हरियाणा चुनाव: जनता का हुक्म EVM में कैद, किसका बेड़ापार, किसका बंटाधार?

हरियाणा में विधानसभा की 90 सीटें हैं। 2019 में बीजेपी ने 40 और कांग्रेस ने 31 सीटें जीती थीं।

हरियाणा में 90 सीटों पर मतदान संपन्न

चंडीगढ़: हरियाणा में विधानसभा की 90 सीटों पर मतदान संपन्न हो गया है। इस बार का चुनाव कई मायनों में महत्वपूर्ण था। यह चुनाव तय करेगा कि बीजेपी लगातार तीसरी बार हरियाणा की सत्ता में बनी रहेगी या नहीं? वहीं यह चुनाव कांग्रेस के लिए भी अहम है, क्योंकि वह पिछले दस साल से राज्य की सत्ता से बाहर है। इन सबके बीच हरियाणा में हुई बंपर वोटिंग ने सियासी दलों की बेचैनी बढ़ा दी है। हरियाणा में बढ़ा हुआ वोटर टर्नआउट किसके पक्ष में है? क्या मतदाताओं ने नायब सिंह सैनी और बीजेपी पर भरोसा जताया है, या फिर उसने बदलाव के लिए वोट किया है? इस सवाल का जवाब 8 अक्टूबर को मिलने वाला है, जब चुनाव नतीजे घोषित किए जाएंगे।

पांच बजे तक 61 प्रतिशत मतदान

चुनाव आयोग से मिले आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक शाम पांच बजे तक हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों पर 61 प्रतिशत वोटिंग हुई। राज्य में कुल 1031 उम्मीदवारों की किस्मत आज ईवीएम में कैद हो गई है। इस बार के चुनाव में 22 जिलों में कुल 2 करोड़ 3 लाख रजिस्टर्ड मतदाता थे। ऐसे में इस बार मतदान का आंकड़ा बढ़ना तय है। बीजेपी ने नायब सिंह सैनी के नेतृत्व में लोकसभा का चुनाव लड़ा, वहीं कांग्रेस की तरफ से किसी नाम का ऐलान नहीं हुआ। हरियाणा के सीएम नायब सिंह सैनी ने दावा किया है कि 8 अक्टूबर को जब वोटों की गिनती होगी, तो हरियाणा में नया इतिहास बनेगा। हरियाणा का जन-जन पूरी तरह से कमल खिलाने का मन बना चुका है।

मार्च में नायब सिंह सैनी को कमान

2019 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो बीजेपी ने 36.49 प्रतिशत वोटों के साथ 40 सीटें जीती थीं। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने 28.08 प्रतिशत वोटों के साथ 31 सीटों पर विजय हासिल की थी। तीसरे नंबर पर रही दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी को 14.84 प्रतिशत वोटों के साथ 10 सीटों पर जीत मिली थी और वह किंगमेकर के रूप में सामने आई थी। नतीजों के बाद दुष्यंत चौटाला के समर्थन से बीजेपी ने लगातार दूसरी बार मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व में सरकार बनाई थी। दुष्यंत को डिप्टी सीएम की कुर्सी मिली थी। वहीं इस साल मार्च में मनोहर लाल खट्टर की जगह बीजेपी ने नायब सिंह सैनी को हरियाणा की कमान सौंपी थी। 12 मार्च को उन्होंने सीएम पद की शपथ ली थी।

भारी बहुमत से हमारी सरकार: हुड्डा

इस बीच पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने अपनी पार्टी की जीत का दावा किया है। हुड्डा ने मीडिया से बातचीत में कहा, ‘कांग्रेस के पक्ष में लहर चल रही है। भाजपा जा रही है और कांग्रेस आ रही है। भारी बहुमत से कांग्रेस की सरकार बनने जा रही है। यह सरकार विफल है।‘ दो दिन पहले बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में आए अशोक तंवर ने भी कांग्रेस की सरकार बनने का भरोसा जताया है। कांग्रेस नेता अशोक तंवर ने कहा, ‘अब बदलाव की हवा चल पड़ी है, वो हवा कांग्रेस पार्टी को सत्ता में लाएगी। हम अपने सारे वादे पूरे करेंगे। आज हमें हरियाणा और यहां के लोगों के बारे में सोचना चाहिए। आज सिर्फ कांग्रेस ही लोगों का भला कर सकती है। 36 बिरादरी मिलकर सरकार बनाती है। मेरा मानना ​​है कि कांग्रेस पार्टी किसी के हक पर डाका नहीं पड़ने देगी। राहुल गांधी ने साफ कहा है कि वो 36 बिरादरी की सरकार बनाएंगे।‘

