोविड-19 महामारी के बाद भी सरकार की और से जनगणना की प्रक्रिया शुरू नहीं कराई गई और अब अनुमान है कि जनगणना का कार्य अगले वर्ष शुरू हो सकता है और यह 2026 तक पूरा हो जाएगा।
परिसीमन और इसका इतिहास क्या है?
परिसीमन के तहत लोकसभा और विधानसभाओं के लिए राज्यों में निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या और सीमा तय की जाती है। संसद के एक अधिनियम के तहत स्थापित किए जाने वाला ‘परिसीमन आयोग’ यह काम करता है और इसमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों का निर्धारण भी किया जाता है। भारत में संवैधानिक प्रावधानों के तहत यह तय किया गया है कि लोकसभा में सीटों का आवंटन जनसंख्या के आधार पर किया जाएगा ताकि जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि देश के किसी में राज्य में रहने वाली किसी भी व्यक्ति के वोट का भारांक लगभग बराबर हो।
देश में परिसीमन को लेकर पहला कार्य राष्ट्रपति ने निर्वाचन आयोग की मदद से वर्ष 1950-51 में किया गया था और अब तक भारत के लिए 1952, 1962, 1972 और 2002 के अधिनियमों के तहत परिसीमन आयोग चार बार स्थापित किए गए हैं। लोकसभा सीटों की संख्या निर्धारित करने के लिए आखिरी परिसीमन 1971 की जनगणना के आधार पर 1976 में पूरा किया गया था।
उस दौरान जनसंख्या नियंत्रण को लेकर भी कदम उठाए जा रहे थे और यह सवाल सामने आया कि जो राज्य जनसंख्या नियंत्रण के लिए कदम उठा रहे हैं उन्हें इससे नुकसान होगा और उनके राज्यों के कम सांसद संसद में पहुंचेंगे। लोगों के विरोध के बाद 1976 में 42वां संविधान संशोधन ऐक्ट में यह प्रावधान किया गया कि सन 2000 तक सीटों के बंटवारे का आधार 1971 की जनगणना ही होगा यानि परिसीमन में सीटों के बढ़ने या घटने पर रोक लगा दी गई थी।
2001 की जनगणना के बाद 2002 में की गई परिसीमन प्रक्रिया में केवल निर्वाचन क्षेत्रों की मौजूदा सीमाओं का पुनर्निर्धारण शामिल था और इसमें निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या में कोई बदलाव नहीं किया गया था। फिलहाल, परिसीमन के तहत सीटों में बदलाव का काम 2026 तक के लिए निलंबित है। 2001 के 84वें संवैधानिक संशोधन में कहा गया कि अगला परिसीमन 2026 के बाद की पहली जनगणना के प्रकाशित आंकड़ों के आधार पर ही किया जा सकता है। NDTV ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि जनसंख्या 2025 की फाइनल रिपोर्ट आने के बाद लोकसभा की सीटों के यानी परिसीमन की प्रक्रिया भी शुरू होगी जो 2028 तक चलेगी यानी अगले लोकसभा चुनाव से ठीक पहले तक यह पूरी होगी।
परिसीमन से क्या बदल सकता है?
देश में परिसीमन का कार्य जनसंख्या के अनुपात के आधार पर होता रहा है और आगे भी इसके लिए यही प्रावधान प्रस्तावित हैं। हालांकि, दक्षिण और उत्तर भारत के राज्यों में जनसंख्या के असंतुलन को लेकर इन्हें मिलने वाली लोकसभा सीटों पर विवाद होने की आशंका है। दक्षिण भारत के राज्यों के लिए जनसंख्या का संकट पैदा हो सकता है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने लोगों से ज्यादा बच्चे पैदा करने की अपील की है। स्टालिन ने तो ज्यादा बच्चे पैदा करने को सीधे तौर पर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या से जोड़ दिया।
सरकार की परिसीमन के बाद लोकसभा में सीटें बढ़ाए जाने को लेकर तैयारी का अंदाजा नए संसद भवन के निर्माण से भी लग रहा है। मौजूदा लोकसभा में 543 सांसद हैं और परिसीमन के बाद इनके 800 से अधिक होने का अनुमान है। पुराने लोकसभा के भवन में करीब 550 सांसदों के बैठने की जगह थी और सरकार ने जो नया संसद भवन बनाया है उसके लोकसभा भवन में 880 से अधिक सांसदों के बैठने की जगह है। हालांकि, 1976 के परिसीमन के आंकड़ों (करीब 10 लाख वोटों पर एक सांसद) के हिसाब से सीटों की संख्या 1200 से अधिक हो सकती है लेकिन अनुमान है इसके आंकड़ों में सरकार बदलाव करेगी।
मार्च 2019 में अमेरिकी थिंक टैंक ‘Carnegie Endowment for International Peace’ ने लोकसभा में राज्यों के प्रतिनिधित्व से जुड़ी एक रिपोर्ट पब्लिश की थी। इसमें अनुमान लगाया गया था कि 2026 की जनसंख्या के हिसाब से उत्तर प्रदेश की सीटें 80 से बढ़कर 143 और बिहार की लोकसभा सीटें 40 से बढ़कर 79 होने का अनुमान है जो करीब-करीब दोगुनी है। वही, तमिलनाडु में इनके 39 से बढ़कर 49 होने और केरल में मौजूदा 20 ही रहने का अनुमान लगाया गया है।
सरकार के सामने दक्षिण भारत के राज्यों को साधना एक बड़ी चुनौती बन सकती है और जब NDA के गठबंधन के महत्वपूर्ण सहयोगी चंद्रबाबू नायडू भी दक्षिण भारत से हैं तो यह चुनौती और भी बड़ी है। परिसीमन के बाद लोकसभा में उत्तर भारत के राज्यों का हिस्सा अप्रत्याशित रूप से बढ़ने का अनुमान है। हालांकि, सराकर इससे निपटने के लिए क्या फॉर्मूला अपनाती है इसे देखना दिलचस्प रहेगा।
महिला आरक्षण के लिए क्यों जरूरी है परिसीमन?
यह जनगणना ना सिर्फ परिसीमन के लिए जरूरी है बल्कि यह महिलाओं को लोकसभा और विधानसभाओं में 33% आरक्षण देने वाले कानून को लागू किए जाने के लिहाज से भी अहम है। इस कानून की धारा 5 में प्रावधान है कि यह कानून इसके प्रकाशित होने के बाद होने वाली पहली जनगणना के आंकड़ों के आधार पर होने वाले परिसीमन के बाद प्रभावी हो जाएगा।
जब सरकार ने नए संसद भवन से काम करना शुरू किया तो उसमें लाया गया पहला बिल महिलाओं के लिए निर्वाचन क्षेत्रों में आरक्षण से जुड़ा था। नारी शक्ति वंदन अधिनियम 2023 नए संसद भवन से 20-21 सितंबर को पारित हो गया और राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद 29 सितंबर को यह कानून भी बन गया। संविधान के इस 128वें संशोधन अधिनियम के माध्यम से संविधान के अनुच्छेद 339AA, 330A, 332A और 334A में संशोधन किए गए जिनके तहत लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% सीटें आरक्षित करने का प्रावधान किया गया था।
इंटर पार्लियामेंट्री यूनियन के आंकड़ों के मुताबिक, दुनियाभर की नैशनल लेजिस्लेटिव बॉडीज में महिलाओं का औसत प्रतिनिधित्व 24% है जबकि भारत में यह आंकड़ा सिर्फ 15% के आस-पास है। देश में वर्तमान में मौजूदा महिला सांसदों की संख्या 82 हैं और मौजूदा सांसदों की कुल संख्या के हिसाब से भी देखें तो बिल के प्रावधान लागू होने के बाद महिला सांसदों की संख्या बढ़कर 181 हो जाएगी। परिसीमन के बाद अगर सांसदों की संख्या बढ़ती है तो यह भी महिलाओं के प्रतिनिधित्व के लिहाज से बेहतर ही होगा।