बीजेपी का मेनिफेस्टो

– महिलाओं को हर महीने 2100 रुपये

– हर घर गृहिणी योजना के जरिए 500 रुपये में रसोई गैस

– हरियाणा के हर अग्निवीर को सरकारी नौकरी की गारंटी

– युवाओं के लिए 2 लाख सरकारी नौकरियों का वादा

– किसानों को 24 फसलों पर एमएसपी की गारंटी

– चिरायु योजना के तहत 10 लाख रुपये तक मुफ्त इलाज

कांग्रेस का मेनिफेस्टो

– महिलाओं को दो हजार प्रतिमाह, वृद्धावस्था, विधवा और दिव्यांग पेंशन 6 हजार रुपये

– सरकारी कर्मचारियों के लिए ओल्ड पेंशन स्कीम की बहाली

– 300 यूनिट फ्री बिजली, 500 रुपये में रसोई गैस

– युवाओं के लिए 2 लाख पक्की नौकरी

– किसानों को एमएसपी की गारंटी

– 25 लाख रुपये तक फ्री इलाज, गरीबों को 100 गज प्लॉट

2019 विधानसभा चुनाव का रिजल्ट

कुल सीटें- 90

बीजेपी- 40

कांग्रेस- 31

जेजेपी- 10

निर्दलीय और अन्य- 9

चुनावी फैक्टर जिनका हो सकता है असर   

जाट

हरियाणा में चुनावी फैक्टर की बात करें तो जाट फैक्टर काफी महत्वपूर्ण है। जातीय समीकरण में जाट सबसे ऊपर हैं। राज्य में 22 से 25 प्रतिशत के आसपास जाट हैं। यानी हर चौथा वोटर जाट समुदाय से है। 90 में से 32 विधानसभा सीटों पर जाट प्रभावी हैं, वहीं 17 अन्य सीटों पर उनका वोट बैंक ठीकठाक है। यानी 49 सीटों पर जाट वोटों का असर है। रोहतक, सोनीपत, जींद, हिसार, कैथल और भिवानी जैसे जिलों में जाट बड़ी तादाद में हैं। वहीं पिछले 10 साल से राज्य में गैर जाट मुख्यमंत्री होने की वजह से इस चुनाव में जाट समुदाय की गोलबंदी हो सकती है।

दलित

राज्य में दूसरा अहम फैक्टर है दलित। करीब 21 प्रतिशत आबादी अनुसूचित जाति यानी दलित समुदाय से आती है। वहीं प्रदेश की 17 सीटें सुरक्षित हैं। कुल 35 सीटें ऐसी हैं, जिन पर दलित वोट से गुणा-गणित बिगड़ सकता है। कांग्रेस मुख्य रूप से जाट-दलित समीकरण पर फोकस कर रही है। राहुल गांधी ने रैली के मंच से कुमारी सैलजा और भूपेंद्र हुड्डा का हाथ मिलवाया। सैलजा राज्य के बड़े दलित चेहरों में से एक हैं। वहीं बीजेपी ने भी सैलजा की कथित नाराजगी के जरिए दलितों के बीच संदेश देने की कोशिश की। यह मैसेज दिया गया कि कांग्रेस अगर सत्ता में आती है, तो भी सैलजा को कुछ नहीं मिलेगा। सैलजा ने कहा था कि एक नेता के तौर पर उनकी भी इच्छा है कि मुख्यमंत्री बनें। हरियाणा में सीएम बनने का रास्ता खुला हुआ है। कांग्रेस ने किसी को सीएम चेहरा नहीं घोषित किया है। इस बीच मतदान से दो दिन पहले ही दलित नेता अशोक तंवर की कांग्रेस में घरवापसी हो गई। बीजेपी भी दलित वोटों पर फोकस कर रही है। उच्च शिक्षण संस्थाओं में आरक्षण के लिए राज्य सरकार ने वंचित अनुसूचित जाति नाम से नया ग्रुप बनाया है। इसमें कोटा के अंदर कोटा की व्यवस्था है। वाल्मीकि, बाजीगर और धनक जैसे 36 समुदाय इसमें शामिल हैं।

डेरा

हरियाणा में डेरा फैक्टर का असर हर चुनाव में रहता है।  डेरा सच्चा सौदा की 38 शाखाओं में से 21 हरियाणा में हैं। उसके अनुयायियों की अनुमानित संख्या सवा करोड़ के आसपास है। 6 जिलों की 26 विधानसभा सीटों पर डेरा का काफी प्रभाव है। फतेहाबाद, कैथल, कुरुक्षेत्र, करनाल, सिरसा और हिसार में डेरा के अनुयायी अच्छी संख्या में हैं। डेरा की एक राजनीतिक शाखा भी है, जो इसके प्रमुख गुरमीत राम रहीम के निर्देशन में काम करती है। हरियाणा में डेरा के लाखों अनुयायी हैं। पिछड़ी जातियों में भी उसके फॉलोअर्स हैं। डेरा की पॉलिटिकल विंग मतदान से पहले कई बार निर्देश जारी करती है। 2014 में डेरा सच्चा सौदा ने लोकसभा और विधानसभा चुनाव में बीजेपी का समर्थन किया था। हालांकि गुरमीत राम रहीम को सजा और जेल होने के बाद डेरा फैक्टर थोड़ा कमजोर जरूर पड़ा है। चुनाव के बीच गुरमीत राम रहीम की पैरोल भी विवाद का मुद्दा रही है। 30 सितंबर को राम रहीम को 20 दिन के लिए एक बार फिर पैरोल मिली है।

छोटी पार्टियां-निर्दलीय

राज्य में विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद छोटी पार्टियां और निर्दलीय भी किंगमेकर बन सकते हैं। मसलन 2019 के चुनाव में दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी ने 10 सीटें जीतकर किंगमेकर की भूमिका अदा की थी। दुष्यंत डिप्टी सीएम भी बने थे। इस बार हिसार से सावित्री जिंदल, रानियां में रणजीत चौटाला, महम से बलराज कुंडू, उचाना में वीरेंद्र घोघड़िया, अंबाला कैंट में चित्रा सरवारा, पानीपत सिटी में रोहिता रेवड़ी, गन्नौर में देवेंद्र कादियान और अंबाला कैंट से चित्रा सरवारा मजबूती से मैदान में हैं। ऐसे में चुनाव के बाद अगर बहुमत के लिए कुछ विधायकों की जरूरत होती है, तो जीतने वाले निर्दलीय अहम होंगे। वहीं अभय चौटाला की आईएनएलडी और दुष्यंत चौटाला की जेजेपी जैसी पार्टी के लिए यह चुनाव अस्तित्व का सवाल है। अगर उसे इस चुनाव में सीटें नहीं मिलती हैं, तो भविष्य की राजनीति पटरी से उतर सकती है।

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